दुमका(DUMKA):सभा चुनाव परिणाम आने के बाद संथाल परगना प्रमंडल में बीजेपी में मची घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. प्रमंडल के तीन सीट में से एक मात्र सीट गोड्डा पर बीजेपी की जीत हुई, जबकि राजमहल के साथ साथ दुमका सीट पर पराजय का सामना करना पड़ा.चुनाव परिणाम के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में दुमका है. एक तरफ तो समीक्षा बैठक में कार्यकर्ताओं ने जमकर बबाल काटा वहीं पार्टी प्रत्याशी रही सीता सोरेन ने जिला से लेकर प्रदेश स्तर के नेताओं पर गंभीर आरोप लगा कर माहौल को और गर्म बना दिया.
पढें सीता सोरेन ने पार्टी के नेताओं पर क्या आरोप लगाया है
सीता सोरेन ने हार का कारण कैडर से लेकर नेताओं तक के बिक जाना बताया है.इस आरोप में कितनी सच्चाई है यह तो जांच का विषय है लेकिन The News Post सबसे पहले आपके सामने रख रहा है. विधानसभा वाइज चुनाव परिणाम.दुमका लोकसभा क्षेत्र में जामा, दुमका, शिकारीपाड़ा, नाला, जामताड़ा और सारठ विधानसभा क्षेत्र आता है.विधानसभा वाइज वर्ष 2019 और 2024 के चुनाव परिणाम को तुलनात्मक रूप में सामने रख कर सीता सोरेन की हार और आरोप को समझने का प्रयास करते हैं.
2019 से 2024 तक पढ़े किस तरीके से विधानसभा वार बीजेपी को मिला लीड
वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव की भांति 2024 के चुनाव में भी बीजेपी को 6 में से 4 विधानसभा से लीड मिली.2019 में 47590 मतों से पार्टी प्रत्याशी की जीत हुई तो 2024 में 22527 मतों से हार का सामना करना पड़ा.
नाला विधान सभा
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी सुनील सोरेन की जीत में नाला विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की अहम भूमिका थी. यहां से पार्टी प्रत्याशी को 33850 मतों की बढ़त मिली थी.चुनाव जीतने के बाद सांसद सुनील सोरेन नाला की जनता की सुख दुख में शरीक होते रहे.इसके बाबजूद इस बार के चुनाव में बीजेपी लगभग 21 हजार लीड ही ले पायी. वो भी तब जबकि पूर्व मंत्री सत्यानंद झा बाटुल सहित विधानसभा चुनाव के कई संभावित प्रत्याशी क्षेत्र में सक्रिय रहे.
सारठ विधानसभा
इस बार के चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीद सारठ विधान सभा क्षेत्र से था. पिछले चुनाव में सारठ से मिले लगभग 21000 मतों की बढ़त ने बीजेपी प्रत्याशी सुनील सोरेन की जीत का मार्ग प्रसस्त कर दिया था.तत्कालीन मंत्री सह वर्तमान सारठ विधायक रणधीर सिंह ने सुनील सोरेन की जीत में अथक मेहनत किया था.इस बार इन्हें दुमका लोकसभा का संयोजक बनाया गया. इसके बाबजूद सारठ विधानसभा में बीजेपी को लगभग 1200 मतों की बढ़त मिली.लगता है संयोजक होने के बाबजूद विधायक रणधीर सिंह अपने क्षेत्र के मतदाताओं से संयोजन स्थापित नहीं कर पाए क्योंकि उन्हें ना केबल सारठ बल्कि वीआईपी मूवमेंट के साथ साथ सभी 6 विधान सभा क्षेत्र देखना था.
जामा विधान सभा
दुमका लोकसभा के जामा विधानसभा पर सबकी नजर थी, क्योंकि झामुमो के टिकट पर सीता सोरेन 3 बार यहां से प्रतिनिधित्व कर चुकी थी.पार्टी और परिवार से बगावत कर बीजेपी के टिकट पर लोक सभा चुनाव लड़ने वाली सीता सोरेन को उनके विधानसभा क्षेत्र की जनता से नकार दिया.कहने के लिए तो बीजेपी को जामा से बढ़त मिली लेकिन अपेक्षा के अनुरूप नहीं.2019 में यहाँ से बीजेपी को लगभग 8 हजार की लीड मिली थी, जो इस बार घटकर 6 हजार 700 पर सिमट गया.उम्मीद थी कि यहां से इस बार के चुनाव में आशातीत सफलता मिलेगी क्योंकि एक तो बीजेपी के कोर वोटर ऊपर से 3 टर्म की विधायक रही सीता सोरेन का अपना वोट बैंक, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अगर तुलना झामुमो प्रत्याशी नलीन सोरेन से करें तो नलीन सोरेन शिकारीपाड़ा से 7 टर्म के विधायक है. इस बार जब पार्टी ने उन्हें लोकसभा का प्रत्याशी बनाया तो शिकारीपाड़ा के मतदाताओं ने नलीन सोरेन का दिल खोल कर स्वागत किया.यही वजह रही कि 2019 में जब शीबू सोरेन प्रत्याशी थे तो शिकारीपाड़ा से झामुमो को 8840 मतों की बढ़त थी, जो इस बार 25 हजार के पार पहुँच गया.
