रांची:-लोकसभा चुनाव का एलान और इम्तहान दोनों समय के साथ कुछ महीनों में ही हो जाएंगे . झारखंड की 14 लोकसभा सीट में से एक खूंटी में भी चुनावी बिसात सज चुकी है. सभी अपने-अपने मोहरे बिछाने में जुटे हुए . अनुसूचित जनजाति आरक्षित इस सीट के इतिहास को झांके तो भाजपा का दबदबा और गढ़ यह इलाका रहा है. झारखंड के राजनीतिक नजरीए से भी यह सीट इस बार हॉट बन गई है, क्योंकि केन्द्र सरकार मे मंत्री और तीन बार के झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा फिर यहां से दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. पिछली बार यानि 2019 में जीत के लिए उन्हें काफी पसीना औऱ मश्शकत करनी पड़ी थी. तब जाकर जैसे-तैसे जीत नसीब हुई और दिल्ली दरबार तक पहुंचे.
खूंटी के रण में 'अर्जुन'
सवाल इस बार का है कि क्या अर्जुन मुंडा की नैया पार हो पायेगी. क्योंकि खूंटी का चुनाव उनके करियार और उनकी सियासत दोनों के लिए टर्निंग पाइट साबित होगा. हालांकि, दूसरा पहलू उनके साथ सुखद ये है कि मोदी लहर की हवा वहां भी बहेगी, जिस पर सवार होकर शायद उनका काम बन जाए. फिलहाल, अभी कहा नहीं जा सकता, क्योंकि जनता बेहद ही सोच-समझकर ही वोट करती है और चौकाती भी है.
पर मौजूदा और सुलगता हुआ सवाल यही है कि यहां से अर्जुन मंडा की साख दांव पर हैं. एक ऐसे राजनेता के सामने अग्निपरीक्षा है, जो झारखंड की सियासत में लंबे वक्त तक वजूद में रहकर अपनी पहचान के साथ-साथ साख बनाई है. लेकिन, अभी की हालत में आगे क्या होगा प्रश्न यहीं उठ रहे हैं.
पिछली बार मुश्किल से मिली थी जीत
2019 के लोकसभा चुनाव को देखे तो अर्जुन मुंडा 1445 वोट से ही चुनाव जीते सके थे. कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने उनकी हालत खराब कर दी थी. अर्जुन ने यहां झंडा गाड़ा, लेकिन बड़ी मुश्किल से . उम्मीद ये है कि इस बार भी शायद कालीचरण मुंडा की ही चुनौती उनके सामने हों, वैसे सियासी फिंजाओं में जो बात उड़ी रही हैं, उसमे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप बालमूचु और अभी-अभी कांग्रेस ज्वाइन की दयामनि बारला के नाम की भी चर्चा है.
यह याद रहे कि खूंटी सीट की बजाए जमशेदपुर सीट से अर्जुन मुंडा ने चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी थी. तब ही सवाल उठा रहा था कि शायद खूंटी के दंगल में अर्जुन फिट नहीं बैठ रहे हैं. तब ही वहां से लड़ने की ख्वाहिश जताई . हालांकि, एकबार फिर खूंटी से ही खुद को साबित करने की चुनौती आन पड़ी है.
सियासी चक्रव्यूह को तोड़ना होगा
कालिचरण मुंडा अगर कांग्रेस से प्रत्याशी बनते हैं, तो फिर अर्जुन मुंडा के लिए चुनाव में वैसे ही हालत बनेंगे. जो पिछली बार हुआ था. इसके पीछे वजह ये है कि खूंटी के बीजेपी विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा के बड़े भाई कालीचरण मुंडा है. ऐसी हालत में बड़ी मुश्किल स्थिति नीलकंठ सिंह मुंडा के भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हो जाती है, क्योंकि यहां बात भाई-भाई की हो जाती है. पिछली बार इसी का खामियाजा भी भाजपा को भुगतना पड़ा था. तब ही इतनी कम वोट से किसी तरह अर्जुन मुंडा निकले थे. खुद अर्जुन मुंडा को भी इस खट्टे तजुर्बे को याद, लिहाजा इन समीकरणों को समझकर ही आगे चुनाव में उतरेंगे. बेशक भाजपा का गढ़ यह इलाका रहा है. लंबे समय तक भाजपा के करिया मुंडा सांसद रहें हैं. लेकिन, खूंटी के छह विधानसभा की सीटों पर भी नजर डाले तो यहां इंडिया गठबंधन का दबदबा दिखता है. सिमडेगा और कोलेबिरा सीट कांग्रेस के पास है, तो तमाड़ और खरसावां में जेएमएम का कब्जा है. यानि इंडिया के सहयोगी कांग्रेस-जेएमएम के पास चार विधानसभा सीटें हैं. इधर, बाकी दो बचे विधानसभा सीट तोरपा और खूंटी पर भाजपा काबिज है.
'कमल फूल' बनेगा सबसे बड़ा सहारा
ऐसी हालत में सभी विधानसभा सीट को साधना भी अर्जुन मुंडा के लिए आसान नहीं होगा. पिछले पांच साल में उनके किए गये एलान और उनके किए गए काम पर भी नजर रहेगी. यहां एंटी एनकंबेंसी का मसला भी छाया रहेगा . इसके साथ ही ऐसे भी यहां बोला जाता है कि सांसद बनने के बाद अर्जुन मुंडा गायब ही रहे. ऐसी हालत में ऐसा फीडबैक उनके जीत के अरमानों पर पानी फेर सकता है.
कुल मिलाकर देखे तो चुनौतियां ही चुनौतियां झारखंड के राजनीति के अर्जुन के सामने होगी. जहां उनका सियासी तजुर्बा तो मददगार होगा ही . इसके साथ ही सबसे बड़ा सहारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नारा "मोदी का परिवार'' और कमल फूल होगा .
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