टीएनपी डेस्क(TNP DESK): कश्मीर के कुपवाड़ा इलाके के टीटवाल में मां शारदा देवी का मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक माना जाता है. यह मंदिर लगभग 5000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर माना जाता है. 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तानी कबाइली हमले के बाद यह मंदिर पुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी. जिसके बाद साल 2021 में मंदिर का जीणोद्धार शुरू करने का निर्णय लिया गया था. अब 75 साल बाद यह मंदिर पुरी तरह बन कर तैयार हो गया है. इस मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए 22 मार्च यानी चैत्र नवरात्री के समय खोल दिया जाएगी. बता दें कि यह मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए एक आस्था का प्रतीक है. कश्मीरी पंडित कुल देवी के रूप में मां शारदा की पूजा करते हैं.
कर्नाटक से शोभा यात्रा कर लाया जा रहा मां की मुर्ती
बता दें कि कर्नाटक के श्रृंगेरी मठ से शारदा मंदिर की मुर्ती लाई जा रही है. यह मुर्ती 3000 किमी दूर से शारदा माता की मूर्ती शोभा यात्रा के रूप में लाई जा रही है. 20 मार्च को टीटवाल के लिए माता शारदा देवी की शोभा यात्रा रवाना होगा. जिसके बाद प्राण- प्रतिष्ठा की जाएगी.
कॉरिडोर बनाने का उठ रहा मांग
कश्मीर पंडित का कहना है कि पहले श्रीनगर से शारदा देवी मंदिर तक वार्षिक यात्रा निकाली जाती थी. इस प्राचीन धार्मिक यात्रा को फिर से शुरू किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि करतारपुर कॉरडोर की तर्ज पर इस शोभा यात्रा की भी शुरूआत की जा सकती है.
18 महाशक्ति पीठों में से एक, माता सती का दायां हाथ गिरा था
शारदा पीठ को 18 महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि यहां माता सती का दायां हाथ गिरा था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती की मृत्यु के बाद शोकाकुल भगवान शिव सती के शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे. सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से 51 हिस्सों में काट दिया था. ये सभी हिस्से धरती पर जहां गिरे, वे सभी पवित्र स्थल बन गए और शक्ति पीठ कहलाए. इन सभी स्थानों पर माता शक्ति यानी मां पार्वती या दुर्गा के मंदिर बने हैं.
देश-विदेश से छात्र आते थे पढ़ने
पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी से 12वीं शताब्दी के दौरान शारदा पीठ न केवल एक मंदिर, बल्कि शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र भी था. शारदा पीठ के परिसर में शारदा यूनिवर्सिटी थी, जहां पढ़ने के लिए देश-विदेश से छात्र आते थे. माना जाता है कि शारदा यूनिवर्सिटी की वजह से ही उस समय उत्तर भारत में शारदा लिपि का विकास और प्रचार हुआ. शारदा लिपि की वजह से ही पहले कश्मीर का नाम शारदा देश पड़ गया, इसका मतलब होता है शारदा यानी सरस्वती का देश. शारदा यूनिवर्सिटी में करीब 5 हजार छात्र पढ़ते थे और वहां दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी थी. उस समय शारदा यूनिवर्सिटी की गिनती नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षा के चर्चित केंद्रों में होती थी.
उठती रही है भारतीयों को शारदा पीठ के दर्शन की अनुमति देने की मांग
1947 में देश की आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर को लेकर हुए युद्ध के बाद ये मंदिर PoK में चला गया. इसके बाद भारतीय तीर्थयात्रियों के यहां जाने पर रोक लग गई. उसके बाद से ये मंदिर निर्जन हो गया था और वहां काफी कम लोग जाते थे. लेकिन अब यह मंदिर बनकर पुरी तरह तैयार हो चुकी है औऱ 22 मार्च के बाद से यहां श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहेगा.
रिपोर्ट: आदित्य सिंह
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