सरायकेला(SARAIKELA): झारखंड की मिट्टी में जितनी प्रतिभाएं उपजती है उतनी ही इनकी उपेक्षा भी होती है. इसी झारखंड ने क्रिकेट जगत के चमकते सितारे धोनी को दिया तो वहीं इस जमीन में और कई ऐसे हीरे हैं जिनको तराशा और सराहा नहीं गया. जो अपनी प्रतिभा की उपेक्षा के शिकार होकर मजबूर हो गए हैं. खेल से अलग ही कोई ऐसा काम करने के लिए जो उनके लिए नहीं बना है. जी हां हम बात कर रहे हैं नेशनल और स्टेट लेवल पर तीरंदाजी में अपना परचम लहराने वाला गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ी प्रेम मार्डी की. आज उपेक्षा के दंश से कराह रहे प्रेम और उनका परिवार जब भी अपने द्वारा जीते गए मेडल को निहारता है तो बस बरबस आँखें भीग जाती है और रुँधे हुए गले से प्रेम और उनका परिवार बस यही पूछता है की क्या हमने देश और राज्य के लिए अपने जीवन का एक हिस्सा देकर अपराध किया है.
जानिए क्यों लोगों के घरों में मिट्टी ढो रहा एक नेशनल खिलाड़ी
बता दें झारखंड के सरायकेला में खेल के मैदान में कई मेडल जीतकर राज्य का नाम रौशन करने वाला खिलाड़ी आज परिवार सहित आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. हालात ये हैं कि नेशनल और स्टेट लेवल पर तीरंदाजी में अपना परचम लहराने वाला गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ी प्रेम मार्डी को दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करना पड़ रहा है. ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है की तीरंदाजी में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने वाला खिलाड़ी इन दिनों कहीं ईंट जोड़ने का मसाला बना रहा है तो कोई दूसरे के घर का काम कर रहा है. बेहतरीन खेल नीति का दम भरने वाली झारखंड सरकार में राष्ट्रीय खिलाड़ियों की ऐसे अनदेखी होगी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा. खेल और खिलाड़ी झारखंड की पहचान हैं और गौरव भी. लेकिन, राज्य व राष्ट्रीय फलक पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद भी खेल साधकों को दो रोटी के लिए जद्दोजहद करनी पड़े तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या होगा?
ना सरकार को इनकी फिक्र न खेल प्रेमियों को है परवाह
कभी प्रेम तीरंदाजी की दुनिया में जलवे बिखेरने वाले एक सितारा माने जाते परंतु अनदेखी ने उनके इस प्रतिभा और हिम्मत दोनों को तोड़ कर रख दिया. सरायकेला के प्रेम चंद मार्डी की कहानी कुछ ऐसी हीं है. इनकी सुध न खेल प्रेमी ले रहे, न सरकार ले रही है और न ही तीरंदाजी संघ. मजबूरन प्रेम कभी ईंट भट्ठा तो कभी खेती में मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पेट पाल रहे है. एक पत्नी और दो बच्चों के साथ अपनी जीविका को चलाने के लिए ये खिलाड़ी आर्थिक तंगी को दूर करने के लिये कभी दूसरे के खेतों में धान का बिचड़ा रोपता है. कभी ईंट भट्ठा में काम करता है. इन दिनों अपने घर के आस-पास में नरेगा द्वारा नर्सरी में पेड़ पौधा लगाने का काम कर रहा है बता दें इस खिलाड़ी के घर की आर्थिक स्थित बहुत डवांडोल है.
जानिए पत्नी ने क्यों कहा की आँखों में सपनों की जगह अब बचे हैं सिर्फ आँसू
खिलाड़ी प्रेम की पत्नी से भी बातचीत करने पर पता चला कि सरकार से बहुत आस लगाने के बाद भी कोई मदद नही मिली तो मजबूरन खेती मजदूरी कर अपना पेट पाल रहे. इस खेल मे कुछ नही रखा है इतना समय दूसरे कामों मे देते तो जिंदगी मे इतनी परेशानी नही होती. पत्नी ने बताया कि महंगाई व आर्थिक समस्या के कारण काम करना पड़ रहा है. अभी तक कहीं से भी किसी प्रकार की मदद नहीं मिली है. कई वर्षों से सरकार से आस लगाए बैठे थे मगर मजबूरी में मजदूरी करनी पड़ती है. पति ने तीरंदाजी के बड़े-बड़े सपने देखे, पर अब उसकी आंखों में सपने की जगह आंसू हैं. अब तो ऐसी स्थिति हुई कि खेल को भी छोड़ना पड़ेगा नहीं तो घर चलाना भी मुश्किल हो जाएगा.
खेलें या घर चलाएं ? पेट की आग में चूक गया निशाना
बता दें घर-परिवार की आर्थिक समस्या को दूर करने के लिये पिछले कई सालों से हीं दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है. घर-परिवार की आर्थिक समस्या को दूर करने के लिये पिछले कई सालों से दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है. प्रेम मार्डी ने अपने सपने को अधूरा छोड़ घर-परिवार चलाने के लिये दिहाड़ी मजदूरी करना शुरू कर दिया. प्रेम चाँद मार्डी ने बताया तीरंदाजी के क्षेत्र में सरायकेला के साथ साथ झारखंड सहित देश का नाम अंतरराष्ट्रीय फलक तक रोशन करना चाहता हूं. लेकिन, समझ में हीं नहीं आता कि क्या करूं? घर चलायें या खेले? और खेले भी तो कैसे? अब 'निशाना' पेट की आग के सामने भटक गया है. राज्य सरकार को इसकी सुध नहीं . खिलाड़ियों की ऐसी अनदेखी से प्रतिभाएं मिट्टी मे मिलती जाएंगी.
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