धनबाद(DHANBAD): झारखंड की पांच लोकसभा आदिवासी सीटों पर एनडीए की हार को भाजपा पचा नहीं पा रही है. उसके हर कदम आदिवासियों को अपने पक्ष में करने की ओर बढ़ रहे है. झारखंड से सटे ओडिशा इसका ताजा उदाहरण है. लगातार 24 साल तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक का समय अब खत्म हो चला है. भारतीय जनता पार्टी को ओडिशा में पहली बार विधानसभा में पूर्ण बहुमत मिला है. भाजपा ने वहां सरकार भी बना ली है. मुख्यमंत्री के नाम की सूची में कई लोग थे, लेकिन फैसला मोहन चारण माझी पर हुआ और उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया, छत्तीसगढ़ के बाद ओडिशा में भी आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया गया है. चाहे जिस कारण से भी ओडिशा में भी आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए गए हो , लेकिन इसकी वजह को झारखंड से जोड़कर देखा जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद लोकसभा चुनाव के परिणाम यह बता रहे हैं कि आदिवासियों में गुस्सा है.
आदिवासी वोटरों को साधना भाजपा की पहली प्राथमिकता
आदिवासी वोटरों को साधना भाजपा की पहली प्राथमिकता दिख रही है. झारखंड में भी 2014 में भाजपा ने गैर आदिवासी मुख्यमंत्री को बनाया, लेकिन फिर 2019 में भाजपा झारखंड में सत्ता में नहीं लौट पाई. उसके बाद भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को उनकी अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से लाकर प्रदेश अध्यक्ष बनाया. फिलहाल झारखंड में भाजपा की ओर से बाबूलाल मरांडी आदिवासी चेहरा है. झारखंड भी आदिवासी बहुल राज्य है और इस प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने है. ओडिशा में गैर आदिवासी सीएम बनाए जाने की स्थिति में कहीं झारखंड में आदिवासियों की उपेक्षा का संदेश न चला जाए, इस डर से ही संभवत बीजेपी ने ओडिशा में भी आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया है. हालांकि इसके पहले भी छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाया गया था. लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी हुए थे.
ओडिशा विधानसभा में बीजेपी को 78 सीटों पर जीत मिली
विधानसभा में बीजेपी को 78 सीटों पर जीत मिली. ओडिशा विधानसभा में कुल 147 सेट हैं और बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा 74 सीटों का है. यह पहला मौका है, जब ओडिशा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत के साथ सरकार चलाने का जनादेश मिला है. हालांकि भाजपा पहले भी ओडिशा की सत्ता में रही है, लेकिन नवीन पटनायक की अगुवाई वाली बीजू जनता दल के साथ गठबंधन पार्टनर के तौर पर. जो भी हो झारखंड विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा से जुड़ गया है. जीत की कवायद शुरू है. बाबूलाल मरांडी का भविष्य भी झारखंड विधानसभा का चुनाव ही तय करेगा. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अभी जेल में है. चुनाव होने तक वह बाहर निकलेंगे अथवा नहीं, यह कहना मुश्किल है. 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा 30 सीटों पर जीत हासिल किया था, तो कांग्रेस के 16 विधायक जीत पाए थे. भाजपा को केवल 25 पर ही संतोष करना पड़ा था.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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