धनबाद(DHANBAD): धनबाद के नए समाहरणालय भवन का उद्घाटन शुक्रवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बलियापुर से किया. अब इसके साथ ही पुराना समाहरणालय भवन बहुत जल्द ही एसडीओ कार्यालय के रूप में जाना जाएगा. एसडीओ अब इसी भवन में बैठेंगे. इसके साथ ही डीसी और एसएसपी सहित सिटी एसपी और ग्रामीण एसपी से मिलने वालों को भी अब कोर्ट रोड के ऑफिस के बजाय नए समाहरणालय भवन में जाना होगा. भास्कर में छपी एक खबर के मुताबिक सिटी एसपी, ग्रामीण एसपी, हेड क्वार्टर वन और टू डीएसपी का ऑफिस भी नए भवन में ही शिफ्ट हो जाएगा.एसएसपी , सिटी एसपी और ग्रामीण एसपी के ऑफिस में अब दूसरे अधिकारी बैठेंगे. खबर के मुताबिक एसएसपी के ऑफिस में डीएसपी ला एंड ऑर्डर अरविंद कुमार बिन्हा बैठेंगे तो डीएस पी ट्रैफिक राजेश कुमार अब सिटी एसपी के ऑफिस में बैठेंगे. साइबर डीएसपी ग्रामीण एसपी के वर्तमान ऑफिस में बैठेंगे. इसके अलावे भी जो जो ऑफिस खाली हो रहे हैं, उसे भी पुलिस विभाग के अलग-अलग विभागों को आवंटित कर दिया जाएगा.
फरियादियों को अब जाना होगा नई बिल्डिंग में
पहले कोर्ट आने वाले कोई भी फरियादी डीसी,एसएसपी या अन्य पुलिस के बड़े अधिकारियों से मिल लेते थे लेकिन अब उन्हें बरवाअड्डा हवाई पट्टी के पास बने नए भवन में जाना होगा. 1833 में अंग्रेजों ने मानभूम जिले का गठन किया था. 1965 में मानभूम जिला से अलग होकर धनबाद जिला बना. मानभूम का शेष हिस्सा पश्चिम बंगाल में ही रहा, जो पुरुलिया जिला कहलाया. 1991 में धनबाद जिले के एक बड़े हिस्से को काटकर बोकारो जिला बनाया गया. धनबाद जिला के गठन से पूर्व ही 1928 में यहां पुलिस जिला का गठन कर लिया गया था. बाकायदा एसपी रैंक के अधिकारी यहां तैनात किए जाते थे. धनबाद को बंगाल से अलग होने की भी एक दिलचस्प कहानी बताई जाती है. 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य यहां आए तो उन्हें यह बताने के लिए कि धनबाद में बिहारी की आबादी अधिक है. प्रदर्शन कराया गया.
दोनों उस समय के ताकतवर सीएम माने जाते थे
उस समय बिहार के मुख्यमंत्री श्री कृष्णा सिंह थे तो बंगाल के मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय थे. दोनों को उस दौर का ताकतवर मुख्यमंत्री माना जाता था. श्रीबाबू धनबाद को बिहार में लाना चाहते थे जबकि विधान चंद्र राय धनबाद को बंगाल में ही रखने की कोशिश कर रहे थे. 1953 में जब राज्य पुनर्गठन आयोग की टीम आई तो यह साबित करना था कि धनबाद में बिहारी की संख्या अधिक है. फिर तो यहां की कोलियारियों में काम करने वाले लोगों का परेड कराया गया. बिहारी स्टाइल में माथे पर पगड़ी और हाथ में लट्ठ लिए लोग प्रदर्शन करते सड़क पर नजर आये थे. नतीजा हुआ कि राज्य पुनर्गठन आयोग को मनाना पड़ा कि यहां बिहारी की संख्या अधिक है. फिर तो धनबाद बिहार का हिस्सा बन गया. यह बात अलग है कि बिहार के भी दो हिस्से हो गए. धनबाद अब झारखंड का हिस्सा बन गया है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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