धनबाद(DHANBAD) : सूत्रों पर भरोसा करें तो एके राय की पार्टी मार्कसिस्ट कोऑर्डिनेशन कमिटी (मासस) का भाकपा माले में विलय होना लगभग तय हो गया है. सिर्फ औपचारिक घोषणा होनी ही बाकी है. इसी महीने के अंत में हो सकता है कि विलय की औपचारिक घोषणा हो जाए. इसके साथ ही कम से कम झारखंड के चार विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों का भविष्य क्या होगा, इसको लेकर भी चर्चा तेज हो गई है. इन चार सीटों में सिंदरी, निरसा , बगोदर और राजधनवार सीट शामिल है. यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि भाकपा माले गठबंधन में शामिल है. ऐसे में विधानसभा चुनाव भी गठबंधन में ही लड़ा जाएगा. फिर धनबाद के कम से कम दो नेताओं का भविष्य किधर जाएगा, सिंदरी से अगर कोई झामुमो का उम्मीदवार बनना चाहता है, तो उसका क्या होगा. यह सवाल उठने लगे है. निरसा से मासस की टिकट पर अरूप चटर्जी चुनाव लड़ते रहे हैं तो झारखंड मुक्ति मोर्चा की टिकट पर अशोक मंडल चुनाव लड़ते रहे है.
विलय का क्या और कैसे पड़ेगा असर
ऐसे में अगर गठबंधन होगा तो किसी एक को ही निरसा विधानसभा से लड़ना पड़ेगा. टिकट अरूप चटर्जी को मिलेगा या अशोक मंडल को, यह तो भविष्य की बात है. इसी तरह अगर सिंदरी की बात की जाए तो मासस की ओर से आनंद बाबू चुनाव लड़ते रहे हैं, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार भी यहां चुनाव लड़ते रहे है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा छोड़ झामुमो में गए पूर्व विधायक फुलचंद मंडल ने चुनाव लड़ा था. ऐसे में गठबंधन होगा तो कोई एक ही व्यक्ति लड़ सकता है. वैसे, चर्चा तेज है कि सिंदरी विधानसभा से आनंद बाबू के बेटे 2024 में विधानसभा का चुनाव लड़ सकते है. ऐसे में फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के किसी को टिकट नहीं मिलेगा. बगोदर और राजधनवार से भी भाकपा माले का ही कोई उम्मीदवार लड़ सकता है, क्योंकि गठबंधन होने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा को वहां से टिकट मिलने की संभावना बिल्कुल नहीं रहेगी. ऐसे में चार विधानसभा का गणित बहुत कुछ तय करेगा.
झारखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक है, तैयारियां शुरू है
झारखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक है. सभी पार्टियों ने अपने-अपने ढंग से तैयारी शुरू कर चुकी है. ऐसे में ए.के राय की पार्टी का भाकपा माले में विलय की बात सामने आ गई है. इससे निश्चित रूप से कुछ गणित बिगड़ेगा. वैसे भी, एके राय की पार्टी के विलय को लेकर अभी भी कई तरह की बातें हवा में तैर रही है. देखना होगा आगे-आगे होता है क्या. सवाल यह है कि क्या अब एके राय की पार्टी का अस्तित्व मिट जाएगा? क्या जिस कड़ी मेहनत से एके राय ने पार्टी खड़ी की थी, वह अस्तित्व विहीन हो जाएगी? क्या एके राय की पार्टी के खेवन हार खुद को सक्षम नहीं महसूस कर रहे हैं? इस तरह के कई सवाल हैं, जो एके राय के बाद उनके नाम का झंडा ढोने वालों से लोग पूछ रहे है. लोग यह कह रहे हैं कि एके राय ने तो अपने जीवन काल में ही सब कुछ अपनी विरासत संभालने वालों को दे दिया था. फिर विरासत संभालने वाले आज इतने कमजोर क्यों हो गए कि अब वह दूसरी पार्टी में आश्रय ढूंढ रहे है. सूत्र तो यह भी बताते हैं कि विलय के प्रस्ताव पर दोनों संगठनों के केंद्रीय नेताओं के बीच बातचीत हो गई है. विलय की प्रक्रिया पर बहुत जल्द अंतिम फैसला हो सकता है.
विलय की बात 2021 से ही चल रही थी, अब आकर ले रही
लोग यह भी बताते हैं कि 2021 से ही विलय की बातचीत चल रही है. अब देखना है कि मार्क्सवादी समन्वय समिति का विलय होता है या फिर इसमें पेंच फंस जाता है. फिलहाल एके राय की पार्टी के दो मजबूत स्तंभ धनबाद में है. सिंदरी के पूर्व विधायक आनंद महतो और निरसा के पूर्व विधायक अरूप चटर्जी. दोनों में कितनी एकता है या दोनों के रिश्ते कैसे हैं, इसको लेकर कभी किसी ने खुलकर तो कुछ नहीं कहा. लेकिन रिश्तो में खटास की गंध कभी-कभार मिलती रहती है. बता दें कि आज झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन में भी एके राय की बड़ी भूमिका थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा का जन्म तो धनबाद में ही हुआ था. शिबू सोरेन, एके राय और विनोद बिहारी महतो ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था. उस समय तीनों नेता बड़े नेता मानें जाते थे. यह अलग बात है कि उस समय झारखण्ड अलग नहीं हुआ था. वैचारिक मतभेद होने पर एके राय धीरे-धीरे अलग हो गए और मार्क्सवादी समन्वय समिति के नाम से अपनी पार्टी बनाई और पार्टी चलाने लगे. जो भी हो, एके राय की राजनीतिक हनक कोयलांचल ने महसूस किया था. तीन बार के सांसद और तीन बार के विधायक रहे एके राय ने अपना जीवन ही कोयला मजदूरों के नाम कर दिया था.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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