इतिहास के पन्नो से: DHANBAID से शब्द विलोपित कर पढ़िए किस अधिकारी ने रखा DHANBAD नाम


धनबाद(DHANBAD): धनबाद कभी 'धान' की धरती था. धान उगलती धरती के कारण ही यहां के गांव-कस्बों का नाम खेतों की प्रकृति के अनुसार निर्धारित किए गए थे. मसलन कनाली, बाइद, बहियार , टांड़ आदि. रामकनाली, बहियारडीह, छाताबाद, छाताटांड़..आदि उदहारण हो सकते है. यहां धान की उपज खूब होती थी. दामोदर, कतरी, कारी, खोदो..नदियों से घिरा था इलाका, पर्वत-पहाड़, वन-पाथर से आच्छादित एक मनोरम स्थल था धनबाद. बहियार खेतों में पानी सालोभर रहता था, बाइद खेतों की सिंचाई नदियों के पानी से होती थी. पहले धनबाद मानभूम जिले का हिस्सा था, उस समय बाइद खेत के अनुरूप धनबाद का नाम 'धनबाइद' था. मुख्यालय पुरुलिया में था.
अभी पुरुलिया पश्चिम बंगाल के हिस्से में है
वर्तमान में पुरुलिया पश्चिम बंगाल के हिस्से में है. धनबाद में सहायक उपायुक्त ADC बैठते थे, ICS लुबी साहब ADC थे. उन्होंने ही DHANBAID से शब्द को विलोपित कर शहर का नाम ..DHANBAD रखा. भाषा के नाम पर भी यह शहर विवाद झेल चुका है. जो विवाद गहराया था ,वह बंगाल और बिहार के मुख्यमंत्री द्वय डॉ विधान चन्द्र राय और श्रीकृष्ण सिंह की उदार भावना और पहल के बिना खत्म होना मुश्किल था. सन' 1905 में बंग भंग आंदोलन हुआ , 1911 में इसे खारिज़ किया गया. वर्ष' 1912 में मानभूम को बिहार-उड़ीसा के अधीन रखा गया. 1921 में मानभूम कांग्रेस का गठन हुआ , निवारण चन्द्र दासगुप्ता अध्यक्ष और अतुल चन्द्र घोष सचिव बने. आज़ादी के बाद मानभूम बिहार के हिस्से गया. फिर भाषा आंदोलन शुरू हुआ , वर्ष' 1948 में अध्यक्ष और सचिव समेत कांग्रेस के 35 सदस्यों ने हिंदी के विरोध में इस्तीफ़ा दिया. बांग्ला के समर्थन में लोक सेवक संघ का गठन हुआ, कोलकाता मार्च हुआ. पाखेरबेड़ा का यह आंदोलन देश भर में चर्चित हुआ । बांग्ला के समर्थन में सत्याग्रह शुरू हुए. अब दोनों भाषाएं आमने-सामने ही. बाद में बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ विधान चन्द्र राय और बिहार के सीएम श्रीकृष्ण सिंह ने मिलकर राह आसान किया.
1956 के 24 अक्टूबर को पुरूलिया को बंगाल में किया गया
1956 के 24 अक्टूबर को 2007 वर्गमील क्षेत्र , 16 थाना मिलाकर मानभूम से पुरूलिया को अलग कर बंगाल का हिस्सा बनाया गया, जबकि धनबाद को बिहार में रखा गया. उस समय बोकारो भी धनबाद का हिस्सा था. बाद में टिस्को के आग्रह पर बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ विधान चन्द्र राय ने धनबाद के साथ चांडिल , ईचागढ़ और पटमदा को भी बिहार के हवाले किये. मानभूम कल्चर आज भी धनबाद के गांवों में देखने को मिलता है. . 24 अक्टूबर '1956 को बंगाल के मानभूम से काटकर धनबाद को जिला बनाया गया था. हालांकि ;1991 में इसके भी दो भाग हुए और बोकारो जिला धनबाद से अलग हो गया. उस वक्त तेज तर्रार अधिकारी अफजल अमानुल्ला धनबाद के डीसी थे. अपने जीवन में धनबाद पाया कम ,उसकी हकमारी अधिक हुई, हालांकि शहर और ज़िले का विकास हुआ जरूर है लेकिन गति की कमी पहले भी थी और आज भी है. धनबाद की आंचल में आई आई टी (आई एस एम ),सिफर ,डीजीएमए स ,सीएमपीएफ के मुख्यालय है ,वही बीसीसीएल ,इ सील सहित सेल की खदाने है..
लम्बे संघर्ष के बाद 2017 में धनबाद को विश्वविधालय मिला
2017 में धनबाद को विश्वविधालय भी मिला. धनबाद जिसका हकदार था ,उसकी भी सूची लम्बी है. खूब हो हल्ला के बाद भी धनबाद को एयर कनेक्टिविटी नहीं मिला. धनबाद इसकी आहर्ता पूरी करता है ,लेकिन राजनितिक कारणों से इस ज़िले को लाभ से वंचित रखा गया. एयर पोर्ट ,हम कह सकते है कि धनबाद से छीन कर देवघर को दे दिया गया. जब यहाँ के लोग मांग तेज करते है, तो लॉलीपोप थमा दिया जाता है. धनबाद को अभी तक कोई सरकारी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल नहीं मिल पाया. धनबाद के साथ नाइंसाफी कर एम्स को भी देवघर ले जाया गया. धनबाद में खिलाड़ियों की कमी नहीं है. ताकतवर क्रिकेट और फुटबॉल सहित अन्य खेलो का संघ भी है. मांग भी होती है ,रांची से लेकर दिल्ली तक. ट्रैफिक यहाँ के लिए बड़ी परेशानी बनी हुई है. शहर का जिस तेजी से विस्तार हुआ ,उस अनुपात में सडको या फ्लाईओवर का निर्माण नहीं हुआ. पार्किंग की भी कोई कारगर उपाय नहीं किये गए. 1972 में जहा ज़िले की जनसंख्या 12 लाख के आसपास थी वही अभी की आवादी 28 लाख से अधिक है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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