धनबाद(DHANBAD): वह रहता था धनबाद में और हथियारों का फर्जी लाइसेंस बनाता था रांची, लखनऊ, देवरिया आरा और पंजाब जिलों के नाम से. गुमला पुलिस ने धनबाद के जिस रेशम बहादुर को गिरफ्तार कर हथियार का फर्जी लाइसेंस बनाने और बेचने के नेटवर्क का खुलासा किया है, वह धनबाद की भूली में रहता था. वह न केवल बंदूक का फर्जी लाइसेंस बनाता था, बल्कि पुरानी बंदूकों को खरीद कर बेचता भी था. सूत्रों के अनुसार पुरानी व लावारिस बंदूकों को 20से 25 हजार में खरीदने के बाद उसे फर्जी लाइसेंस के साथ 80 हजार से लेकर एक लाख तक में बेच देता था. फर्जी लाइसेंस बनाने के लिए वह अलग-अलग मुहर भी बनवाई थी. जिसके आधार पर वह फर्जी लाइसेंस निर्गत करता था.
रेशम द्वारा बेची गई 16 बंदूक बरामद
गुमला पुलिस ने फर्जी लाइसेंस बनाने में इस्तेमाल होने वाली मुहर भी उसके पास से बरामद की है. रेशम बहादुर के पास से बंदूक और गोलियां भी मिली है. इतना ही नहीं, पुलिस ने अब तक रेशम द्वारा बेची गई 16 बंदूक भी बरामद कर चुकी है. पुलिस का अनुमान है कि यह एक बड़ा नेटवर्क है और उस नेटवर्क में कई जिले के इस तरह के लोग शामिल है. रेशम बहादुर बहुत ही शातिर और चालाक बताया जाता है. सूत्रों के अनुसार वह मरे हुए लाइसेंस धारी, लावारिस या लूटी गई बंदूकों को खरीदता था. उसे नई जैसी कर बेच देता था. 20 से 25000 में ऐसी बंदूक खरीदने के बाद वह फर्जी लाइसेंस के साथ बेच देता था. अब समझिए की खरीदारों की क्यों दिलचस्पी रहती है.
धनबाद सहित सभी जगहों पर प्राइवेट गार्ड की मांग बढ़ी
इन बंदूकों को खरीदने में फिलहाल धनबाद सहित सभी जगहों पर प्राइवेट गार्ड की मांग बढ़ी हुई है. प्राइवेट गनर रखना शौक है अथवा लाचारी, इस पर विवाद हो सकता है, बहस की जा सकती है. क्योंकि अभी अपराध का ग्राफ कम से कम कोयलांचल में तो बढ़ा हुआ है. लाचारी में ही सही, दुकान, होटल व प्राइवेट कंपनियां भी बंदूकधारी गार्ड रखना पसंद करती है. बंदूकधारी गार्ड को ₹18000 तक वेतन मिल जाता है. ऐसे में रखने वाले भी सुरक्षित महसूस करते हैं और प्राइवेट गनर को भी नौकरी मिल जाती है. रेशम बहादुर ऐसे लोगों की ताक में रहता था, जो जरूरतमंद होते थे. इसके बाद खरीदार के नाम पर फर्जी लाइसेंस बनाकर बंदूक के साथ वह बेच दिया करता था. यह एक अलग तरह का अपराध है. बैंक, एटीएम, दुकान बड़े-बड़े प्रतिष्ठान के बाहर आपको कंधे पर लटकाए बंदूकधारी सुरक्षाकर्मी मिल जाएंगे. लेकिन रखने वाले भी इनकी कोई जांच-पड़ताल नहीं करते. पुलिस को भी यह जानकारी नहीं होती कि किस थाना क्षेत्र में कितने प्राइवेट बंदूकधारी गार्ड काम करते हैं. उनके पास जो हथियार और लाइसेंस है वह फर्जी है अथवा सही , इसकी जांच करने की भी कोशिश नहीं की जाती. फिलहाल धनबाद सहित अन्य जगहों पर हथियार वाले गार्ड सप्लाई करने की प्लेसमेंट एजेंसियों की भरमार है. रेशम बहादुर को केंद्र में रखकर अगर सभी जिलों की पुलिस जांच करें तो एक बहुत बड़े नेटवर्क का खुलासा संभव है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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