दुमका (DUMKA) : कुछ नया करने का जुनून इंसान को सात समुंदर पार खींचकर ले आता है. पाश्चात्य संगीत के साथ संथाली संगीत को मिलाकर संगीत की दुनिया में तहलका मचाने के लिए नॉर्वे के 30 पर्यटक इन दिनों दुमका के शहर से लेकर गांव तक की खाक छान रहे है. सभी पर्यटक नॉर्वे के एक संगीत विद्यालय से जुड़े हुए हैं. तो चलिए इस रिपोर्ट में जानते है कि नॉर्वे से आए ये विदेशी दुमका के सभ्यता, संस्कृति, संगीत, प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ जिला प्रशासन के प्रति क्या भाव रखते हैं.
नॉर्वे से जुड़ा है संथाली साहित्य
विदेशी गाने गुनगुनाने वाले यह विदेशी चेहरे इन दिनों दुमका में आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है. इन दिनों दुमका की सड़कों पर नार्वे से आए 30 शैलानियों का जत्था बरबस आपको दिख जाएंगे. सभी सैलानी नार्वे के एक संगीत विद्यालय से जुड़े हुए है. दुमका पहुंचे है, संथाल संगीत की बारीकियों को सीखने ताकि नार्वे और संथाल संगीत को मिला कर संगीत की दुनिया में कुछ नया किया जाए. बता दें कि पीओ बोर्डिंग, जो संथाली साहित्य का जनक माना जाता है वह नॉर्वे के ही निवासी थे. 24 वर्ष की आयु में दुमका के बेनागड़िया स्थित चर्च पहुंचे. वर्षो तक दुमका में रहकर कई संथाली साहित्य की रचना की. कुछ कृति पुस्तकालय में सुरक्षित है, जिसका इन्होंने दीदार किया. कई पुस्तकें पुस्तकालय को उपहार स्वरूप दिया. यह विदेशी इसलिए दुमका में खासकर पहुंचे हैं.
परंपरागत संथाली परिधान में दिखे नॉर्वे के युवा
संथाल समुदाय की सभ्यता और संस्कृति भी इन्हें आकर्षित कर रहा है. परंपरागत संथाली परिधान पहन कर जब दुमका की सड़कों पर जब ये चलते है तो लोगों का ध्यान बरबस इनकी ओर चला जाता है. यहां के लोग, यहां की प्राकृतिक खूबसूरती इन्हें दोबारा यहां आने पर बाध्य कर रहा है. प्राकृतिक नजारों को ये अपनी कैमरे में कैद कर रहे है. गणतंत्र दिवस के दौरान भारतीय परिधान पहन कर हाथों में तिरंगा लिए दर्शक दीर्घा में बैठ कर भारतीय गणतंत्र को नजदीक से देखा. जिला प्रशासन की मेहमानवाजी से काफी खुश नजर आ रहे है. नगर थाना पहुंच कर पुलिस के कार्य को देखा और समझा. तभी तो कहते है कि अपने आप को पूरी तरह सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. दुमका पुलिस को ना केबल धन्यवाद दें रहे है बल्कि सम्मान में गीत गाकर अपनी खुशी का इजहार भी कर रहे हैं.
दुमका की सभ्यता से प्रभावित दिखे विदेशी
पर्यटन को उद्योग का दर्जा प्राप्त है. यही कारण है कि झरखंड की उप राजधानी दुमका में पर्यटक स्थलों की कमी नहीं है. और न ही यहां के पर्यटक स्थलों को पर्यटकों की कमी हैं. फिर चाहे वो बाबा बासुकीनाथ हो या फिर दुमका का राजकीय पुस्तकालय. जिस तरह से नॉर्वे से आए 30 सैलानियों का जत्था दुमका की सभ्यता, संस्कृति, पर्यटक स्थल, यहां के लोग और यहां की प्रशासनिक व्यवस्था से खुश नजर आ रहे हैं, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में दुमका में ज्यादा से ज्यादा पर्यटक आएंगे.
रिपोर्ट : पंचम झा, दुमका
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