धनबाद(DHANBAD): झामुमो कड़े संघर्ष के बाद मिली उपलब्धि को भजाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता. झारखंड सरकार के परिवहन एवं कल्याण मंत्री चंपई सोरेन के हस्तक्षेप के बाद MPL ने स्वर्गीय विजय किस्कू के परिजनों को मुआवजा और पुत्र को नौकरी दी थी. हालांकि इसके लिए कई दिनों तक शव के साथ प्रदर्शन करना पड़ा था. झारखंड मुक्ति मोर्चा को कड़ा संघर्ष करना पड़ा .MPL मैनेजमेंट झुकने को तैयार नहीं था. बात भी करने से इनकार कर दिया था. नौकरी और मुआवजा दिलाने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा स्वर्गीय विजय किस्कू के ब्रह्मभोज की तैयारी के लिए गुरुवार को धनबाद जिला समिति ने बैठक की और निर्णय लिया कि ब्रह्मभोज पार्टी करेगी.
13 सितंबर को विजय किस्कू का ब्रह्मभोज है,होगा जुटान
13 सितंबर को विजय किस्कू का ब्रह्मभोज है. उस दिन परिवहन एवं कल्याण मंत्री चंपई सोरेन भी कार्यक्रम में शामिल होंगे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं ने कहा कि विजय किस्कू के निधन के बाद मुआवजा एवं रोजगार के लिए आंदोलन कर रहे परिवार को झारखंड सरकार के परिवहन एवं कल्याण मंत्री के प्रयास से टाटा पावर में स्थाई नौकरी और 15 लाख का मुआवजा मिला. नियुक्ति पत्र और मुआवजा मिलने के समय मंत्री मौजूद थे. उसी क्रम में मंत्री ने निर्देश दिया था कि पार्टी स्तर पर ब्रह्मभोज की व्यवस्था की जाये. झारखंड मुक्ति मोर्चा धनबाद जिला समिति अभी हाल तक आपस में लड़ती -भिडती रही थी. सालों तक यहां रमेश टुडू और पवन महतो की समानांतर जिला समिति काम करती रही. विवाद जब काफी बढ़ गया तो केंद्रीय नेतृत्व ने धनबाद समिति को भंग कर एक संचालन समिति की घोषणा कर दी. फिर संचालन समिति की अनुशंसा पर लखी सोरेन को जिला अध्यक्ष बनाया गया.
मंत्री के हस्तक्षेप के बाद भी मांग पूरी होने में लगा समय
उसके बाद विजय किस्कू की मौत के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने एकजुटता दिखाई और किसी की बात नहीं सुनने वाले MPL को झुकना पड़ा. किसी की बात नहीं सुनने वाला MPL मैनेजमेंट रविवार को बैक फुट पर आ गया था. विजय किस्कू की पत्नी को 15 लख रुपए मुआवजा और बेटे को टाटा पावर में नियुक्ति पत्र देने पर राजी हो गया था. शनिवार को झारखंड सरकार के परिवहन एवं कल्याण मंत्री चंपई सोरेन के हस्तक्षेप के बाद भी मामला नहीं सलटा था. शनिवार को प्रबंधन कुछ सुनने को तैयार नहीं था. लेकिन मंत्री के हस्तक्षेप के दूसरे दिन रविवार को मामला कुछ उलट दिखा और प्रबंधन झुक गया. समझौता हो गया और लगभग 105 घंटे के बाद आंदोलन स्थल से लाश उठी थी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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