धनबाद(DHANBAD)सवाल बड़ा है. चौंकाने वाला भी है. जिसने भी राजनीतिक "संत" कहे जाने वाले एके राय की राजनीति को जाना और पढ़ा होगा, वह निश्चित रूप से आश्चर्य में पड़ जाएगा. सवाल यह है कि क्या अब एके राय की पार्टी का अस्तित्व मिट जाएगा? क्या जिस कड़ी मेहनत से एके राय ने पार्टी खड़ी की थी, वह अस्तित्व विहीन हो जाएगी? क्या एके राय की पार्टी के खेवन हार खुद को सक्षम नहीं महसूस कर रहे हैं? क्या एके राय की तरह उन में जुझारूपन नहीं है? इस तरह के कई सवाल हैं, जो एके राय के बाद उनके नाम का झंडा ढोने वालों से लोग पूछ रहे है. लोग यह कह रहे हैं कि एके राय ने तो अपने जीवन काल में ही सब कुछ अपनी विरासत संभालने वालों को दे दिया था. फिर विरासत संभालने वाले आज इतने कमजोर क्यों हो गए कि अब वह दूसरी पार्टी में आश्रय ढूंढ रहे है.
मासस के विलय की चल रही है तैयारी
जानकारी निकल कर आ रही है कि एके राय की मार्क्सवादी समन्वय समिति(मासस ) का भाकपा माले में विलय हो सकता है. सूत्र तो यह भी बताते हैं कि विलय के प्रस्ताव पर दोनों संगठनों के केंद्रीय नेताओं के बीच बातचीत हो गई है. विलय की प्रक्रिया पर बहुत जल्द अंतिम फैसला हो सकता है . लोग यह भी बताते हैं कि 2021 से ही विलय की बातचीत चल रही है. अब देखना है कि मार्क्सवादी समन्वय समिति का विलय होता है या फिर इसमें पेंच फंस जाता है. फिलहाल एके राय की पार्टी के दो मजबूत स्तंभ धनबाद में है. सिंदरी के पूर्व विधायक आनंद महतो और निरसा के पूर्व विधायक अरूप चटर्जी. दोनों में कितनी एकता है या दोनों के रिश्ते कैसे हैं, इसको लेकर कभी किसी ने खुलकर तो कुछ नहीं कहा. लेकिन रिश्तो में खटास की गंध कभी -कभार मिलती रहती है. बता दें कि आज झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन में भी एके राय की बड़ी भूमिका थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा का जन्म तो धनबाद में ही हुआ था.
तीन ने मिलकर किया था झामुमो का गठन
शिबू सोरेन, एके राय और विनोद बिहारी महतो ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था. उस समय तीनों नेता बड़े नेता माने जाते थे. यह अलग बात है कि उस समय झारखण्ड अलग नहीं हुआ था. वैचारिक मतभेद होने पर एके राय धीरे-धीरे अलग हो गए और मार्क्सवादी समन्वय समिति के नाम से अपनी पार्टी बनाई और पार्टी चलाने लगे. जो भी हो, एके राय की राजनीतिक हनक कोयलांचल ने महसूस किया था. तीन बार के सांसद और तीन बार के विधायक रहे एके राय ने अपना जीवन ही कोयला मजदूरों के नाम कर दिया था. अंतिम- अंतिम समय तक उन्होंने निभाया भी. ऐसी बात नहीं है कि एके राय के परिवार वालों ने उन्हें छोड़ दिया था.
बीमारी में भी एके राय ने धनबाद नहीं छोड़ा
लेकिन जब वह बीमार होकर सुदामडीह में कार्यकर्ता के घर रहने लगे तो उनके परिवार वालों ने उन्हें घर चलने का आग्रह किया, लेकिन वह उसे ठुकरा दिए और धनबाद में ही उन्होंने अंतिम सांस ली. लेकिन उनकी विरासत संभालने वाले उनके संघर्ष को जानते- समझते हुए भी विलय की तैयारी कर रहे है. तो लोग उनसे सवाल तो करेंगे ही. कोयलांचल की राजनीति में यह कितना सफल या असफल होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. फिलहाल एके राय की पार्टी का अस्तित्व खत्म होने को लेकर कोयलांचल में कई तरह की चर्चाएं है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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