टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड के स्वास्थ मंत्री बन्ना गुप्ता जहां राज्य में स्वास्थय व्यवस्था का बखान करते नहीं थकते वहीं राजधानी रांची के रिम्स अस्पताल की दशा सारे बातों का पोल खोलता नजर आ रहा है. स्वास्थ्य व्यवस्था को बढ़ाते हुए बड़ी-बड़ी मशीनों का प्रबंध तो कराया गया है मगर वह मशीनें मरीजों के कोई काम नहीं आ रही है. मरीज के बेहतर इलाज के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए जिनमें रिम्स में मरीजों को त्वरित जांच की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बाइओ केमिस्ट्री, पैथोलॉजी माइक्रोबायोलॉजी विभागों के साथ लैब मेडिसिन और केंद्रीय कलेक्शन सेंटर खोला गया. मगर इसके बावजूद इन दिनों बड़े से लेकर छोटे जांच तक की एक भी सुविधा मरीजों को नहीं मिल रही है.
मशीन में नहीं है जांच का केमिकल
इन दोनों रिम्स में आरएफटी एलएफटी,लिपिड प्रोफाइल, टी4, टी3 विटामिन डी, यूरिक एसिड इत्यादि कई जांच बंद है. यह मशीन हर दिन तकरीबन 1500 से 2000 मरीजों को जांच की सुविधा उपलब्ध कराती थी ऐसे में कहा जा रहा है कि करोड़ों की खरीदी गई मशीन में जांच की केमिकल उपलब्ध नहीं है जिसकी वजह से यह सुविधाएँ ठप पड़ी हुई है.
रिएजेंट का रेट अप्रूव होने के बावजूद केमिकल नहीं
इन मशीनों में रिएजेंट का रेट अप्रूव होने के बावजूद इसका केमिकल नहीं लाया गया है. जिसकी वजह से किडनी, लीवर, हार्ट डिजीज, से ग्रसित मरीजों के इलाज में परेशानी हो रही है. इन सभी चीजों में गरीब वर्ग के लोगों को काफी परेशानी झेलना पड़ा है. जिनके पास पैसे हैं जो सक्षम है वह बाहर किसी निजी लैब में जांच तो करा ले रहे हैं मगर कई लोग ऐसे भी हैं जो बाहर जांच करने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में वह पूरी तरह से अस्पताल पर निर्भर है .
इलाज कराना हुआ महंगा
रिम्स अस्पताल की स्थिति इतनी दयनीय है कि यहां पर MRI भी बंद कर दिया गया है. ऐसे में लोगों को इलाज करना काफी महंगा पड़ा है. जो MRI अस्पताल में 2200 रुपये में हो जाती है वहीं अब मरीजों को बाहर किसी लैब से कराने पर 6000 रुपए देने पड़ रहे है. ऐसे में आधे लोग मजबूर होकर यहीं बैठे हुए है.
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