Election 2024 : झारखंड की "राजनीतिक चक्रब्यूह" में कहां गुम हो गए झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन के बाद सबसे कद्दावर रहे सूरज मंडल ! पढ़िए विशेष रेपोर्ट

धनबाद(DHANBAD): झारखंड ,विशेषकर संथाल परगना की राजनीति में धमक रखनेवाले पूर्व सांसद सूरज मंडल की सक्रियता कही सुनाई -दिखाई नहीं दे रही है. 2024 के चुनाव का प्रचार तेजी पर है , लेकिन एक समय झारखंड के टाइगर कहे जाने वाले सूरज मंडल की आवाज कहीं सुनाई नहीं दे रही है. भाजपा में जाने के बाद वह राजनीतिक वनवास काट रहे है. राजनीति होती भी ऐसी है, जब चलती है तो 24 x 7 चलती है और जब बैठ जाती है तो बिलकुल बैठ जाती है. शायद सूरज मंडल के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. उनकी राजनीति जब चलती थी तो कहा जाता था कि सूरज मंडल के बगैर शिबू सोरेन अधूरे है. बात भी उस समय सही लगती थी. दोनों नेता साये की तरह एक दूसरे के साथ होते थे. लेकिन समय ने पलटा खाया. यह जोड़ी अलग -थलग हो गई. शिबू सोरेन की उम्र अधिक हो गई और सूरज मंडल भी उम्र दराज तो हो ही गए हैं, लेकिन फिलहाल बनवास काट रहे है.
अपने बयानों को लेकर हमेशा चर्चा में रहते थे
अपने बयानों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले सूरज मंडल आज अब राजनीति की जरूरत नहीं दिख रहे है. लेकिन एक समय झारखंड की राजनीति सूरज मंडल के बगैर अधूरी कही जाती थी. सूरज मंडल संथाल परगना के पोड़ैयाहाट से दो बार विधायक रह चुके है. गोड्डा से सांसद भी रह चुके है. 1991 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर गोड्डा से भाजपा के जनार्दन यादव को पराजित किया था. लेकिन उसके बाद संसद की सीढ़ी नहीं चढ़ सके. विवाद बढ़ा और झारखंड मुक्ति मोर्चा से वह अलग हो गए. और झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होने के साथ ही उनकी राजनीतिक पहुंच घटनी शुरू हुई और घटती चली गई. युवा कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू करने वाले सूरज मंडल 2000 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर झारखंड विकास दल नाम का दल बनाया था. लेकिन यह दल बहुत कारगर साबित नहीं हुआ.
2018 में अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया
फिर 2018 में अपनी पार्टी का उन्होंने भाजपा में विलय कर दिया और उसके बाद से वह राजनीतिक वनवास ही काट रहे है. झारखंड के जामताड़ा के करमाटांड़ में 1949 में जन्मे सूरज मंडल झारखंड के कद्दावर नेताओं में से एक है. कहा तो यह जाता है कि जब शिबू सोरेन और सूरज मंडल की चलती थी, उसे समय बिना सूरज मंडल की सहमति के शिबू सोरेन कोई काम नहीं करते थे. वैसे ,झारखंड की राजनीति में समय के साथ कई टाइगर कहलाये. तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्वर्गीय जगरनाथ महतो भी टाइगर कहे जाते थे. अभी खतियानी आंदोलन के नेता जयराम महतो को भी टाइगर के नाम से बुलाया जाता है. वैसे, धनबाद के भाजपा प्रत्याशी विधायक ढुल्लू महतो भी अपने इलाके में टाइगर कहे जाते है. वैसे कहा जाए तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के जो भी नेता भाजपा में शामिल हुए,वह या तो घर वापसी कर लिए हैं या फिर दरकिनार है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता रहे हेमलाल मुर्मू भाजपा में गए. भाजपा में उन्हें राजनीतिक सफलता नहीं मिली तो फिर 2023 में वह झारखंड मुक्ति मोर्चा में लौट आये.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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