धनबाद के उद्योगपतियों ने कोयला प्रोडक्शन सिस्टम पर उठाए गंभीर सवाल, हाल यही रहा तो कहना पड़ सकता है कि धनबाद कभी हुआ करता था औद्योगिक शहर
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धनबाद (DHANBAD) : धनबाद के उद्यमियों ने कोयला उद्योग की पूरी सिस्टम पर ही सवाल खड़ा किया है. उनका कहना है कि कोयला, बिजली संकट के साथ रंगदारी से यहां के उद्योग त्रस्त हैं. राज्य सरकार हो अथवा केंद्र सरकार, धनबाद में संचालित हार्ड कोक उद्योग को लेकर कोई सरकार गंभीर नहीं है. धनबाद में रंगदारी चरम पर है. दिनदहाड़े गोली, बम चल रहे हैं. रंगदारी मांगी जा रही है. ऐसे माहौल में उद्योग चलाना हिमालय पर चढ़ने के समान है.
कोयला मंत्रालय को भी उद्योगों की बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराया. साथ ही कोयला उत्पादन के जो तरीके हैं, उनपर पर भी कई सवाल दागे. बात तो अब ग्रीन कोक बनाने की हो रही है. ग्रीन कोक का तात्पर्य है कि 100 फ़ीसदी प्रदूषण मुक्त कोयला. अभी यह शोध की प्रक्रिया में है. लेकिन फिलहाल जो हालात हैं, वह सही नहीं है. आउटसोर्सिंग के जिम्मे कोयला उत्पादन कर कोयला कंपनिया कितना नुकसान कर रही है. यह बाद में पता चलेगा. 1971 में कोकिंग कोल का राष्ट्रीयकरण हुआ और 1973 में नन कोकिंग का राष्ट्रीयकरण हुआ. लेकिन फिलहाल अगर धनबाद की बात की जाए तो यहां के कोयला अधिकारियों को कोकिंग और नॉन कोकिंग में फर्क ही समझ में नहीं आता है.
यहां फिलहाल ब्लास्टिंग माइनिंग की प्रथा प्रचलन में है. ऐसे में जब ब्लास्टिंग की जाती है तो कोकिंग और नन कोकिंग साथ-साथ निकलते हैं. फिर दोनों को अलग-अलग करना मुश्किल होता है. इसके लिए सरफेस माइनिंग की जरूरत है, जो अब बंद हो गई है. एक ही सिम में कोकिंग और नन कोकिंग दोनों होते है. ऐसे में बिना सरफेस माइनिंग के कोकिंग और नॉन कोकिंग कोल को अलग करना मुश्किल है. लोकल उद्योगों को तो कोयला के लिए ई ऑक्शन में भाग लेने को कहा जाता है. और ई ऑक्शन की वजह से ही कोयला चोरी को ताकत मिलती है. धनबाद में फिलहाल 40 हार्ड कोक उद्योग बंद हो गए हैं. जो चल रहे हैं वह अभी पूरी क्षमता के साथ नहीं चल रहे हैं. ऐसे में एक दिन समय आएगा जब यह कहना पड़ेगा की धनबाद औद्योगिक नगरी कभी हुआ करता था.
रिपोर्ट. धनबाद ब्यूरों
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