दुमका (DUMKA): इन दिनों झारखंड गर्मी से झुलस रहा है. इसे देखते हुए उपराजधानी दुमका का पारा 45 डिग्री सेल्सियस के पार है. सड़कों पर अघोषित कर्फ्यू का नजारा है, क्योंकि आसमान से अंगारे बरस रहे हैं. हर तरफ त्राहिमाम मचा है. इस सबके बीच इंसान तो अपने आप को घरों में कैद कर अपनी जिंदगी की हिफाजत कर रहे हैं. लेकिन बेजुबान पशु पक्षी के अस्तित्व पर खतरा पर बादल मंडरा रहा है. इसका एक नजारा कल शुक्रवार को दुमका में देखने को मिला.
पेड़ों से चमगादड़ गिर कर मरने लगे
बता दें कि दुमका में डीसी आवास और उसके आसपास पेड़ पर चमगादड़ का स्थायी बसेरा है. शुक्रवार दोपहर बाद पेड़ से चमगादड़ अचानक नीचे गिरने लगे और तङप-तङप पर मरने लगे. सड़कों पर चमगादड़ को मरा देख यह खबर जंगल मे आग की तरह फैल गयी. मौसम की बेरुखी की परवाह किए बगैर जिले के कुछ पक्षी प्रेमी स्थल पर पहुचे. सड़क पर तङप रहे चमगादड़ को पानी पिलाने लगे. पानी पीकर चमगादड़ में जान आयी. प्रयास किया गया कि पेडं पर पानी का छिड़काव हो. सूचना पर वन विभाग की टीम भी पहुचीं. विचार विमर्श का दौर चल ही रहा था कि तब तक सूरज की तपिश कम होने लगी. गोधूली बेला में चमगादड़ का झुंड जिसमें उड़ने की क्षमता थी, निकल पड़ा पानी की तलाश में. डीसी चौक से सटे खूंटा बांध तालाब के चारों ओर चमगादड़ ही चमगादड़ नजर आने लगे. जीवन की आश में उड़ते हुए चमगादड़ बीच-बीच में तालाब में डुबकी लगाने लगे. लोग इस दृश्य को अपने मोबाइल में कैद करते हुए यहीं कहते नजर आए की बिन पानी सब सून.
बेजुवानों की मौत का जिम्मेवार कौन
आज शनिवार को भी गर्मी का वही हाल है. ना जाने कितने बेजुबान तङप-तङप कर दम तोड़ दे. लेकिन सवाल उठता है कि बेजुवानों की मौत का जिम्मेदार कौन है? इस सवाल का जबाब ढूंढने के पहले हम आपको यह बताना पड़ेगा कि हमने प्रकृति का कितना ख्याल रखा. प्रकृति से हम अपेक्षा करते है कि हमारी रक्षा करे, लेकिन प्रकृति की रक्षा के लिए हमने क्या किया. अपनी विलासिता की पूर्ति के लिए हमने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की. पेड़ लगाने पर हमने विचार नहीं किया. वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से आगाह करते रहे, लेकिन हमने उसे दरकिनार कर फ्रीज, एसी जैसे उपकरण लगाए. जल संरक्षण की दिशा में कदम उठाने के बजाय हमने जल का दोहन किया. कंक्रीट की इमारतें खड़ी की और ना जाने क्या क्या किया.
जब हमने अपनी सुख सुविधा के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ किया तो समय आने पर प्रकृति हमें अपनी गलती का एहसास कराने के लिए सबक जरूर सिखाएगी. मौसम की बेरुखी यही कहता है कि अभी भी समय है संभलने का, प्रकृति के संरक्षण का. अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब बेजुबानों की भांति हम इंसान भी तङप-तङप कर दम तोड़ देंगे.
रिपोर्ट. पंचम झा
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