धनबाद के साथ अन्याय आखिर कबतक- जानिये जनता क्या-क्या उठा रही सवाल


धनबाद (DHANBAD) : धनबाद के साथ अन्याय हो रहा है , यह सवाल अब गौण हो गया है. अब प्रश्न पूछे जा रहे हैं कि धनबाद के साथ आखिर अन्याय कब तक. धनबाद की जनता अपने नेताओं पर प्यार -दुलार लुटाती रही, लेकिन उसके बदले में उसे ना निर्बाध बिजली मिली, ना सड़के. इलाज की कोई सही व्यवस्था भी नहीं. जल्दबाजी में यात्रा करने के लिए नहीं एयरपोर्ट मिला. अगर हम झारखंड की बात करें तो धनबाद में ऐसी कोई कमी नहीं है जो दूसरे शहरों में है और धनबाद में नहीं है. धनबाद के कोयले से देश के अन्य शहर रोशन होते हैं लेकिन धनबाद को अंधेरा देखना पड़ता है.
धनबाद फांकता है धूल और रौशन होते दूसरे प्रदेश
धनबाद के लोग कोयले से निकलने वाले धूल फकते हैं और रोशनी मिलती है, देश के अन्य राज्यों को. इसे आगे बढ़कर अगर रोजी -रोजगार की बात करें तो यहां के उद्योगों को पर्याप्त कोयला नहीं मिलता ,कोयला उठाव में कोई उन्हें विशेष रियायत नहीं दी जाती. चिकित्सा की बात करें तो धनबाद में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है. एम्स आया तो देवघर चला गया. एयरपोर्ट बनने की बात हुई तो देवघर का चयन किया गया. यह बात बार-बार आती है कि धनबाद में एयरपोर्ट बनाने की अभी कोई योजना नहीं है. आखिर क्यों नहीं है.
धनबाद में तो पहले से ही था एयरपोर्ट लेकिन अब नहीं
धनबाद के पास बरवड्डा और बलियापुर में जमीन भी है और धनबाद में एयरपोर्ट पहले से ही चालू था, लेकिन उसे बंद कर दिया गया. आपको याद करा दें कि धनबाद के उपायुक्त जब मदन मोहन झा हुआ करते थे तो माफिया ट्रायल में वकीलों को लाने ले जाने में परेशानी हुई तो धनबाद एयरपोर्ट से एरोप्लेन की उड़ान शुरू हुई थी. लेकिन उसके बाद किन्ही कारणों से उसे बंद कर दिया गया. लेकिन उसके बाद इसे चालू करने की किसी कोने से दमदार आवाज नहीं उठी और सारा मामला जहां का तहां पड़ा रह गया. देवघर में एयरपोर्ट शुरू होने के बाद धनबाद के लोगों में भी खलबली मची है, वह भी लगातार एयरपोर्ट की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी मांग को धनबाद के जनप्रतिनिधियों की ताकत नहीं मिल रही है.
मांग उत्साह में अधिक और विश्वास में कम
इसलिए यह आवाज उत्साह में अधिक और विश्वास में कम दिख रही है. धनबाद के व्यवसायी पहले भी सक्रिय थे लेकिन अब गतिविधियां तेज हुई है. और पीएमओ तक अपनी बात पहुंचाने को ठानी है. धनबाद के पक्ष में उनके पास तर्क भी है और एयरपोर्ट होने का कारण भी. देखना होगा की व्यवसायियों के इस आवाज को ताकत देने के लिए कौन-कौन से लोग सामने आते है. बात यहीं खत्म नहीं होती है ,व्यवसायियों का तर्क है कि धनबाद के पास आईआईटी आईएसएम है, धनबाद के पास रिसर्च इंस्टीट्यूट है ,धनबाद के पास बीसीसीएल का हेड क्वार्टर है ,धनबाद रेल मंडल ढुलाई के मामले में देश के पहले पायदान पर है. कर भुगतान के मामले में भी धनबाद किसी से पीछे नहीं है. ऐसी हालत में धनबाद को एयरपोर्ट का अधिकार तो मिलना ही चाहिए.
बूँद-बूँद पानी को तरसता है धनबाद
अगर जलापूर्ति की बात करें तो धनबाद के कई इलाकों में आज भी जल संकट मुंह बाए खड़ा है. मैथन जलापूर्ति योजना की अगर बात करें तो यह कहने में धनबाद के लोगों को तनिक परहेज नहीं होता कि यह तो राज्यसभा के पूर्व सांसद परमेश्वर कुमार अग्रवाल की 'ब्रेन चाइल्ड' योजना थी और उन्होंने ही इसे मूर्त रूप देने में बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि इसका श्रेय राजनीतिक लोग लेने से पीछे नहीं हटते लेकिन जो इस पूरे मामले को जानते हैं उनका दावा है कि परमेश्वर बाबू ने इसे पूरा करने की ठानी थी और इसके लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी थी.
एक समय तो धनबाद के पांच मंत्री थे झारखण्ड सरकार में
झारखंड बनने के बाद जब पहली बार बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में सरकार बनी थी तो उस समय धनबाद से पांच मंत्री थे, नगर विकास मंत्री बच्चा बाबू थे. फिर भी धनबाद को जो मिलना चाहिए नहीं मिला. उसके बाद तो किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. रघुवर दास के नेतृत्व में जब झारखंड में भाजपा की सरकार बनी तो उम्मीद जगी थी कि धनबाद को कुछ लाभ होगा लेकिन अगर कोयलांचल विश्वविद्यालय की बात छोड़ दें तो कुछ भी नहीं मिला. इसके पीछे बताया यह जाता है कि रघुवर दास यह मानकर चलते रहे कि धनबाद में जो भाजपा के नेता है, वह अर्जुन मुंडा कैंप के हैं, इसलिए भी धनबाद पर बहुत ध्यान नहीं दिया. जेएमएम के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी तो फिर एकबार उम्मीद जगी थी कि- चुकी झारखंड मुक्ति मोर्चा की जन्म स्थली धनबाद है. धनबाद जिला दिसोम गुरु शिबू सोरेन की कार्यास्थली रही है. इसलिए झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार धनबाद पर विशेष ध्यान देगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. सब कुछ पुराने ढर्रे पर चलता रहा.
सभी सरकारें करती रही है धनबाद की हकमारी
धनबाद का दोहन तो पूरी ताकत और क्षमता के साथ सरकारें करती रही लेकिन उसके बदले में धनबाद की हकमारी कराती रही. विभिन्न प्लेटफार्म पर यहां के लोग आवाज उठाते रहे लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित होकर रह गई. धनबाद के कारोबारी एयरपोर्ट के लिए सक्रिय हुए हैं, देखना होगा कि आगे होता क्या है. यहां यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि धनबाद में डीएमएफटी( डिस्टिक माइनिंग फंड ट्रस्ट) में लगभग 12 सौ करोड़ रुपए हैं, इस पैसे में 60% कोयला क्षेत्र के लोगों के उत्थान और विकास के लिए खर्च करने होते हैं और 40 परसेंट राशि सड़क, बिजली, पानी आदि पर खर्च करने का प्रावधान है.
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