रांची (RANCHI): कल तक जिन आंखों में इंजीनियर बनने का सपना था आज उन आंखों में राज्य का भविष्य संवारने के सपने हैं. एक ऐसा लड़का जिसने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की सोची लेकिन हालात कुछ ऐसे हुए कि उसे अपने पिता के वर्चस्व को बचाने के लिए राजनीति में कूदना पड़ा. जी हां, कुछ ऐसी ही कहानी है झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की. जो इंजीनियरिंग का रास्ता छोड़ अब राज्य की बागडोर संभाल रहे हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक-दो बार नहीं बल्कि चौथी बार राज्य की सत्ता में बैठे हुए हैं. बरहेट से चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचे. साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. लेकिन हेमंत सोरेन की यह राजनैतिक सफर आसान नहीं है. कई परेशानियों में वे घिरे यहां तक कि जेल भी जा चुके हैं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. जेल से निकलकर वापस आए और दोबारा अपनी मेहनत व लग्न से सीएम की कुर्सी अपने नाम की. आइए जानते हैं हेमंत सोरेन के राजनैतिक सफर के बारे में कि आखिर कैसे हेमंत सोरेन राजनीति में आए और एक अमिट छाप पूरे देश की स्तर पर छोड़ रहे हैं.
पटना से की अपनी स्कूली पढ़ाई
झारखंड को अलग राज्य बनाने के लिए शिबू सोरेन की एक एहम भूमिका थी. शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो थे या यूं कहे कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को अस्तित्व में लाने वाले शिबू सोरेन ही है. 10 अगस्त 1975 को हेमंत सोरेन का जन्म रामगढ़ जिले के छोटे से गांव नेमरा में हुआ. हेमंत सोरेन शिबू सोरेन के दूसरे बेटे हैं. झारखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई लड़ने के कारण शिबू सोरेन हमेशा से ही घर से बाहर रहते थे. ऐसे में हेमंत सोरेन की परवरिश अकेले उनकी मां रुपी किस्कू सोरेन ने किया. हेमंत सोरेन ने पटना से अपनी 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए रांची के मेसरा बीआईटी में एडमिशन लिया. लेकिन उनका यह सपना अधूरा रह गया. क्योंकि, पिता का राजनैतिक वर्चस्व संभालने का बुलावा आ गया था.
ऐसे हुई हेमंत सोरेन की राजनीतिक करियर की शुरुआत
हेमंत सोरेन के बड़े भाई दुर्गा सोरेन ने उन्हें राजनीति सिखाने के लिए साल 2003 में झामुमो की स्टूडेंट यूनिट झारखंड युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया. जिसके बाद साल 2005 में पिता शिबू सोरेन ने हेमंत सोरेन के दुमका सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. हालांकि, राजनीति में नए आए हेमंत सोरेन ये चुनाव हार गए. जिसके बाद साल 2009 में किडनी फेल हो जाने के कारण हेमंत सोरेन ने अपने बड़े भाई खो दिया और झामुमो पार्टी ने अपने कार्यकारी अध्यक्ष को. ऐसे में बड़े भाई की मौत के बाद पिता की राजनैतिक जिम्मेदारियां हेमंत सोरेन के कंधों पर आ गई. शिबू सोरेन ने हेमंत सोरेन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया.
34 साल के उम्र में ही बने विधायक
शिबू सोरेन के इस फैसले का पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने विरोध किया तो कई नेताओं ने हेमंत को अभी राजनीति सीखने की सलाह दी. लेकिन शिबू सोरेन ने किसी की नहीं सुनी और अपने फैसले पर अड़े रहे. जसीके बाद हेमंत सोरेन पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए और साल 2009 के 24 जून को उनकी एंट्री राज्यसभा में हो गई. वहीं, इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव में हेमंत ने अपने पिता के साथ मिलकर दुमका सीट से चुनाव लड़ा और इस बार हेमंत चुनाव जीत गए. 34 साल के उम्र में ही हेमंत विधायक बन गए.
