टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की गुरुवार को अचानक तबीयत बिगड़ गई. जिसके बाद उन्हें रांची के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है. बता दें कि 2020 के कोरोना काल में वह कोरोना संक्रमण से भी ग्रसित हुए थे. जिसके बाद से वह काफी कमज़ोर भी हो गए थे.
चेन्नई में चल रहा था इलाज
समय के साथ साथ शिबू सोरेन का शरीर कमजोर हो चुका है. उनका जन्म 11 जनवरी 1944 में हुआ था, और उनकी उम्र 79 है. बता दें कि काफी समय पहले से उनका इलाज चेन्नई में चल रहा था. फिलहाल वह मोराबादी स्थत अपने आवास में ही थे.
शिबू सोरेन से गुरूजी बनने का सफर
संथाल परगना के मूलवासी आदिवासी शिबू सोरेन को गुरुजी के नाम से पुकारते हैं. बल्कि केवल पुकारते ही नहीं पूरे में से इन्हें अपना दिशोम गुरुजी मानते हैं. इसका कारण शिबू सोरेन का आदिवासियों और समाज के तरफ उनका योगदान है. बता दें कि शिबू सोरेन ने झारखंड अलग राज्य बनने से पहले समाज में महाजनी प्रथा, नशा उन्मूलन और समाज सुधार के साथ शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए कई अभियान चलाया था. इसके अलावा उन्होंने अलग झारखंड राज्य आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका भी निभाई थी. इस वजह से आदिवासियों में विशेषकर संथाल परगना क्षेत्र में शिबू सोरेन को लोग गुरुजी मानने लगे थे.
पांच रूपए लेकर घर से निकले थे
पिता शोबारन सोरेन की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी. इस दौरान उन्होंने एक दिन अपने भाई से पांच रूपए मांगे और कही कि उन्हें कुछ अपना करना है. इस समय घर में पैसे नहीं थे. ऐसे में उनके बड़े भाई राजाराम परेशान हो गए. तब उनकी नजर घर पर रखी एक हाड़ी पर पड़ी. जहां उनकी मां खाना बनाने से पहले एक मुट्ठी चावल डाल देती थी. बड़े भाई ने इसी हाड़ी से चावल निकाल का शिबू सोरेन को दे दिया. इसे बेचकर शिबू सोरेन ने पांच रूपए हासिल किए और हजारीबाग की ओर निकल पड़े. हजारीबाग के इस सफर ने उन्हें संथाल परगना का 'दिशोम गुरु' बना दिया.
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