धनबाद(DHANBAD) | संथाल परगना के तीन सीटों में से एक सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की है. भाजपा के फायर ब्रांड नेता निशिकांत दुबे इस बार भी गोड्डा से सांसद बन गए है. प्रदीप यादव गोड्डा से इंडिया गठबंधन यानी कांग्रेस के उम्मीदवार थे. गोड्डा से गठबंधन के टिकट के बंटवारे में भी दुविधा की स्थिति रही. पहले महागामा की विधायक दीपिका सिंह पांडे को उम्मीदवार बनाया गया, फिर निर्णय को बदलकर प्रदीप यादव को उम्मीदवार बना दिया गया. लेकिन सबसे बड़ी बात यह हुई कि गोड्डा लोकसभा के जिस पोड़ैयाहाट विधानसभा से प्रदीप यादव विधायक हैं, वहीं उनको प्रतिद्वंदी से 8,540 कम वोट मिले. इसकी चर्चा सियासी हलकों में खूब चल रही है. जरमुंडी से भी कांग्रेस के विधायक बादल पत्र लेख हैं लेकिन यहां भी कांग्रेस, प्रतिद्वदी भाजपा से लगभग 44,398 वोटो से पीछे चली गई. मधुपुर से प्रदीप यादव को निशिकांत दुबे की तुलना में 8,877 अधिक मत प्राप्त हुए. यहाँ झामुमो के विधायक है. देवघर में निशिकांत दुबे को 41,738 की लीड मिली. गोड्डा विधानसभा सीट पर प्रदीप यादव निशिकांत दुबे से 17 ,097 वोटो से पीछे रहे.
महागामा में तो वोट लगभग बराबरी के रहे
महागामा में तो वोट लगभग बराबरी के रहे. यही महागामा विधानसभा क्षेत्र है, जहां से दीपिका सिंह पांडे विधायक है. लेकिन वोट की बराबरी लगभग की रही. निशिकांत दुबे को 99,018 वोट मिले जबकि प्रदीप यादव को 99,139 मत प्राप्त हुए. अगर जरमुंडी की बात की जाए तो निशिकांत दुबे को 1,07,082 वोट मिले तो प्रदीप यादव को 62,684 वोट प्राप्त हुए. अब यहां सवाल उठता है कि जरमुंडी में कांग्रेस के विधायक रहते हुए प्रदीप यादव कैसे पीछे हो गए. गोड्डा लोक सभा सीट हॉट सीट बनी हुई थी. निशिकांत दुबे का विरोध भी हो रहा था. उनके खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में थे. पंडा समाज भी नाराज था, फिर भी निशिकांत दुबे चुनाव जीत गए. निशिकांत दुबे को 6 , 93,140 वोट प्राप्त हुए जबकि प्रदीप यादव को 5 , 91, 327 वोट मिले. मतलब सारी आशंकाओं को निर्मूल करते हुए निशिकांत दुबे अच्छी मार्जिन से चुनाव जीत गए. तो क्या जरमुंडी से कांग्रेस के विधायक बादल पत्रलेख , जो अभी झारखंड में कृषि मंत्री भी हैं, पर विधानसभा चुनाव में खतरा बढ़ जाएगा. खतरा तो प्रदीप यादव पर भी बढ़ सकता है. लोगों को उम्मीद तो यह थी कि घोषणा के बाद टिकट बदले जाने से नाराज महागामा विधायक दीपिका सिंह पांडे घर में बैठ जाएगी और इसका असर चुनाव परिणाम पर पड़ेगा. लेकिन हुआ ठीक इसके उलट.
पार्टी स्तर पर आकड़ों का गुना -भाग शुरू हो गया है
पार्टी स्तर पर इन आकड़ों का गुना -भाग शुरू हो गया है. क्योंकि झारखण्ड में 2024 का विधानसभ चुनाव लोकसभा से अधिक मजबूती से लड़े जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. एनडीए भी जोर करेगा तो गठबंधन भी ताकत झोंकेंगा ,सभी कील -कांटो को दुरुस्त करने की प्रक्रिया शुरू होगी. झारखंड विधानसभा का चुनाव नवंबर या दिसंबर 2024 में हो सकता है. विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी 2025 को समाप्त होगा. पिछला चुनाव सितंबर 2019 में हुआ था. उस समय झारखंड में भाजपा की सरकार थी. लेकिन गठबंधन ने बहुमत पाया और भाजपा की सरकार अपदस्त हो गई. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 30 सीटें जीती, कांग्रेस को 16 सीटें मिली. राजद को एक मिली, भाजपा को 25 और जेबीएम को तीन सीटें मिली थी. जेवीएम का नेतृत्व बाबूलाल मरांडी कर रहे थे, जो फिलहाल भाजपा में आ गए हैं और भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष उन्हें बनाया गया है. उनके विधायक भी इधर -उधर हो लिए.प्रदीप यादव भी पहले बाबूलाल मरांडी के साथ थे ,लेकिन वह कांग्रेस में आ गए.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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