धनबाद(DHANBAD) : निरसा में माले का आंदोलन खत्म हो गया है. इसके साथ ही सवाल भी खड़ा हो गया है कि इस लड़ाई में विधायक अरूप चटर्जी जीते कि पूर्व विधायक अपर्णा सेनगुप्ता. गोपीनाथपुर कोलियरी में के जीसीपीएल आउटसोर्सिंग कंपनी में माले और भाजपा समर्थकों की हुई भिड़ंत के बाद रविवार को माले ने आंदोलन वापस ले लिया. इस मौके पर माले विधायक अरूप चटर्जी ने सभा की और इसके लिए सभी आंदोलनकारियों को बधाई दी. विधायक ने कहा कि फिलहाल मामला सलट गया है. लेकिन लड़ाई अभी बाकी है. लोगों के संघर्ष के कारण ही प्रबंधन को झुकना पड़ा. उन्होंने यह भी बताया कि जीसीपीएल के सारे कांटेक्ट की समीक्षा होगी. फिर से टेंडर होगा, जो सबके लिए खुला रहेगा. मैनपावर की भी समीक्षा होगी. 25 चालक, 45 सिक्योरिटी गार्ड और हेल्पर, 20 आईटीआई और डिप्लोमा तथा तीन ओवरसियरों को रखा जाएगा. अंडरग्राउंड माइनिंग शुरू होने से 200 और लोगों को रोजगार मिलेगा. विधायक ने कहा कि इंडिया गठबंधन के साथियों के संघर्ष का यह परिणाम है.
पूर्व विधायक अपर्णा सेनगुप्ता बोली-नहीं चलने दी जाएगी लाल झंडे की मनमानी
इधर, पूर्व विधायक अपर्णा सेनगुप्ता ने भी भाजपा के बैनर तले आंदोलन स्थल पर सभा की. उन्होंने कहा कि तीन पंचायत से जुड़े लोगों की लड़ाई अंतिम तक लड़ी जाएगी. लाल झंडा की मनमानी चलने नहीं दी जाएगी. विधायक सरकार व प्रशासन के बल पर लोगों के साथ अन्याय कर रहे है. जो भी हो, लेकिन चुनाव का परिणाम आने के बाद पहली बार निरसा का गोपीनाथपुर मुद्दा बना और माले और भाजपा समर्थित लोगों में भिड़ंत हो गई. आरोप लगा कि माले समर्थकों का अर्द्ध निर्मित पंडाल भाजपा के लोगों ने आग के हवाले कर दिया. इस मामले में खूब तनातनी चली. दरअसल, 2024 के चुनाव में निरसा में भाजपा का गढ़ दरक गया है. वैसे तो अपर्णा सेनगुप्ता और अरूप चटर्जी परस्पर एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी रहे है. 2019 में अपर्णा सेनगुप्ता भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थी. तो 2024 में कम वोट से ही सही, माले के टिकट पर अरूप चटर्जी चुनाव जीत गए है. पहले भी दोनों में राजनीतिक मुद्दों को लेकर टकराहट होती थी. यह टकराहट चुनाव के बाद भी जारी है. इस लड़ाई में अपर्णा सेनगुप्ता की जीत हुई या विधायक अरुण चटर्जी जीते, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. निरसा के इतिहास की बात की जाए तो कम से कम 2000 के बाद तो गुरुदास चटर्जी, अरूप चटर्जी, अपर्णा सेनगुप्ता के बीच यह सीट बंटती रही है.
साल दो हज़ार के बाद तीन लोगो में बंटती रही है निरसा सीट
यह अलग बात है कि अशोक मंडल भी निरसा से विधायक बनने की लगातार कोशिश करते रहे, लेकिन अभी तक विधायक नहीं बन पाए है. 2014 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के गणेश मिश्रा ने अरूप चटर्जी का बेजोड़ पीछा किया और मात्र कुछ ही वोटो से हार गए. 2014 में अरूप चटर्जी को 51,581 वोट मिले थे, जबकि गणेश मिश्रा को 50,546 वोट प्राप्त हुए थे. अशोक मंडल को 43,32 9 वोट मिले थे, जबकि अपर्णा सेनगुप्ता को 23,633 वोट मिले थे. अशोक मंडल झारखंड मुक्ति मोर्चा तो अपर्णा सेनगुप्ता फॉरवर्ड ब्लॉक से चुनाव लड़ रही थी. यह अलग बात है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी निरसा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा को बढ़त मिली थी. तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को बढ़त मिली है. यह इलाका सेमी अर्बन इलाका है. ग्रामीण परिवेश के लोग भी हैं, तो शहरी भी यहां रहते है. बोलचाल और कल्चर बंगाल का यहां देखा जाता है. वैसे, कोयला चोरी और अवैध खनन को लेकर यह इलाका भी बदनाम रहा है. इस इलाके में कोल इंडिया की अनुषंगी ईकाई ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड काम करती है. इस इलाके की खासियत है कि बात-बात में यहां राजनीति होती है. राजनीतिक दल के लोग भी सक्रिय रहते है. कम से कम दो महत्वपूर्ण लोगों की हत्या से यह इलाका चर्चा में आ गया था. गुरुदास चटर्जी की भी हत्या हुई थी तो सुशांतो सेन गुप्ता की भी हत्या कर दी गई थी.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
4+