रांची(RANCHI): 27 फरवरी के दिन जब रामगढ़ की जनता अपने मताधिकार का प्रयोग कर रही होगी, तब ठीक उसी समय राज्य की हेमंत सरकार बजट सत्र के दौरान ही 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को एक बार फिर से राज्यपाल के पास भेजने की तैयारी कर रही होगी, इसके साथ ही उसी दिन कैबिनेट की बैठक में नयी नियोजन नीति की घोषणा भी तैयारी है.
यहां बता दें कि इसके पहले भी हेमंत सरकार के द्वारा नियोजन नीति का निर्माण किया गया था, लेकिन हाईकोर्ट के द्वारा उसे खारिज कर दिया गया था, जबकि 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार को वापस भेज कर झटका दिया था.
नियोजन नीति और स्थानीय नीति को लेकर राज्य सरकार की किरकिरी
जिसके बाद दोनों ही मोर्चे पर राज्य सरकार की किरकिरी हुई थी, हालांकि सीएम हेमंत अभी भी दोनों ही मोर्चों पर अपने पुराने स्टैंड पर कायम हैं, उनके द्वारा अभी भी कहा जा रहा है कि 1932 पर उनके स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आने वाला है, लेकिन नियोजन नीति को लेकर कुछ संशोधन किये जा सकते हैं.
झारखंड से मैट्रिक और इंटर पास करने की शर्त में संशोधन के पक्ष में नहीं है हेमंत सरकार
लेकिन यहां भी सरकार झारखंड से मैट्रिक और इंटर पास करने की अनिवार्य शर्त में संशोधन करने के पक्षधर नहीं है. सरकार का मानना है कि इसमें संशोधन के साथ ही दूसरे राज्य के अभ्यर्थियों के लिए रास्ता साफ हो जायेगा और यह राज्य के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा.
राज्य सरकार ने 27 फरवरी का दिन ही क्यों चुना
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि राज्य सरकार ने इन दोनों कदमों के लिए 27 फरवरी का दिन ही क्यों चुना? और जब राज्य में बजट सत्र आहूत है, तब उसी दिन कैबिनेट की बैठक बुलाकर नई नियोजन नीति की घोषणा की अकुलाहट क्यों? क्या इसके पीछे भी हेमंत सरकार की कोई रणनीति है? क्या हेमंत सरकार को इस बात का एहसास है कि नियोजन नीति रद्द होने के कारण राज्य के युवाओं में गहरा आक्रोश हैं? क्या हेमंत सरकार यह भी मान कर चल रही है कि युवाओं में इस आक्रोश का दुष्परिणाम उसे रामगढ़ उपचुनाव में भुगतना पड़ सकता है? तब क्या यह माना जाय की राज्य सरकार एक रणनीति के तहत 27 फरवरी के दिन ही स्थानीय और नियोजन नीति पर बड़ा कदम उठाने जा रही है, यदि उपर से सारे सवालों का जवाब हां है तो यह आकलन सही भी हो सकता है.
करीबन डेढ़ दर्जन से अधिक छात्र रामगढ़ के चुनावी मैदान में
यहां यह भी जानकारी रहे कि झारखंड के इतिहास में पहली बार करीबन डेढ़ दर्जन से अधिक छात्रों ने विधान सभा चुनाव में निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया है. इससे नियोजन और स्थानीय नीति को लेकर छात्रों के बीच उभरते आक्रोश को समझा जा सकता है.
छात्रों के बीच एक संदेश देने की कोशिश
बहुत संभव है राज्य सरकार यह घोषणा कर कि वह 27 फरवरी को इन दोनों ही मुद्दों पर बड़ा कदम उठाने जा रही है, छात्रों के बीच एक संदेश देने की कोशिश कर रही हो. वह इशारों ही इशारों यह साफ करने की कोशिश कर रही हो कि राज्य के मुखिया को उनकी फिक्र है, और उनकी ओर से इसका समाधान निकालने की पूरी कोशिश जारी है.
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