(Tnp Sports):-काबिलियत किसी के रहमोकरम की मोहताज नहीं होती है, बल्कि वो तो अपने जी तोड़ मेहनत और जूनुन की बदौलत दुनिया को दिखा दिया करती है कि आखिर उसमे क्या दम होता है. गरीबी और फाकाकशी उसके रास्ते को रोड़ा नहीं बन सकते,बल्कि वो तो कांटों भरे राह में भी रास्ता बना लेते हैं. झारखंड में भी गुदड़ी के लालों ने समय-समय पर ये करके दिखाया है और जता दिया है कि उनमे कितना दम है. यहां एक कहानी होनहार बेटी कि है, जिसकी मुफलिसी की चादर इतनी मोटी थी कि , उसे फाड़कर और माड़-भात खाकर ही ऐसे दौड़ लगायी कि सभी के आंखों का तारा बन गई . मंगलवार को रांची में आय़ोजित राज्य स्तरीय एसजीएफआई खेलों झारखंड एथलेटिक्स प्रतियोगिता में यही देखने को मिला.
गुरुबारी बंकिरा ने जीता गोल्ड
पश्चिमी सिंहभूम के हरिमारा गांव की 12 साल की गुरुबारी बंकिरा एक ख्वाहिश लेकर राजधानी रांची पहुंची थी. उसने अपने पैरो की ताकत , अपनी क्षमता और अभ्यास पर पूरा एतबार था . हालांकि, इस गरीब बेटी के पांव में जूते नही थे. वह नंगे पांव एथेलेटिक्स ट्रेक पर दौड़ने को बेताब थी. लेकिन, आयोजकों ने खाली पैर दौड़ने की इजाजत नहीं दी. जिससे गुरुबारी बंकिरा मायूस हो गई. हालांकि, बाद में किसी तरह से एक फुटबॉल का बूट किसी से उधार मिला, जिसने पहनकर उसने ट्रेक पर दौड़ लगा दी . आयोजकों की नजर भी उसके जूते पर नहीं पड़ी और 100 मीटर की इस रेस में वो इतना तेज भागी की नंबर वन बनकर दम लिया. जिसने भी उसकी दौड़ को देखा,वह दांतो तले उंगली दबा ली . ये जीत सिर्फ जीत नहीं थी, बल्कि गुरबारी का सपना साकार होने जैसा था. 100 मीटर की दौड़ गुरुबारी ने 14.60 सेकेंड में पूरा किया.
200 मीटर की रेस में भी लहराया परचम
100 मीटर की दौड़ जीतने के बाद गुरुबारी का हौंसला सातवें आसमान पर जा पहुंचा, अब उसकी नजर 200 मीटर की रेस पर थी. हालांकि, इस बार साथियों ने उसके लिए प्लास्टिक के जूते का इंतजाम किया . इस बार तो पूरे इत्मिनान के साथ ऐसी दौड़ लगायी, जैसे मानो हवा से बात कर रही हों . उसने 200 मीटर की रेस को जीत कर स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया. उसने ये रेस 29.20 सेकेंड में जीता. सबसे काबिले गौर क रने वाली बात ये है कि उसने सुविधाओं से लैस झारखंड स्टेट स्पोर्टस प्रमोशन सोसायटी के प्रशिक्षुओं को शिकस्त देकर अपनी काबिलयत का डंका बजाया.
गुरुबारी के पिता हैं किसान
आर्थिक रूप से कमजोर गुरुबारी का बचपन कटौतियों में ही बीत रहा है. उनके पिता पलटन बंकिरा पेशे से एक किसान हैं. गुरुबारी का एक छोटा भाई और दो बड़ी बहनें हैं. हरिमारा विद्यालय में आठवीं कक्षा में गुरुबारी पढ़ती है, खेल के प्रति उसका जुनून शुरु से ही रहा है, इसे लेकर वो रोज दौड़ लगाती है. दौड़ने को लेकर उसका जूनुन इस कदर है कि कभी मांड पीकर , तो कभी भूखे पेट ही दौड़ लगा देती है. रोजाना स्कूल जाने पर गुरुबारी वहां भी दौड़ने से पीछे नहीं हटती. स्कूल प्रबंधन ने उसकी प्रतिभा को देखते हुए रांची में होने वाले राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए जिला शिक्षा अधीक्षक के पास नाम भेजा था. जिसके बाद वह भाग लेने रांची पहुंची .
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