धनबाद(DHANBAD): धनबाद नगर निगम के मेयर का पद एससी के लिए आरक्षित होने का असर धनबाद की राजनीति पर दिखेगा. अभी तो कम से कम भाजपा से जुड़े लोग 22 जनवरी को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के लिए आमंत्रण को लेकर व्यस्त है. 22 के बाद 27 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी धनबाद में कार्यक्रम है. 22 के बाद इस कार्यक्रम का भी दबाव कम से कम तीन लोकसभा क्षेत्र कोडरमा, गिरिडीह और धनबाद के भाजपा नेताओं पर पड़ेगा. वैसे मेयर सीट के आरक्षण का प्रभाव लोकसभा पर तो कम लेकिन विधानसभा के चुनाव में हर पार्टी में नजर आएगा. धनबाद नगर निगम के मेयर पद के लिए जो उम्मीदवार कमर कसे हुए थे, अब उन्हें निराशा हाथ लगी है. ऐसे में जो लोग मेयर के चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, वह विधानसभा चुनाव की ओर रुख करेंगे. हर पार्टी में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार चयन में मारामारी मचेगी. आया राम, गया राम भी बढ़ सकता है.
चर्चाये तो कई कई हैं लेकिन अभी कोई कुछ बोलने से परहेज कर रहा है. झारखंड मुक्ति मोर्चा हो या बीजेपी हो या कांग्रेस हो, कम से कम विधानसभा चुनाव लड़ने वालों की लंबी सूचि है. वैसे, इतना तो तय है कि झारखंड में विधानसभा चुनाव कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद मिलकर चुनाव लड़ेंगे. भाजपा और आजसू मिलकर ही लड़ सकते है. ऐसे में अगर गठबंधन हुआ तो कौन सीट किसके पाले में जाएगी, यह कहना अभी कठिन है. लेकिन चुनाव लड़ने वालों की सूची और उनकी सक्रियता यह बताती है कि टिकट पाने के लिए भरपूर कोशिश करेंगे. अगर नहीं मिला तो निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते है. 2019 के चुनाव में भाजपा ने निरसा और सिंदरी से नया उम्मीदवार दिया था. दोनों उम्मीदवार विजई रहे. निरसा से अपर्णा सेन गुप्ता विधायक बनी तो सिंदरी विधानसभा से इंद्रजीत महतो को टिकट मिला, वह अभी चुनाव जीत गए. फिलहाल वह बीमारी के कारण सिंदरी से चुनाव लड़ पाएंगे, इसमें संदेह है.
कांग्रेस ने भी झरिया से पूर्णिमा नीरज सिंह को पहली बार टिकट दिया, वह भी चुनाव जीत गई. टुंडी से झारखंड मुक्ति मोर्चा के मथुरा महतो विजई रहे जबकि धनबाद और बाघमारा से राज सिन्हा और ढुल्लू महतो चुनाव जीते. जो भी हो लेकिन इस बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले नेताओं की टिकट को लेकर सांसे अटकी हुई है. इधर, निगम में मेयर का पद आरक्षित होने के बाद उम्मीदवारों की संख्या भी बढ़ेगी, निर्दलीय उम्मीदवार भी अधिक होंगे. यह अलग बात है कि मेयर का चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है फिर भी आरक्षण की वजह से जो लोग चुनाव लड़ने से वंचित रहेंगे, वह विधानसभा के चुनाव में भाग्य आजमाने की भरपूर कोशिश करेंगे. वैसे लोकसभा चुनाव के लिए भी क्या गणना बैठेगी, इसको लेकर भी कयास लगाए जा रहे है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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