बोकारो(BOKARO): बोकारो जिले के गोमिया से एक दिल दहला देने वाला घटना सामने आई है. जहां सरकारी सिस्टम से हार कर एक दिव्यांग युवती की मौत बुधवार की सुबह हो गई. जहां यह देखने को मिल रहा है कि सबकुछ जानते हुए भी , बार-बार हालात को बताने के बावजूद सिस्टम की देरी और लापरवाही ने खुशबू कुमारी की मौत हो गयी.
यह है मामला
जानकारी के अनुसार गोमिया प्रखंड के खखंडा गांव निवासी गिरधारी महतो की पुत्री खुशबू कुमारी (उम्र लगभग 25 वर्ष) बचपन से ही दिव्यांगता की शिकार थी. वह चलने-फिरने में लाचार थी. 24 घन्टे बिस्तर में ही पड़े-पड़े रहती थी. खुशबू के पिता खेतीबाड़ी एवं मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का पेट पालते थे,और उसी में से थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर वे अपने पुत्री खुशबू का इलाज भी करवाते थे. पिता के द्वारा इलाज करवाने के बावजूद खुशबू की स्थिति दिनों दिन बिगड़ती चली जा रही थी. समयांतराल में खुशबू को सरकार के तरफ से दिव्यांग पेंशन भी मिलने लगा. परन्तु वर्ष 2018 में आधार कार्ड के रूप में सरकारी सिस्टम फॉलो नहीं होने के कारण खुशबू को पेंशन मिलना भी बंद हो गया.
मंत्री चंपई सोरेन ने खुशबू मामले में लिया था संज्ञान
लाचार पिता ने खुशबू का आधारकार्ड बनवाने के लिए प्रखंड मुख्यालय गोमिया का चक्कर लगाना शुरू कर दिया. पंचायत के प्रतिनिधियों के द्वारा भी खुशबू का आधारकार्ड बनवाने का काफी प्रयास किया गया, परन्तु आधारकार्ड नहीं बन पाया. एक समाजसेवी के द्वारा सूबे के परिवहन एवं कल्याण मंत्री चंपई सोरेन को ट्वीटर के माध्यम से खुशबू की गंभीर हालत के बारे में जानकारी दी, तब मंत्री चंपई सोरेन ने भी मामले में गंभीरता दिखाते हुए बोकारो के उपायुक्त को निर्देश देते हुए कहा था कि इन्हें (खुशबू) को समाजिक सुरक्षा एवं समाज कल्याण की अधिकतम योजनाओं से जोड़ने का प्रयास करें. अगर खुशबू बेटी को चिकित्सा या किसी अन्य मदद की जरूरत हो तो उपलब्ध करवाएं. इसके बावजूद भी खुशबू को किसी भी तरह के सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया.
सरकारी सिस्टम के आगे जिंदगी की जंग हार गई खुशबू
आधार नहीं रहने के कारण खुशबू को पेंशन मिलना भी बंद हो गया. आखिरकार सरकारी सिस्टम के गाफिल रवैये के आगे लाचार खुशबू काल के गाल में समा गयी. उसकी मौत तमाम सवाल खड़े करती है और उन बाबूओं से पूछती है कि आखिर उसकी मौत का जिम्मेवार कौन है. हालांकि, इस संबंध में गोमिया के बीडीओ कपिल कुमार का कहना है कि जिला से आदेश मिलने के बाद तीन-चार दिन पहले ही प्रखंड से आधारकार्ड बनवाने की मशीन लेकर ऑपरेटर के द्वारा खुशबू के यहां जाकर आधारकार्ड बनवाने की प्रक्रिया कर दिया गया था. संभवतः 12 से 15 दिनों में खुशबू का आधारकार्ड बन जाता. इसके बनने के साथ ही खुशबू को सभी तरह के सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगता. वैसे यहां सवाल है कि जो सिस्टम दिन रात जनता की सेवा के लिए बना है, इसके बावजूद भी एक दिव्याग की मौत तड़प-तड़पकर हो जाना एक आम इंसान की आस को मायूसी में तब्दील कर देता है . यह सरकार से सवाल करता है कि जिन बाबुओं के कंधों पर उन्हें देखेने की जिम्मेदारी है अगर वो ही नहीं देखेंगे तो फिर उम्मीद किससे की जाएगी ?.
रिपोर्ट: संजय कुमार
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