सीएम हेमंत की इंट्री से पलट सकता था छत्तीसगढ़ का पासा! तो क्या जीती बाजी हारने का जश्न मना रहे थें भूपेश बघेल

जब हम आदिवासी समाज में सत्ता की भूख की कमी की बात कर रहे हैं तो हमें छत्तीसगढ़ गठन के बाद आज तक निर्वाचित विधायकों की सामाजिक पृष्ठभूमि की भी तलाश करनी होगी. और जब इन आंकड़ों को टटोलते हैं तो पाते हैं कि 44 फीसदी की आदिवासी-दलित और करीबन 52 फीसदी पिछड़ी जातियों की आबादी वाले इस प्रदेश में हमेशा से सामान्य जाति के विधायकों की संख्या अधिक रही है.

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