किरीबुरू मेघाहातुबुरु लौह अयस्क खदान बंदी के कगार पर !


चाईबासा (CHAIBASA) - सेल की मेघाहातुबुरु लौह अयस्क खदान और किरीबुरु लौह अयस्क खदान की सेन्ट्रल और साउथ ब्लाक के लिए स्टेज-2 फॉरेस्ट क्लीयरेंस न मिलने की स्थिति में दोनों खादान बंदी के कगार पर हैं. भारत सरकार कि संस्था भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड, बोकारो इस्पात संयंत्र कि मेघाहातुबुरु लौह अयस्क खदान सन 1984 और किरीबुरु लौह अयस्क खदान 1964 से उत्पादन कर देश के विकास में अनवरत अपना योगदान दे रहे हैं. वर्तमान में दोनों खदानों में लौह अयस्क भंडार समाप्ति की ओर है, जिससे उत्पादन संकट की स्थिति में है.
यह है मामला
मेघाहातुबुरु में लगभग छह मिलियन टन हीं लौह अयस्क उत्पादन योग्य भंडार है. इससे एक साल या डेढ़ साल उत्पादन किया जा सकता है. और किरिबुरु में लगभग दस मिलियन टन ही लौह अयस्क उत्पादन योग्य भंडार है, जिससे दो या ढ़ाई वर्ष उत्पादन किया जा सकता है. पूर्व के कच्चा माल प्रभाग (आरएमडी) के सारे खदानों में मेघाहातुबुरु और किरीबुरु खदानों कि स्थिति उत्पादन और गुणवत्ता कि दृष्टि से उच्च था, जो अब लौह अयस्क भंडार खदान में नहीं होने के फलस्वरुप निचले पायदान पर आ गया है. जिससे लगभग चार हजार कार्य करने वाले स्थायी या अस्थायी कर्मचारियों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि भंडार नहीं होने के कारण कब यह खादान बंद हो जाएगा और रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो जाएगी.
दोनों खदाने सारंडा क्षेत्र के लोगों के लिये अहम क्यों !
1. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली ने मेघाहातुबुरु के सेन्ट्रल ब्लॉक और किरीबुरु के साउथ ब्लॉक के लिए 247.50 हेक्टेयर वन भूमि का स्टेज -1 डायवर्सन का सन 2010 में अनुमोदन विभिन्न शर्तों के साथ दिया था. लेकिन मेघाहातुबुरु और किरीबुरु के प्रबंधन द्वारा लगाए गए शर्तों के अनुपालन के वावजुद अभी तक 247.50 हेक्टेयर वन भूमि का स्टेज -2 फॉरेस्ट क्लीयरेंस की अनुमति पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली तथा वन विभाग, झारखंड सरकार द्वारा आज तक नहीं मिली है जो चिंता की बात है.
2. मेघाहातुबुरु और किरीबुरु खदानों के कारण सारंडा में बसे गांव जैसे- कुमडी, करमपदा, भनगांव, नयागांव, मिर्चिगड़ा, कलैता, होंजोरदिरी, धरनादिरी, रोगड़ा, जुम्बईबुरु, बराईबुरु, टाटीबा, बंकर इत्यादि गांवों में बसे लगभग तीस से चालीस हजार लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन दोनों खदानों के वजह से रोजगार मिला हुआ है. इसके साथ ही परिवार और बच्चों के लिए शिक्षा और चिकित्सा की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है. सेल की मेघाहातुबुरु, किरीबुरु, गुवा और चिड़िया की खदानों के वजह से ही सारंडा के बीहड़ में रहने वाले वनवासियों को चिकित्सा सुविधा मुफ्त में मिल रही है.
3. अगर 2022 में सेन्ट्रल ब्लॉक और साउथ ब्लॉक का 247.50 हेक्टेयर वन भूमि का स्टेज -2 फॉरेस्ट क्लीयरेंस की अनुमति नहीं मिली तो मेघाहातुबुरु और किरीबुरु लौह अयस्क खदानें बंद हो जाएगी और इस खदानों के आस पास बसे गांवों के लगभग तीस से चालीस हजार लोगों के समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा, शिक्षा और स्वास्थ्य से भी वे वंचित हो जाएगें. सेन्ट्रल ब्लॉक और साउथ ब्लॉक को विकसित करने के लिए एक वर्ष से दो वर्ष लगेगा तथा उत्पादन आरंभ होने से अतिरिक्त रोजगार का भी सृजन होगा, जिससे आस पास के बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा.
4. राज्य सरकार और केन्द्र सरकार में बैठे जन प्रतिनिधियों ने भी इस खदान की फौरेस्ट क्लीयरेंस से संबंधित समस्या का समाधान कराने के लिए अधिक रूचि नहीं दिखा रहे हैं. ताकि खादान को बंद होने के साथ-साथ हजारों को बेरोजगार होने से कैसे बचाया जा सके. इस क्षेत्र में खदानें जब तक उत्पादन करती रहेगी तब तक ही क्षेत्र और राज्य का विकास होता रहेगा. इशके साथ ही गरीब बेरोजगार युवकों का पलायन दुसरे राज्यों में और झुकाव नक्सल की तरफ बंद रहेगा.
5. दोनों खादानों के बंद होने की स्थिति में एशिया का सबसे बडा़ साल पेड़ का सारंडा जंगल पर विनाश का पहाड़ टूट पडे़गा. कारण यह कि सारंडा जैसे आरक्षित जंगल पहले से ही क्षमता से अधिक जनसंख्या व इन्क्रोचमेंट गांवों का बोझ सह रही है. ऐसे में खादान बंद होने से सारंडा के लोग अपना व परिवार का पेट पालने के लिए जंगलों की कटाई और लकड़ियों की तस्करी पर पूरी तरह से निर्भर हो जायेंगे. ऐसी स्थिति में सरकार और वन विभाग के सामने सारंडा जंगल को बचा पाना बड़ी चुनौती होगी.
रिपोर्ट : संदीप गुप्ता,गुवा/चाईबासा
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