दुमका(DUMKA):आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के नाम पर बिहार से अलग झारखंड राज्य बना. अलग राज्य बने लगभग 23 वर्ष होने को है. अमूमन देखा जाता है कि 23 वर्ष का युवा अपनी भविष्य को संवार लेते हैं. विकास के पथ पर अग्रसर हो जाते हैं, लेकिन 23 वर्ष के युवा झारखंड में विकास का सच देखना हो तो आपको झारखंड की उपराजधानी दुमका जिला के शिकारीपाड़ा प्रखंड के बांकीजोर पंचायत आना होगा. यहां के ग्रामीण आज भी एक अदद पक्की सड़क के लिए तरस रहे हैं. सड़क निर्माण की मांग को लेकर प्रखंड से लेकर जिला कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं. अब थक हारकर कानून की शरण मे जाने को मजबूर है.
सड़क के अभाव में मरीज की हो रही मौत
बांकीजोर पंचायत के लोग वर्षों से परेशान हैं. परेशानी की एक मात्र वजह है पक्की सड़क का नहीं होना. सड़क के अभाव में मरीज की मौत हो रही है. छात्रों की शिक्षा बाधित हो रही है. आदिवासी बाहुल्य 7 टोलों तक आवागमन सुलभ बनाने के लिए महज साढ़े तीन किलोमीटर सड़क की दरकार है. इस सड़क पर बरसात के दिनों में पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है. गांव तक एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाता. बीमार खासकर प्रसव बेदना से तड़पती महिला को खाट के सहारे मुख्य सड़क तक लाना होता है.सड़क बनवाने के लिए ग्रामीण काफी जद्दोजहद कर रहे हैं.
पढ़ें क्यों कानून की शरण में जाने को लोग हैं मजबूर
4 दिन पूर्व ग्रामीणों ने गांव के चबूतरा की ओर जन आक्रोश सभा किया. जिसका नेतृत्व संयुक्त समाज सेवी हाबिल मुर्मू, मुखिया परमेश्वर मुर्मू और पंचायत समिति सदस्य बुधन किस्कू ने मिलकर किया. इस संदर्भ में ग्रामीणों ने पहले ही प्रखंड प्रशासन को लिखित आवेदन देकर पक्की सड़क निर्माण की मांग किया था. इसके बावजूद आजतक कोई ठोस पहल नहीं हुआ. जिससे ग्रामीण अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं उनका स्थानीय प्रशासन और विधायक से विश्वास उठते जा रहा है.
सबसे ज्यादा बीमार लोगों को होती है परेशानी
ज्ञात हो कि बाँकीजोर ग्राम सात टोलों का आदिवासी बाहुल्य घनी आबादी वाला ग्राम है. बारिश के मौसम में सबसे अधिक कोलपाड़ा से लेकर कोचापाड़ा, बदपाड़ा और नीम टोला तक के चार टोला के ग्रामीण अत्यधिक प्रभावित हैं. पहुंच पथ दलदल हो जाने कारण जान माल सहित आम आदमी को पैदल गुजरने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बीमार महिला-पुरूष को खटिया पर ढोकर मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है.
कई प्रयासों के बाद भी सरकार और प्रशासन ने नहीं सुनी बात
जन आक्रोश सभा के बाद सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण समाहरणालय पहुंच कर डीसी के नाम ज्ञापन सौपा. ज्ञापन में ग्रामीणों ने अपनी व्यथा बताते हुए पक्की सड़क निर्माण की मांग जिला प्रशासन से की है. ग्रामीणों का जनप्रतिनिधियों से भरोशा उठ चुका है. तभी तो सामाजिक कार्यकर्ता हाबिल मुर्मू कहते हैं कि अगर जिला स्तर से समाधान नहीं निकला तो थक हार कर कानून की शरण मे जाएंगे. कहते हैं कि चुनाव के वक्त वोट मांगने विभिन्न दलों के प्रत्यासी गांव आते है. सड़क का आश्वासन देकर जाते है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद भूल जाते हैं.
पढ़ें कैसे नेता विधायकों ने लोगों को ठगा
झामुमो से नलीन सोरेन यहां के विधायक हैं, जबकि बीजेपी के सुनील सोरेन वर्तमान में सांसद हैं. नलीन सोरेन लगातार 7वीं बार यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे है. संयुक्त बिहार से लेकर अलग राज्य बनने से अब तक यहां की जनता ने विधायक के रूप में नलीन सोरेन को चुना. नलीन सोरेन मंत्री भी बने लेकिन गांव की तस्वीर और ग्रामीणों की तकदीर नहीं बदली. गांव को सड़क से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना चलाई जाती है. केंद्र में बीजेपी की सरकार है. इसके बाबजूद सांसद सुनील सोरेन इस सड़क के निर्माण को लेकर क्यों उदासीन बने हैं यह पता नहीं. शिकारीपाड़ा का पहाड़ तोड़कर गिट्टी बनता है. उस गिट्टी से देश के विभिन्न राज्यों की सड़कें बनती है, इसके बाबजूद अगर बांकीजोर की सड़क नहीं बन पाई. सड़क निर्माण में अगर कोई प्रशासनिक अड़चन हो, तो जनता को बतानी चाहिए. यह जानने का अधिकार तो पब्लिक को है ही. कहीं ऐसा ना हो कि सड़क को लेकर जन आक्रोश सड़कों पर दिखाई देने लगे.
रिपोर्ट-पंचम झा
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