दुमका विधान सभा
वैसे तो दुमका लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत 6 में से 4 विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी ने लीड लिया लेकिन सही मायनों में देखा जाए तो एक मात्र दुमका विधान सभा ही ऐसा रहा जहां पार्टी प्रत्याशी को पिछले लोकसभा चुनाव से ज्यादा मत मिले.वर्ष 2019 में 9865 मतों की बढ़त भाजपा प्रत्याशी को मिली थी जबकि इस बार के चुनाव में 10433 मतों की बढ़त मिली.पूर्व मंत्री लुईस मरांडी को छोड़ कर संभावित विधानसभा प्रत्याशी की सूची में नाम दर्ज कराने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त में से कोई भी नेता अपने बूथ पर भाजपा को बढ़त नहीं दिला पाए.
सवाल सीता सोरेन से भी बनता है
ऐसे में सवाल कई हैं.सबसे पहले तो सवाल सीता सोरेन से बनता है कि एक ही बयान में मंडल के कैडर से लेकर राज्य के पार्टी पदाधिकारी पर लगाये गए गंभीर आरोप का आधार क्या है? अगर कोई आधार है तो उसे सार्वजनिक करनी चाहिए.3 टर्म जामा से विधायक रहने के बाबजूद जामा की जनता का दिल क्यों नहीं जीत पायी सीता सोरेन? भले ही पार्टी और परिवार से बगावत कर बीजेपी का दामन थाम ली, लेकिन अपने साथ झामुमो के किसी कार्यकर्ता को आखिर तोड़ कर क्यों नहीं ला पायी?
प्रमंडल के एक सांसद और एक विधायक के बीच चल रहा शीत युद्ध भी माना जा सकता है हार का कारण
संथाल परगना प्रमंडल से बीजेपी के एक सांसद और विधायक के बीच चल रहे शीत युद्ध भी सीता सोरेन के हार का कारण माना जा सकता है. सीता सोरेन जब बीजेपी जॉइन की तो पार्टी नेताओं ने क्रेडिट लेने की होड़ मच गई. इससे दुमका लोकसभा क्षेत्र के एक विधायक कितना नाराज थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में जिस विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी की लीड हजारों में थी, इसबार सैकड़ों में सिमट गई.
टिकट काट कर सुनील सोरेन को हाशिए पर धकेलना पार्टी को पड़ा महंगा
सुनील सोरेन को टिकट देकर वापस लेना भी बीजेपी के लिए नुकसान दायक हुआ.टिकट काटने के बाद पार्टी आलाकमान ने सुनील सोरेन को दरकिनार कर दिया.काफी फजीहत के बाद स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम शामिल किया गया. स्थानीय स्तर पर सुनील सोरेन और उनकी टीम के अनुभव का लाभ नहीं लिया गया. जमीनी स्तर के कार्यकर्ता हाशिए पर चले गए. चुनाव फंड का बंदरबांट किया गया.
सीता के आरोप पर पूर्व मंत्री डॉ लुइस मरांडी का पलटवार
वैसे सीता सोरेन के आरोप पर पूर्व मंत्री डॉ लुइस मरांडी ने कहा कि आरोपी गंभीर है.पार्टी स्तर से इन आरोपों की जांच होनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके.उन्होंने कहा कि दुमका विधानसभा से ऐतिहासिक बढ़त के बाबजूद इस तरह का आरोप समझ से परे है.
चुनाव परिणाम ने भाजपा की गुटबाजी को ला दिया सरजमीं पर
सीता सोरेन के आरोप की हकीकत जो भी हो वह तो जांच का विषय है लेकिन इतना जरूर है कि लोकसभा चुनाव परिणाम ने बीजेपी की गुटबाजी को सरजमीं पर ला दिया है.अगर अभी भी गुटबाजी को समाप्त करने की दिशा में पहल नहीं किया गया तो कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को गभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है.
रिपोर्ट-पंचम झा
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