देवघर (DEOGHAR) : देवघर रोपवे हादसे के बाद चलाया जा रहा झारखंड का सबसे बड़ा रेस्क्यू मिशन तीसरे दिन समाप्त हो गया. तकरीबन 45 घंटे के इस ऑपरेशन में रोपवे में फंसे सभी 48 यात्रियों को रेस्क्यू किया गया. इनमें दो यात्री की खाई में गिरने से मौत हो गई. रेस्क्यू करने वाले जवानों का कहना था कि इतना मुश्किल और खतरनाक ऑपरेशन पहले कभी नहीं किया. वहीं इस घटना ने झारखंड ही नहीं, पूरे देश के लोगों में सिहरन पैदा कर दी थी. खासतौर पर उन लोगों के मन में जिन्होंने त्रिकुट में या कहीं और रोप-वे की सवारी की थी. ऊपर आसमान और नीचे खाई…दहशत भरे वे तीन दिन हादसे के शिकार पर्यटकों व उनके परिजनों के लिए कैसा रहा, यह सजह अनुमान किया जा सकता.
हादसे के पल-पल की कहानी
10 अप्रैल की शाम लगभग 4 बजे रोपवे ट्रॉली के पहाड़ में टकराने से यह हादसा हुआ था. पहले ही दिन एक महिला की मौत हो गई थी. इस बीच राज्य सरकार द्वारा 1200 फीट ऊंचाई पर रोपवे की ट्रॉली में फंसे 48 यात्रियों के रेस्क्यू के लिए सेना, वायुसेना, itbp और एनडीआरएफ से मदद मांगी गई थी.
11 अप्रैल को सुबह-सुबह वायुसेना के हेलीकॉप्टर और आईटीबीपी के जवान और एनडीआरएफ के जवानों ने मोर्चा संभाला और एक एक कर ट्रॉली में फंसे यात्रियों को एयर लिफ्ट करना शुरू किया. ऊंची पहाड़ी के कारण शाम ढलने तक मात्र 32 यात्रियों को ही रेस्क्यू किया जा सका. इसमें एक हादसा और हो गया. एक यात्री की रेस्क्यू के समय गहरी खाई में गिरने से मौत हो गई.
12 अप्रैल को फिर से ऑपरेशन शुरू हुआ और बचे हुए यात्रियों को निकालने की जद्दोजेहद शुरू हुई. ट्रॉली में फंसे यात्रियों को एक-एक कर एयर लिफ्ट किया जाने लगा. लेकिन इसी दौरान रेस्क्यू के अंतिम समय मे एक महिला यात्री की गिर कर मौत हो गई.
जब हाथ से फिसल गई जिंदगी, दो की मौत रेस्क्यू के दौरान
रोप-वे रेस्क्यू के दौरान दिखा जिंदगी और मौत के बीच का महीन फासला. दुमका के शिकाड़ीपाड़ा निवासी राकेश मंडल हेलिकॉप्टर तक सुरक्षित पहुंच गए, लेकिन दुर्भाग्य ऐसा कि सैनिक उन्हें ऊपर खींचने लगे तो उनका हाथ छूट गया और वे 1000 फीट नीचे गिर गए. इससे उनकी मौत हो गई. वहीं तीसरे दिन भी एक महिला की रेस्क्यू के दौरान ही मौत हो गई. जब उन्हें एयरलिफ्ट किया जा रहा था तो केबिन और तार के बीच फंस गई थीं.
हाईकोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
मंगलवार को इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने विभन्न माध्यमों से प्रकाशित-प्रसारित खबरों के आधार पर स्वत: संज्ञान लिया. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण की बेंच ने 25 अप्रैल तक सरकार से पूरे मामले की जांच रिपोर्ट मांगी है. दरअसल मामले में झारखंड सरकार को फटकार लगायी. कहा, कि इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं. बावजूद इसके सावधानियां नहीं बरती गईं और यह हादसा हुआ. कोर्ट में मौजूद महाधिवक्ता ने मामले में अपना पक्ष रखा. कहा कि इस मामले में जांच के आदेश दिए जा चुके हैं. सरकार ने ट्रॉली में फंसे ज्यादातर लोगों का रेस्क्यू कर लिया है.
तब चेतते तो आज न होता हादसा
वर्ष 2009 में गठित टेक्निकल टीम ने रोप-वे प्रोजेक्ट की क्षमता पर सवाल उठाए थे. इस टीम में बीआईटी मेसरा के मैकेनिकल विभाग के एचओडी, पेयजल मेकेनिकल विंग के कार्यपालक अभियंता और दामोदर रोपवे कंपनी के लोग शामिल थे. टीम के सदस्यों का मानना था कि रोप-वे की केबल ट्रॉली में कंपन अधिक है. टीम के सदस्यों का कहना था कि ऊपरी हिस्से में जहां खड़ी चढ़ाई है, वहां केबल कार में कंपन ज्यादा हो जाता है. टीम के इन सुझावों पर गर तब ध्यान दिया जाता तो शायद आज दहशत के ये तीन दिन नहीं गुजरते.
रोप-वे से जुड़े चार बड़े हादसे
1992 , 13 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के परवाणू में टिम्बर ट्रेल से टिम्बर हाइट्स के बीच चलने वाली केबल कार में एक बड़ा हादसा हुआ था. तब 11 लोग केबल कार में सवार थे. लैंडिग प्लेटफॉर्म पर पंहुचने वाली थी, तभी इसकी तीन में से दो केबल टूट गईं. कार तीसरी केबल पर तेजी से पीछे की तरफ फिसलती हुई चली गई व 4620 फुट की ऊंचाई पर अटक गई. इस घटना में कार के ऑपरेटर की मौत हुई, जबकि एक यात्री घायल हुए.
2003 में गुजरात के पंचमहल जिले महाकाली मंदिर जा रहा 67 यात्रियों ये भरा रोप-वे दुर्घटना का शिकार हो गया जिसमें सात लोगों की मौत हो गई थी, वहीं 20 लोग घायल हो गए थे.
2003 में ही पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में रोप-वे की दो ट्रॉलियां केबल से अलग होकर खाई में गिर गई थीं. इस हादसे में चार लोगों की मौत हो गई थी और 11 लोग घायल हो गए थे.
2017 में जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग में भी केबल टूटने से एक ट्रॉली खाई में गिर गई थी. हादसे में दिल्ली के चार यात्रियों और तीन स्थानीय गाइड की मौत हो गई थी.
ऑपरेशन के बाद बाबा मंदिर में पूजा
देवघर त्रिकुट हादसा में अपनी सूझ बूझ से दर्जनों पर्यटकों को सकुशल निकालने के लिए चलाया गया कठिन ऑपरेशन की सफलता के बाद सैन्य अधिकारियों ने बाबा मंदिर में पूजा अर्चना की. इस दौरान मंदिर प्रबंधन की ओर से सभी सैन्य अधिकारियों को विधिवत संकल्प कराया और गर्भगृह ले जाकर बाबा का जलार्पण कराया.
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