साल 2010 में युवा उपमुख्यमंत्री के रूप में उभरे
इसके बाद साल 2010 में भाजपा और झामुमो ने गठबंधन की सरकार बनाई. उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा थे. इस दौरान अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में हेमंत सोरेन युवा उपमुख्यमंत्री के रूप में उभरे. लेकिन कुछ मुद्दों पर मतभेद हो जाने के कारण भाजपा और झामुमो का गठबंधन टूट गया और राज्य में 2 साल तक राष्ट्रपति शासन चला.
पहली बार बने राज्य के मुख्यमंत्री
भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद झामुमो को कांग्रेस और राजद का समर्थन मिला. जिसके बाद 13 जुलाई साल 2013 को हेमंत सोरेन पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, ये कार्यकाल ज्यादा समय तक का नहीं रहा. डेढ़ साल के बाद हेमंत सोरेन को सीएम के पद से इस्तीफा देना पड़ा. क्योंकि, हेमंत सोरेन साल 2014 का विधानसभा चुनाव हार गए थे. लेकिन हेमंत सोरेन ने हार नहीं मानी. पांच साल के लंबे इंतजार के बाद साल 2019 में हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव जीत गए और 29 दिसम्बर 2019 को दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला.
जमीन पर कब्जा करने के मामले में जाना पड़ा जेल
हालांकि, हेमंत सोरेन का यह मुख्यमंत्री बनने का सफर आसान न रहा. पांच सालों का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उन्हें 31 जनवरी 2024 को इस्तीफा देना पड़ा. उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जेल जाना पड़ा. ED द्वारा आरोप लगाया गया कि हेमंत सोरेन ने पद का गलत इस्तेमाल कर जमीन पर कब्जा किया है. ऐसे में हेमंत सोरेन को 31 जनवरी 2024 को गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौरान झामुमो की तरफ से चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया.
जेल से बाहर आये और जीत गए चुनाव
वहीं, 28 जून 2024 को जेल से रिहा होने के बाद हेमंत सोरेन अलग ही अंदाज में नजर आए. जेल से बाहर आते ही हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन से मुख्यमंत्री का पद वापस ले लिया और एक बार फिर सीएम पद पर काबिज हुए. साथ ही 2024 के विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में जुट गए. साल 2024 के नवंबर महीने में विधानसभा चुनाव हुए और हेमंत सोरेन एक बार फिर बरहेट सीट पर चुनाव के लिए मैदान में उतर गए. नतिजन हेमंत सोरेन एक बार फिर प्रचंड जीत दर्ज की और चौथी बार राज्य की सत्ता का कमान अपने हाथों में ले लिया.
हेमंत सोरेन का पारिवारिक जीवन
हेमंत सोरेन के पारिवारिक जीवन के बारे में बात करें तो हेमंत सोरेन ने 7 फरवरी साल 2006 में कल्पना सोरेन से शादी कर ली थी. हेमंत सोरेन के 2 बेटे हैं. कल्पना सोरेन ने इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की है. शादी के बाद भी कल्पना सोरेन ने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और एमबीए की डिग्री पूरी की. इतना ही नहीं कल्पना एक प्ले स्कूल भी चलाती हैं. देखा जाए तो हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह कल्पना सोरेन को ही माना जा रहा है. क्योंकि, कल्पना सोरेन ने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद राजनीति में उनका बहुत साथ दिया. हर कठिन परिस्थिति में कल्पना सोरेन अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी रहीं. इस साल के विधानसभा चुनाव में भी कल्पना सोरेन एक्टिव रही और अपने पति हेमंत सोरेन की जीत के लिए जोरदार चुनावी प्रचार भी किया. कल्पना सोरेन भी गांडेय विधानसभा सीट से विधायक हैं और राजनीति में अपने पति का बराबर साथ दे रही हैं.
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