धनबाद (DHANBAD) : डॉक्टर सबा अहमद तो नहीं रहे लेकिन 29 अक्टूबर 2000 को अगर चतुराई नहीं दिखाते तो सैकड़ों ग्रामीण मारे जा सकते थे. मामला 29 अक्टूबर 2000 का है. पूर्वी टुंडी के केंदुआ ताड फुटबॉल मैदान में फुटबॉल टूर्नामेंट का फाइनल मुकाबला चल रहा था. बतौर मुख्य अतिथि पूर्व कारा मंत्री डॉक्टर सबा सभा में शामिल हुए थे. उनके साथ कम से कम आधा दर्जन बिहार पुलिस के जवान और एक बॉडीगार्ड थे. फाइनल मैच जब खत्म हो गया तो मंच के चारों ओर भीड़ जुट गई. कुछ ही समय बाद पुरस्कार वितरण होने वाला था. अचानक मैदान में गोलीबारी शुरू हो गई और लोग इधर-उधर भागने लगे. गोलियां चलने लगी तो डॉक्टर सबा अहमद किसी की साइकिल पर सवार होकर भागकर लटानी मोड़ पहुंचे और वहां से धनबाद आए. मिनटों में हजारों की संख्या का मैदान पूरी तरह से खाली हो गया. पूरे मैदान में सिर्फ चार लाशें पड़ी हुई थी. उनमें तीन बिहार पुलिस के जवान और एक उनके बॉडीगार्ड की लाश थी. सभी मारे गए थे और नक्सली हथियार लूट ले गए थे.
सादे लिबास में पहुंचे थे नक्सली
नक्सली सादे लिबास में मैदान में पहुंचे थे, इसलिए कोई उन्हें पहचान नहीं पाया था. यह घटना नक्सली घटना थी और लोगों को मारने के बाद सभी हथियार लूट कर पहाड़ की ओर चले गए. इस घटना ने इलाके को झकझोर दिया था. बिहार सरकार के सामने भी बड़ी चुनौती पेश की थी. डॉक्टर सबा विनोद बाबू के संपर्क में आने के बाद राजनीति में आए और तीन बार टुंडी से विधायक रहे. बिहार में एक बार मंत्री भी रहे. उनके पिता इम्तियाज अहमद सांसद रह चुके थे. वह एफआरसीएस भी थे. 1992 में झामुमो के टिकट पर टुंडी से विधायक बने थे. 1995 में झारखंड मुक्ति मोर्चा मार्डी गुट से विधायक बने थे,जबकि 2000 में राजद से विधायक बने थे.
रिपोर्ट: सत्यभूषण सिंह, धनबाद
4+