धनबाद(DHANBAD) | बंगाल के "ढाक" और "धुनुची" के बिना धनबाद में भी पूजा नहीं होती. अगर कही होती भी है तो अधूरी लगती है. "ढाक" बजाने वाले विशेष तौर से धनबाद में बंगाल से बुलाए जाते है. इनका एक दल होता है. कोयलांचल के प्राय हर बड़े पंडाल में ढाक बजाने वाले मौजूद रहते है. कहा जाता है कि ढाक के बिना मां की पूजा अधूरी लगती है. यह ढाक अलग-अलग स्वरूपों पर अलग-अलग ढंग से बजाये जाते है. दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल के ढाक का अलग ही महत्व है. इस ढाक की विशेषता यह होती है कि जब यह बजाना शुरू होता है तो लोग थिरकने को विवश हो जाते है. वैसे विशेष अनुष्ठान के दौरान बंगाल के ढाक जरूर बजाए जाते है. ढाक की ताल को लयबद्ध करने के लिए कड़ी मिहनत करनी होती है. दुर्गा शक्ति स्वरुपा है, इसलिए ढाक वादक भी अपनी पूरी शारीरिक क्षमता और ताकत से ढाक बजाते है.
पूजा के कई महीने पहले से की जाती है प्रैक्टिस
पूजा के कई महीनो पहले से यह प्रैक्टिस करते है. बंगाल में तो चाहे वह मुख्यमंत्री हो या और कोई खास लोग , ढाक बजाने में अपने को गौरवान्वित महसूस करते है. यह ढाक जब बजता है, तो माहौल अलग ही हो जाता है. ढाक बजने की लोग प्रतीक्षा करते है. नवरात्र के हर दिन पूजा अनुष्ठान ढाक के अलग-अलग ताल पर की जाती है. दुर्गापूजा की शुरुआत आगमनी पूजा अनुष्ठान से होती है. इसमें मां का स्वागत किया जाता है. इसके बाद विभिन्न दिनों में शारदीय, नवपत्रिका, वरण, बोधन, संधि पूजा, नवमी, उधाव और विसर्जन जैसे अनुष्ठान होते हैं.इन सभी पूजा अनुष्ठान में ढाक के अलग-अलग ताल बजाये जाते हैं. ढाक के ताल उत्सव, भक्ति और एकजुट होने की प्रेरणा देते हैं. यही कारण है कि ढाकी पूजा से पहले मिलनेवाले खाली समय में जमकर ढाक बजाने का अभ्यास करते हैं.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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