दुमका(DUMKA): 22 दिसंबर की तिथि संथाल परगना के लिए ऐतिहासिक माना जाता है. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हूल विद्रोह के फलस्वरूप 22 दिसंबर 1855 को बिहार के भागलपुर और बंगाल के वीरभूम जिला से काटकर संथाल परगना को जिला बनाया गया.वहीं लंबे संघर्ष के बाद 22 दिसंबर 2003 को संथाली भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हुआ है.इस ऐतिहासिक दिवस के मौके पर दुमका के गांधी मैदान में आदिवासी सेंगेल अभियान द्वारा हासा - भाषा जीतकर माहा अर्थात मातृ भूमि - मातृ भाषा विजय दिवस के रूप में मनाया गया.
22 दिसंबर का दिन संथाल परगना के लिए है ऐतिहासिक
इस कार्यक्रम में आदिवासी सेंगल अभियान के केंद्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. कार्यक्रम में शामिल होने बिहार, झारखंड, ओडिसा, पश्चिम बंगाल और आसाम से काफी संख्या में कार्यकर्ता पहुंचे थे. सेंगल अभियान के केंद्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने बताया कि कार्यक्रम में 5 प्रस्ताव पारित किए गए.जिसमें प्रत्येक वर्ष 22 दिसंबर को सेंगेल हासा - भाषा जीतकर माहा अर्थात हासा भाषा विजय दिवस सर्वत्र मनाने का संकल्प लिया गया.
प्रतिनिधियों ने संताली भाषा को अविलंब झारखंड की प्रथम राजभाषा के दर्जा की मांग की
हासा - भाषा विजय दिवस में शामिल प्रतिनिधियों ने मांग रखा कि राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संताली भाषा को अविलंब झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा प्रदान किया जाए.सरना धर्म स्थलों - मरांग बुरु, लुगु बुरु, अयोध्या बुरु आदि की सुरक्षा और संवर्धन की मांग की गई. केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारें सरना धर्म कोड को अविलंब मान्यता प्रदान करें, अन्यथा 30 दिसंबर 2023 को भारत बंद रहेगा.रेल रोड चक्का जाम रहेगा.
आरक्षित सीट जीतनेवाले आदिवासी जनप्रतिनिधि बेकार साबित हो रहे हैं- सालखन मुर्मू
सालखन मुर्मू ने कहा कि आदिवासी एकता और आंदोलन को सफल बनाने एवं संविधान- कानून प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने में आरक्षित सीटों से जीतने वाले अधिकांश आदिवासी जनप्रतिनिधि बेकार साबित हो रहे हैं. अधिकांश आदिवासी जन संगठन भी उनकी दलाली कर समाज को गुमराह कर रहे हैं. आदिवासी स्वशासन व्यवस्था ( ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम) में अभिलंब जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार लागू हो, क्योंकि यह परंपरागत वंशानुगत व्यवस्था भी आदिवासी समाज में आदिवासी समाज सुधार लाने और गांव- समाज में एकजुटता लाने में अब तक विफल साबित हुआ है.अंततः नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, वोट की खरीद बिक्री, धर्मांतरण आदि जारी है.
वोट बैंक को बचाने के बदले आदिवासी समाज को बचाने के लिए चिंतित: सालखन मुर्मू
सालखन मुर्मू ने कहा कि सेंगेल किसी पार्टी और उसके वोट बैंक को बचाने के बदले आदिवासी समाज को बचाने के लिए चिंतित है. चुनाव कोई भी जीते आदिवासी समाज की हार निश्चित है. आजादी के बाद से अब तक आदिवासी समाज हार रहा है, क्योंकि अधिकांश पार्टी और नेता के पास आदिवासी एजेंडा और एक्शन प्लान नहीं है. अभी तक हम धार्मिक आजादी से भी वंचित हैं. अतः फिलवक्त सरना धर्म कोड आंदोलन हमारी धार्मिक आजादी के साथ वृहद आदिवासी एकता और भारत के भीतर आदिवासी राष्ट्र के निर्माण का आंदोलन भी है.
रिपोर्ट-पंचम झा
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