दिवाली की ख़ुशी में कहीं गुम हो गया धनबाद ज़िले का स्थापना दिवस, जानिए पूरी डिटेल्स


धनबाद(DHANBAD): आज ही के दिन, यानी 24 अक्टूबर 1956 को धनबाद जिले की स्थापना हुई थी. लेकिन यह ऐतिहासिक दिन इस साल दिवाली की खुशी में कहीं गुम हो गया है. कहीं कोई उत्साह या उमंग नहीं दिख रहा है. यह बात अलग है कि सामाजिक संस्था एक्शन फोर्स के लोगों ने सोमवार को रणधीर वर्मा चौक पर पटाखे फोड़ और एक दूसरे का मुंह मीठा करा कर इस ऐतिहासिक दिन को याद किया. राजनीतिक दलों की भी सक्रियता नहीं दिखी. प्रशासनिक स्तर पर भी कार्यक्रम की जानकारी नहीं मिली है.
24 अक्टूबर 1956 के पहले धनबाद जिला मानभूम में था
24 अक्टूबर 1956 के पहले धनबाद जिला मानभूम में था. 1953 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह और बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय के बीच धनबाद जिला बंगाल में ही रहेगा, या बिहार को सौंपा जाएगा, इसको लेकर काफी रस्साकशी हुई थी. अंततः श्रीकृष्ण सिंह की प्लानिंग सफल हुई और धनबाद बिहार के हिस्से में आ गया. दरअसल, 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य इस विवाद के बाद यह जानने के लिए धनबाद आए थे, कि क्या सच में धनबाद में रहने वाले हिंदी भाषा- भाषी अधिक है. इसके पहले ही श्रीकृष्ण बाबू ने एक योजना बनाई और अपनी मशीननरी को सक्रिय कर दिया. राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य जब धनबाद पहुंचे तो लोग प्रदर्शन कर रहे थे.उस दिन धनबाद में बिहारी स्टाइल में लोग माथे पर पगड़ी और हाथ में लाठी लिए सड़को पर घूम रहे थे. कोलियारियों में काम करने वाले अधिकतर हिंदी भाषा- भाषी थे, इसलिए राज्य पुनर्गठन आयोग को यह मानना पड़ा कि यह हिंदी भाषी क्षेत्र है. और उन्हीं की अनुशंसा पर धनबाद बिहार के हिस्से में आया.
काफी रस्साकशी के बाद धनबाद बिहार को मिला था
इसके बाद 24 अक्टूबर 1956 को धनबाद जिला का गठन हो गया और यह बिहार के खाते में आ गया. तब से यह बिहार का अंग था और झारखंड बनने के बाद झारखंड का एक जिला हो गया. धनबाद जिले की आबादी लगभग 29 लाख है. धनबाद में 2006 में नगर निगम का गठन हुआ.1991 में धनबाद जिला से कटकर बोकारो जिला बना. पहली अप्रैल 1991 से बोकारो जिला अलग काम करने लगा. शुरुआती दिनों में धनबाद के उपायुक्त ही वहां के अतिरिक्त प्रभार में हुआ करते थे. उसके बाद अलग व्यवस्था बनी. बाहरहाल यह तो हुई जिले के गठन की कहानी. आज एक्शन फोर्स के एमके आजाद ने कहा कि आज ही के दिन धनबाद की स्थापना हुई थी. उनका कहना था कि प्रशासन की ओर से एक दो बार स्थापना दिवस मनाया गया लेकिन इस बार रवैया उदासीनता का है. उन्होंने हर साल स्थापना दिवस मनाने की मांग की है. धनबाद के जनप्रतिनिधियों को भी उन्होंने खरी खोटी सुनाई और कहा कि उन्हें इन सब से कोई मतलब ही नहीं है.
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