धनबाद(DHANBAD): केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव, उठू हो सूरज देव, भईले बिहान. ये भक्ति गीत सुनते ही मन में भगवान सूर्यदेव की और माता छठी मईया की याद आ जाती है. और आए भी क्यों ना छठ सिर्फ पर्व नहीं बल्कि महापर्व है. एक ऐसा महापर्व जिसमें सभी अपने-अपने हिस्से का काम करने में कोई चूक छोड़ने की कोशिश नहीं करते हैं. चाहे फिर वो प्रशासनिक अधिकारी हो, पुलिस के पदाधिकारी हो, राजनेता हो, आम जन हो या मोहल्ले के लोग हो, सभी अपनी-अपनी हिस्से का काम तन्मयता से बिना कुछ कहे करते है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
DC कर रहे घाटों का निरीक्षण
बता दें कि इस त्योहार की तैयारी भी अलग होती है, इस साल छठ घाटों पर, बाजारों में, सड़कों पर तैयारी खूब दिख रही है. जिले के उपायुक्त सहित अन्य अधिकारी, एसएसपी, नगर आयुक्त सभी छठ घाटों का लगातार निरीक्षण कर रहे हैं और व्रतियों को अधिक से अधिक सुविधा दिलाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.
राजनेता कर रहे हैं मदद
धनबाद के सांसद पशुपति नाथ सिंह, विधायक राज सिन्हा व्रतियों के लिए साड़ी और गंगाजल वितरण कर रहे हैं. वहीं भाजपा नेत्री रागिनी सिंह खुद छठ कर रही है और सारे कामों को खुद से करने की कोशिश कर रही हैं. गेहूं सुखाने से लेकर सारे काम वह खुद कर रही हैं. बाजार भी इस साल पूरी तैयार हो चुकी है. नागपुर का संतरा, हाजीपुर का केला, उत्तर प्रदेश का गन्ना, धनबाद के बाजारों में पहुंचा हुआ है, मद्रास और बंगाल का केला भी आया है, खरीदारी भी लोग उत्साह से कर रहे हैं.
दो साल बाद मन रहा त्योहार
दरअसल, 2 साल तक कोरोना महामारी झेलने के बाद इस साल लोग इस त्योहार को विशेष ढंग से मना रहे हैं. यह एक ऐसा त्योहार है, जिसके वैज्ञानिक पक्ष से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. आज जिन-जिन परेशानियों को लेकर पूरे विश्व में चर्चा छिड़ी हुई है, सारी परेशानियों से बचाव का पुट इस त्योहार में देखने को मिलता है. समानता और सद्भावना का संदेश देने वाला इससे बड़ा त्योहार कोई नहीं है.
जल संरक्षण की देती है सीख
आज पूरे विश्व में जल संरक्षण की चर्चा हो रही है, इस त्योहार से इसका भी संदेश मिलता है कि जल में खड़ा होकर अर्घ्य देने के लिए ताल, तलैया, नदी को भी संरक्षित करने की जरूरत है. यह त्योहार केवल डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देना ही नहीं बताता, बल्कि पर्यावरण की स्वच्छता, साफ-सफाई में जनभागीदारी शायद ही किसी त्योहार में देखने को मिलता है. शायद, इसलिए इस पर्व को महापर्व कहा जाता है. कोयलांचल का पूरा वातावरण छठमय हो गया है. साथ ही लोग अपने-अपने हिस्से के काम को पूरी तन्मयता से करने में लगे हुए हैं. जय-जय-जय हो छठी मईया.
रिपोर्ट: शाम्भवी सिंह, धनबाद
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