रांची(RANCHI): झारखंड से मजदूर सिर्फ चेन्नई और हैदराबाद नहीं जाते है. बल्कि बड़ी संख्या में रोटी की तलाश में विदेश जाते है. जिसका कोई आकड़ा भी श्रमिक विभाग के पास नहीं होता. जिस रोटी के तलाश में अपने वतन से सात समुंदर दूर गए. वहां जाने के बाद खुद रोटी के मोहताज हो गए. कुछ ऐसा ही हाल झारखंड के 47 मजदूरों के साथ अफ्रीका में हुआ.
करीब तीन महीने पहले 47 मजदूर को एजेंट झारखंड से अफ्रीका के कैमरुन भेज दिया. अफ्रीका पहुंचने के बाद मजदूरों को काम मिला. लेकिन पैसा एक माह का भी नहीं दिया गया. जिसके बाद जब मजदूरों ने हंगामा किया तो खाना पानी भी बंद कर दिया गया. आखिर में सभी ने वीडियो जारी कर सरकार से गुहार लगाई और उन्हें नरक से बाहर निकालने की मदद मांगी. सरकार तक इनकी फ़रियाद पहुंची और विदेश मंत्रालय से संपर्क कर झारखंड श्रमिक आयोग ने सभी की वापसी की पहल किया. जिसके बाद रविवार को कैमरून से 11 मजदूरों को वापस लाया गया. रांची बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर सभी मजदूर का स्वागत किया गया.
विदेश से वापस लौटे मजदूर ने अपने साथ हुई आपबीती को बताया. कैसे उनके दिन कट रहे रहे थे. हजारीबाग के रहने वाले रेवतलाल महतो ने बताया कि शुरू में एजेंट ने पैसा लेकर भेज दिया. उसके बाद वहां महीने के सैलरी नहीं मिली. महीने बीतते चले गए लेकिन एक रुपया भी नहीं दिया. इसके बाद जब सब्र का बांध टूट गया तो कंपनी में काम बंद कर दिया. जिसके बाद कंपनी के लोगों के द्वारा खाना और पानी भी बंद कर दिया गया.
चिंतामण महतो ने बताया कि पैसा कमाने के लिए गए थे. लेकिन वहां एक रोटी के मोहताज हो गए. आखिर में वीडियो जारी कर सरकार से गुहार लगाई. जिसके बाद उन्हे मदद मिली और अब वापस पहुंचे है. साथ ही पूरा बकाया पैसा का भी भुगतान किया गया है. सरकार की मदद से वापस अपने घर लौटे है.
बता दें कि 47 मजदूरों में 11 को पहले वापस लाया गया है. इसके बाद बाकी बचे 36 मजदूरों को भी वापस लाने की तैयारी की जा रही है. जल्द ही सभी अपने देश लौट जाएंगे. अफ्रीका के कैमरून से झारखंड लौटने वाले 11 श्रमिकों में, 7 हज़ारीबाग, 2 गिरिडीह,2 बोकारो के शामिल है.
राजेश प्रसाद, जॉइन्ट कमिश्नर श्रम ने बताया कि जैसे ही मजदूरों के फंसने की जानकारी मिली. उसके बाद विदेश मंत्रालय से संपर्क कर आगे की कार्रवाई की गई. सभी को तत्काल मदद की गई है. उन्होंने बताया कि वापस लौटे मजदूरों को सरकार की ओर से विभिन्न योजनाओं से जोड़ कर स्थानीय स्तर पर रोजगार देने की कोशिश होगी. जिससे इन्हें पलायन करने की जरूरत ना पड़े.
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