गोड्डा (GODDA) : हर शादीशुदा जोड़े को एक स्वस्थ संतान होने की ख़्वाइश होती है. वही संतान आगे चलकर अपने मां-बाप के बुढ़ापे की लाठी बनता हैं. लेकिन कभी-कभी भगवन लोगों की झोली में ऐसा बच्चा दे देते हैं, जो आजीवन अपने मां-बाप पर ही निर्भर रहता है. ऐसे बच्चों को दिव्यांग कहा जाता हैं. दिव्यांग बच्चे का ख्याल रखना आसान बात नहीं हैं. अगर किसी दंपत्ति का एक बच्चा दिव्यांग हो तो उन्हें दूसरे बच्चे का सहारा मिल जाता है, लेकिन सोचिए उस मजबूर दंपत्ति के बारे में जिसे भगवान ने लगातार दो बच्चे तो दिए, लेकिन दोनों ही दिव्यांग. ऐसा ही मामला गोड्डा जिले के दलदली गांव से सामने आया है. यहां के रहने वाले एक दंपत्ति को भगवान ने दो बेटे दिए जो आखों से देख नहीं सकते. गरीबी के बाद भी पिता बेटों के इलाज के लिए भटकते रहे, मगर डॉक्टर का कहना है कि जो जन्म से ही नहीं देख सकता उनका इलाज संभव नहीं है.
मुश्किल से हो पाता है परिवार का भरण-पोषण
चमकलाल साह और मुनकी देवी के बड़े और संझले बेटे जो जन्म से सूरदास हैं,जन्म से ये देख नहीं सकते. पेशे से ट्रेक्टर चालक चमकलाल बहुत मुश्किल से अपने परिवार का भरण पोषण कर पाता है. बावजूद वह दोनों बेटों के इलाज के लिए झारखंड से नेपाल तक की दूरी तय करता है. उन्होंने कई डॉक्टरों से बेटों का इलाज तो करवाया, लेकिन सभी जगह डॉक्टर ने जवाब दे दिया.
मां-बाप चाहते है बेटों को पढ़ाना
इस दंपत्ति के चार बच्चे है. जिसमें दो देखने में असर्मथ हैं. ऐसे में मां-बाप चाहते है कि दोनों दिव्यांग बच्चे को पढ़ने का मौका मिले. ताकि ये आगे चल कर अपने पैसों पर खड़ा हो सकें. हर मां-बाप की तरह ही इनकी इच्छा भी सही है, लेकिन गांव में दिव्यांग बच्चों की पढाई की कोई सुविधा नहीं है. ऐसे में मजबूर मां-बाप सरकार से इस सुविधा को जल्द ही देने की उम्मीद लगाएं बैठे हैं.
सुनकर ही वर्णों को कर चुका है याद
चमकलाल और मुनकी का बड़ा बेटा करण छह साल का है. इसे जन्म से ही आंखों से दिखाई नहीं देता. लेकिन इसकी बुद्धि बहुत तेज है. उसे दिखाई नहीं देता लेकिन सुनाई देता है. इसलिए वह विद्यालय में बैठ सुनने मात्र से ही पढ़ाई करने की कोशिश करता है. नतीजा करण हिंदी के वर्णों से लेकर अंग्रेजी के वर्ण भी जुबानी याद कर चूका है.
अब इस परिवार को भी किसी मसीहे का है इन्तजार
दम्पति को ऊपर वाले ने जो भी नेमत दिया हो, मगर इन्हें एक मसीहे का इन्तजार है, जो इनके बच्चों के भविष्य को निखारने में इनकी मदद करे. इनके बच्चों का सहारा बने, ताकि दोनों बच्चे पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो सके.
रिपोर्ट: अजित कुमार, गोड्डा
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