धनबाद(DHANBAD): कर्नाटक चुनाव परिणाम ने कांग्रेसियों को चार्ज कर दिया है. राहुल गांधी को भी "संजीवनी" दे दी है. प्रियंका गाँधी की भी जमीन तैयार कर दी है. राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़ गे का भी कद बढ़ा दिया है, लेकिन सवाल यह है कि अब आगे क्या. क्या भाजपा के लिए दक्षिण का दरवाजा बंद कर देने मात्र से ही क्या कॉन्ग्रेस को फिर से ताकत मिल जाएगी, कॉन्ग्रेस सशक्त विपक्ष बन जाएगी. क्या कांग्रेस के हाथों में सत्ता हो जाएगी, क्या भाजपा सत्ता से बाहर हो जाएगी, आगे आने वाले चुनाव में क्या भाजपा अपनी रणनीति नहीं बदलेगी, यह सब ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब कांग्रेस को भी ढूंढना होगा और भाजपा को भी. वैसे तो सभी पार्टियों में आज के दिन में कार्यकर्ता कम और नेता अधिक हो गए है. कांग्रेस के साथ यह थोड़ी अधिक बैठती है. यहां सब नेता ही नेता है, हो भी क्यों नहीं, इतने दिनों से देश में, प्रदेश में कांग्रेस का शासन चल रहा था. शायद इसी ओवरकॉन्फिडेन्स ने कांग्रेस को इस जगह पर पहुंचाया.
कर्नाटक परिणाम एक सन्देश भी है और बड़ा सबक भी
कर्नाटक की चुनावी लड़ाई कांग्रेसियों के लिए एक संदेश भी है, और बड़ा सबक भी . जिस तरह कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ी और हर सवालों का जवाब दिया, खींचतान से दूर रही , क्या अन्य प्रदेशों में ऐसा कर पाएगी. यह बात भी सही है कि कर्नाटक के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने कोई ऐसे हथियार नहीं चलाएं, जो कि चुनाव में चलाए जाते है. तरकस से सभी तीर आजमाएं गए. यह बात भी सच है कि कर्नाटक का चुनाव करप्शन जैसे मसलों के इर्द-गिर्द लड़ा गया. चुनाव प्रचार में बजरंग दल और बजरंगबली भी आ गए. कर्नाटक चुनाव के बाद तो कई जगहों पर बजरंगबली मंदिर के निर्माण की बातें नेता कहने लगे है. जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी ने भी कहा है कि वह मंदिर बनवाएंगे. कर्नाटक दक्षिण भारत का सबसे बड़ा राज्य है. यहां से निकला संदेश दूर तक जाएगा लेकिन फिर सवाल वही उठता है कि कांग्रेसी क्या एकजुट हो पाएंगे.
झारखंड में नहीं दिखती एकता
अगर झारखंड की ही बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ कांग्रेसियों का एक गुट बिगुल फूंक रहा है. वैसे यह बात भी सच है कि लगातार हार से परेशान गांधी परिवार का राजनीतिक अस्तित्व ही संकट में पड़ गया था लेकिन कर्नाटक चुनाव परिणाम ने जान फूंक दी है. राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे का भी वजूद बढ़ा दिया है. भाजपा भी निश्चित रूप से हार पर मंथन कर रही होगी और आगे के चुनाव के लिए रणनीति तैयार कर रही होगी. विपक्षी एकता को लेकर भी अब कई तरह की बातें कही जा रही है, हालांकि विपक्षी एकता का प्रयास जारी है. देखना होगा कि कर्नाटक चुनाव के परिणाम से रिचार्ज हुई कांग्रेस किस रूप में और कैसे देश की राजनीति में अपनी भूमिका तय करती है. वैसे भाजपा आज की तारीख में देश- दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है, वह कभी नहीं चाहेगी कि कांग्रेस और विपक्षी दलों की ताकत अधिक हो , जिससे उसे चुनाव में परेशानी आ जाये.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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