धनबाद(DHANBAD): धनबाद में कांग्रेस की धमक दिखाई देने लगी है. शहर में होर्डिंग्स लगाने को लेकर कंपटीशन दिख रहा है. बुधवार को जबतक कार्यक्रम की शुरुआत होगी तो हो सकता है की हर 'ताकतवर' नेता अपना चेहरा चमकाने के लिए होल्डिंग्स का सहारा ले चुका होगा. वैसे, बुधवार को यह सत्याग्रह कार्यक्रम 12 सालों से ताले में बंद कांग्रेस कार्यालय के ठीक सामने सड़क के किनारे होगा. इस कार्यक्रम में झारखंड के प्रभारी अविनाश पांडे, प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर सहित झारखंड सरकार में शामिल कांग्रेस के चारों मंत्री आएंगे. सत्याग्रह स्थल को लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है.
सत्याग्रह स्थल के चयन के भी हो सकते है मायने
एक महत्वपूर्ण चर्चा तो यह है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी के बहाने कांग्रेस कार्यालय खुलवाने के लिए कांग्रेसियों ने रणनीति तैयार की है. कांग्रेसी चाहते होंगे कि कांग्रेस प्रभारी को भी इसमें शामिल कर लिया जाए, जिससे कि इसका दोष सिर्फ धनबाद के कांग्रेसियों पर नहीं, प्रदेश अध्यक्ष पर नहीं, झारखंड सरकार में शामिल मंत्रियों पर नहीं ,बल्कि प्रदेश प्रभारी पर भी डाला जा सके. शायद यही वजह है कि ताले में बंद कांग्रेस कार्यालय के ठीक सामने सत्याग्रह कार्यक्रम को तय किया गया है. जिसने भी यह जगह का चयन किया होगा, वह दूर की कौड़ी जरूर खेला होगा. सूत्रों के अनुसार यह कांग्रेस कार्यालय तो बहुत पहले ही खुल सकता था लेकिन मेरे बल्ले से ही चौका -छका लगे, इसी मानसिकता के कारण यह कार्यालय आज भी ताले में बंद है. पहले जहां इस कार्यालय में कांग्रेसियों की भीड़ जुटती थी, वहां पर सांप -बिच्छू लोटते है. शहर की गुमटियों का कार्यालय परिसर कबाड़ बन गया है.
ऐतिहासिक धरोहर की ऐसी दुर्दशा
यह कार्यालय ऐतिहासिक धरोहर है, इस कार्यालय में देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी आ चुकी है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे का तो यह कार्यस्थल ही रहा है. बिहार और झारखंड के कद्दावर मंत्री रहे राजेंद्र बाबू तो राजनीति का ककहरा भी कमोबेश यही से सीखे थे. फिर भी 12 सालों से यह कार्यालय ताले में बंद है. फिलहाल कांग्रेस कार्यालय हाउसिंग कॉलोनी के एक निजी भवन में चल रहा है. मंगलवार को कुछ पुराने कांग्रेसियों ने धरना भी दिया है. सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस कार्यालय खुल क्यों नहीं रहा है. जानकार बताते हैं कि अब तो किसी मुकदमे की भी परेशानी नहीं है. मुकदमे को कांग्रेस के पदाधिकारियों ने ही वापस ले लिया है. यह बात सही है कि यह जमीन धनबाद जिला परिषद की है, जमीन लीज पर लेने के बाद कांग्रेस ने अपने खर्चे से भवन का निर्माण कराया था. अब देखना है कि बुधवार को सत्याग्रह स्थल से ताले में बंद कांग्रेस भवन का भाग्य खुलता है अथवा इस पर और मिट्टी और गारे की परत चढ़ जाती है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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