लोहरदगा (LOHARDAGA): लोहरदगा जिला का चिरी जंगल, कभी इस जंगल की आड़ में ग्रामीण अफीम की खेती करते थे. लेकिन समय और राज्य सरकार के प्रयास ने इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की सोच बदल कर रख दी. अब इस इलाके में ग्रामीण गेंदा फूल की खेती कर रहे हैं. दीपावली और छठ पूजा के मौके पर इन फूलों की मांग बहुत बढ़ गई है. दूसरे राज्यों में पसीना बहाने वाले ग्रामीण अब अपनी माटी को सुंगधित कर रहे हैं. जिला उद्यान विभाग की ओर से इन्हें फूलों का पौधा उपलब्ध कराया गया, जिसे ये किसान अपनी चार एकड़ की बंजर हो रही भूमि पर लगा रहे हैं.

उद्यान विभाग का सराहनीय सहयोग
आज की तारीख में ग्रामीणों को फूल की खेती से कई गुणा ज्यादा आर्थिक लाभ मिल रहा है. इन ग्रामीणों का कहना है कि इन्होंने शिक्षा प्राप्त नहीं किया, इसलिए अपनी जरूरतों और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए मजबूरन पलायन करना पड़ा. लेकिन कोविड के कारण देश भर में लगे लॉकडाउन ने इन्हें फिर से बेरोजगार बना दिया था. इस स्थिति में जब ये अपने गांव चिरी लौटे तो यहां उद्यान विभाग की ओर से दिए जा रहे सहयोग ने इनकी सोच बदल दी. अब ये सालों भर फूलों की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं. रांची और आसपास के इलाकों से लोग इनके पास बड़ी संख्या में प्रतिदिन गेंदा फूल खरीदने पहुंचते हैं, जो इन्हें इनकी खेत में ही रोजगार उपलब्ध हो रहा है.

जिला को मिल रही नई पहचान
इन किसानों को कृषि विज्ञान केन्द्र का भी लाभ मिल रहा है. साथ ही जिला उद्यान विभाग इन्हें हर तरह से सहयोग प्रदान कर रहा है. जिला उद्यान विभाग की ओर से जिला के विभिन्न प्रखंड क्षेत्रों में फूलों की खेती की जा रही है. लोहरदगा अब अपनी पहचान फूलों की खेती की ओर भी कर रहा है. नक्सल के दम तोड़ते ही युवाओं की सोच को नई दिशा लोहरदगा में मिल रही है. बहरहाल, लोहरदगा की माटी से निकलने वाला बॉक्साइड कभी यहां की पहचान हुआ करती थी. लेकिन समय के साथ यहां के ग्रामीणों ने इसकी पहचान को बदल कर रख दिया है. समय अब करवटें ले रहा है, यहां की बहार बता रही है कि युवाओं ने अब अपने भविष्य का रास्ता चुन लिया है. अब लोहरदगा के नाम से भय नहीं सुगंध और विश्वास फैलती है, क्योंकि इन युवाओं ने लोहरदगा जिला को एक नई पहचान दिया है.
रिपोर्ट: लोहरदगा ब्यूरो
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