धनबाद(DHANBAD): यह बात अब लगभग तय हो गई है कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन मंत्री नहीं बनेगी. उन्हें संगठन का काम देखना होगा. फिलहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए संगठन ज्यादा जरूरी है. केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन वृद्ध हो गए है. कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन फिलहाल जेल में है और विधानसभा चुनाव सिर पर है. लोकसभा चुनाव में तो झारखंड मुक्ति मोर्चा ने तीन सीटे जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली है. लेकिन विधानसभा का चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए अग्नि परीक्षा होगी. वैसे झारखंड सरकार अब पूरी तरह से चुनावी मोड में दिखने लगी है. मुख्यमंत्री चंपई सोरेन जिले -जिले घूम रहे हैं, पिटारा खोल रहे है. रोजगार से लेकर इलाज की सुविधाओं की घोषणा कर रहे है. पढ़ाई से लेकर आर्थिक स्थिति सुधार की बातें कर रहे है. इस परिस्थिति में झारखंड मुक्ति मोर्चा को और मजबूत करना चुनाव की दृष्टिकोण से पार्टी को अधिक जरूरी लगता है. हो भी क्यों नहीं. क्योंकि 2024 के विधानसभा चुनाव में एनडीए सरकार में फिर से काबिज होने का हर संभव प्रयास करेगा, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करानी होगी.
झामुमो को 2019 के रिकॉर्ड से जाना होगा आगे
कम से कम 2019 के रिकॉर्ड से आगे बढ़ना होगा. झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतर छोटी-छोटी परेशानियां भी है. हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन भाजपा में चली गई. यह अलग बात है कि दुमका लोकसभा सीट से वह चुनाव हार गई. तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के दो विधायक भी बागी बनकर चुनाव लाडे. यह अलग बात है कि झारखंड के लोगों ने उन्हें पूरी तरह से नकार दिया. चमरा लिंडा को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का तेवर थोड़ा नरम है लेकिन लोबिन हेंब्रम के खिलाफ झारखंड मुक्ति मोर्चा बहुत ही सख्त है. यह बात भी सच है कि जब लोकसभा चुनाव में विधायक बागी बनकर चुनाव लड़े, तो विधानसभा चुनाव में भी टिकट को लेकर खटपट हो सकती है. सभी को बांधकर रखना झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है. इस चुनौती से निपटने में कल्पना सोरेन पर भरोसा पार्टी जाता सकती है. इसकी पूरी संभावना है.
लोकसभा चुनाव में कल्पना सोरेन ने खूब किया प्रचार
लोकसभा चुनाव में कल्पना सोरेन ने जिस ढंग से प्रचार किया, लोगों को समेटने की कोशिश की, मुंबई से लेकर दिल्ली तक की सभाओं में मौजूदगी दर्ज कराई, इससे उनकी पहचान तो बढ़ी है. उनमें नेतृत्व क्षमता के गुण भी दिखने लगे है. ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा मंत्री पद देकर कल्पना सोरेन को उलझा कर रखना कदापि नहीं चाहेगा. यह अलग बात है कि चुनाव के ठीक दो-तीन महीना पहले 12वें मंत्री की सीट को भी भरने की बात चल रही है. आलमगीर आलम का मंत्री पद अभी भी खाली है. सीएलपी लीडर का पद भी खाली है. 12वां मंत्री पद भी खाली है. ऐसे में इन पदों पर क्या करना है, इसका निर्णय तो हो गया है. अब सिर्फ औपचारिक घोषणा होनी बाकी है. वैसे झारखंड सरकार में शामिल कांग्रेस में भी हलचल है. यह हलचल मंत्रियों के परफॉर्मेंस को लेकर है. कृषि मंत्री बादल पत्र लेख सबके निशाने पर है. उनकी कुर्सी पर खतरा है, लेकिन चुनाव को देखते हुए कांग्रेस भी फूंक -फ़ूंक कर कदम उठाना चाह रही है. झारखंड के प्रभारी गुलाम अहमद मीर और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के बीच सबकुछ फाइनल हो गया है.
कांग्रेस ने झामुमो को सबकुछ बता दिया है
इसकी जानकारी झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी दे दी गई है. हो सकता है कि जल्द आलमगीर आलम की जगह मंत्री का पद भर दिया जाए और 12 वे मंत्री की कुर्सी भी किसी को दे दी जाए. क्योंकि अब जो भी काम होंगे, वह चुनाव को देखते हुए होंगे. सीता सोरेन के भाजपा में जाने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक झटका जरूर लगा था, लेकिन इस झटके से अब झारखंड मुक्ति मोर्चा लगता है कि उबर गया है. वैसे हेमंत सोरेन के जेल में रहने का असर तो झारखंड मुक्ति मोर्चा पर है. लेकिन इसको कैसे और कितना मिनिमाइज किया जा सके, इसके लिए कल्पना सोरेन को जिम्मेवारी दी जा सकती है. कल्पना सोरेन सक्षम भी है. नाप तोलकर बोलती भी है. समय तो अधिक नहीं हुआ है लेकिन राजनीति में परिपक्व दिख रही है. ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा अथवा हेमंत सोरेन या कल्पना सोरेन मंत्री पद के बजाय संगठन में काम कराना -करना बेहतर समझ सकते है. अगर 2024 में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में सरकार बन गई तो मंत्री पद कल्पना सोरेन के लिए कोई बड़ी बात नहीं रहेगी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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