धनबाद(DHANBAD): चुनाव का वक्त है, आया राम, गया राम का सिलसिला चल रहा है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. गीता कोड़ा के बाद सीता सोरेन और उसके बाद जे पी पटेल. यह तीन बड़े चेहरे के पाला बदलने से धनबाद सहित झारखंड में भी किसी तरह की हवा को आंधी बनने ने देर नहीं लगती है. जिन जगहों पर उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं हुई है, वहां कोई भी हवा आंधी बन जाती है. धनबाद लोकसभा सीट भी इसमें शामिल है. न भाजपा की उम्मीदवार की घोषणा हुई है और नहीं इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार की. धनबाद से भाजपा की सीट पर चुनाव लड़ने वालों की सूची लंबी है. पूछने पर सब यही कहते हैं कि अगर वर्तमान सांसद पशुपतिनाथ सिंह को टिकट मिले तब तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर उन्हें नहीं मिलता है तो वह दावेदार हैं .इसके लिए उन लोगों ने दिल्ली दरबार में भी हाजिरी लगाई. लेकिन अब सब लौट कर धनबाद आ गए हैं .कोई देवी स्थान का दर्शन कर रहा है तो कोई भगवान से मन्नते मांग रहा है कि उन्हें टिकट मिल जाए.
कांग्रेस की राजनीति तो दिल्ली में शिफ्ट कर गई है .फाइनल तो भाजपा अथवा इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों को दिल्ली ही करेगा. लेकिन इस बीच कायासो का बाजार गर्म होता रहता है .कभी हल्ला मचता है कि फलां विधायक दिल्ली में है और वह किसी दूसरे दल का दामन थाम सकते हैं. कार्यकर्ताओं में भी चर्चा शुरू हो जाती है. समर्थकों को लोग बधाई देने लगते हैं .अभी 2 दिन पहले धनबाद में एक विधायक को लेकर ऐसी ही चर्चा उठी. फोन की घंटियां बजने लगी. असलियत जानने की कोशिश लोग करने लगे. बाद में पता चला कि यह सब सही नहीं है. यह बात सही है कि गीता कोड़ा को भाजपा ने अपने पाले में कर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया. 2019 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर झारखंड से जीतने वाली वह एकमात्र सांसद थी. उसके बाद अचानक विधायक सीता सोरेन भाजपा में शामिल हो गई .उन्हें कहां से चुनाव लड़ाया जाएगा, लड़ाया जाएगा कि नहीं, इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है. फिर जेपी भाई पटेल भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्हें तो लगता है कि हजारीबाग लोकसभा सीट से इंडिया ब्लॉक चुनाव में खड़ा कर सकता है.
झारखंड में इन तीन के पार्टी बदलने की वजह से कोई भी चर्चा तेज हो जाती है. वैसे धनबाद को लेकर भाजपा नेता और कार्यकर्ता चुप हैं. कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है. एक ही बात कहता है कि उन्हें कुछ भी नहीं मालूम. जो भी होगा दिल्ली से ही होगा. धनबाद के एक बुजुर्ग नेता की प्रतिक्रिया थी कि अब वह पहले वाली बात कहां है. सिद्धांत और पार्टी लाइन कहां कोई मानता है. अब तो लोग सियासी अग्निवीर की तरह काम करते हैं. तत्काल लाभ के लिए किसी भी दल में चले जाते हैं और जब वहां मन नहीं लगता है तो फिर वापस मूल पार्टी में लौट आते हैं. इसके उन्होंने कई उदाहरण भी गिनाए. जो भी हो लेकिन उम्मीदवार को लेकर धनबाद में बाहर से शांति है लेकिन भीतर से बेचैनी बढ़ती जा रही है.
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