रांची(RANCHI): झारखंड में बड़ी संख्या में आदिवासी रहते है. आदिवासी के नाम पर ही राज्य का गठन हुआ. लेकिन राज्य गठन के साथ ही यहाँ माफिया और जमीन दलाल भी सक्रिय हो गए. जमीन की ऐसी लूट मची की आदिवासियों की जमीन बेच डाली. शमशान की जमीन पर आलीशान अपार्टमेंट बना दिया गया. अब सवालों के घेरे में पूरी सरकार और प्रशासन है.आखिर आदिवासियों के जमीन को संरक्षण करने के लिए CNT जैसे कानून है. बावजूद जमीन की लूट हुई है. अब एक ऐसा ही मामला बरियातू इलाके से सामने आया है.
बरियातू इलाके के रानी बागान में निर्मला एन्क्लैव के सामने बीच सड़क पर शव दफन करने का मामला सामने आया. कब्र बनने से अपार्टमेंट में रहने वाले लोग दहशत में आ गए. हर ओर चर्चा शुरू हो गया आखिर बीच रास्ते में मकान के सामने शव किसने दफन कर दिया.अपार्टमेंट के लोग भी सवाल उठाने लगे की ऐसे रास्ते में कोई दफन कैसे कर देगा. मामले की शिकायत पुलिस से भी की गई. जिससे कब्र हटाया जा सके.
लेकिन जब THE NEWS POST ने इसकी पड़ताल की तो कहानी कुछ और ही है. घर या अपार्टमेंट के सामने कब्र नहीं बनी बल्कि शमशान के जमीन पर ही घर बना दिया गया है. रानी बागान में रहने वाले लोगों से बात की. निर्मला एन्क्लैव से कुछ आगे बढ़े तो कई घर और कब्र दिखाई दिए. पतली गली और कच्चे रास्ते से होते हुए आदिवासी बस्ती में पहुंचे और यहाँ सालों से रह रहे लोगों से इसकी पूरी कहानी जानने की कोशिश की. यहाँ कई लोग मिले. जिन्होंने साफ तौर पर सवाल उठाया और उनकी जमीन को कब्जा करने का आरोप लगाया है.
अशोक तिर्की ने बताया कि कोई नई कब्र नहीं है. बल्कि उनके सभी पूर्वज उसी के आस पास दफन है. पूरा एरिया मसना का है. लेकिन उनके पिता और पूर्वजों से फर्जी तरीके से जमीन का कागज कुछ लोगों ने अपने नाम करवा कर बेच दिया. और अब उन्हे दफन करने से भी रोका जा रहा है.
सुनीता तिर्की ने कहा कि जमीन मसना की है. आखिर इसपर अपार्टमेंट कैसे बन गया. अधिकारियों ने इसका नक्सा कैसे पास किया और जमीन ट्रांसफर कैसे कर दी गई है. पुराने दस्तावेज को देखने के बाद साफ जानकारी मिल सकती है कि किस तरह से मसना की जमीन की बिक्री कर दी गई है.
यह सवाल सुनीता का जायज है. आदिवासी जमीन CNT के अंतर्गत आती है. लेकिन इस जमीन को सिर्फ बिक्री नहीं की गया बल्कि आलीशान अपार्टमेंट और घर भी बना दिया गया. आखिर इसका जिम्मेवार कौन है. आखिर निगम जब घर का नक्सा पास करता है तो क्या उसकी तहकीकात नहीं करता है. या जब जमीन की रजिस्ट्री हुई तो क्या रजिस्टार ने दस्तावेज को चेक नहीं किया. आखिर किस किस्म की जमीन है यह जांच कौन करेगा.
अगर देखे आदिवासियों के लिए पेसा कानून भी है. लेकिन यह बदनसीबी राज्य की है. 24 साल बाद भी कानून का पेसा को लागू नहीं किया गया.अगर पेसा लागू हो जाता है तो आदिवासी को एक मजबूत हथियार मिल जाएगा. जिससे बिना ग्राम सभा के कोई भी काम कोई नहीं कर सकेगा.
4+