Ranchi-बिहार सरकार के द्वारा जातीय जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन के साथ ही झारखंड की सियासी फिजा भी बदलती नजर आने लगी है. और यह आग किसी एक राजनीतिक पार्टी में नहीं लगी हुई है. भाजपा हो झामुमो या फिर कांग्रेस जातीय जनगणना की तपिश हर राजनीति दल में समान रुप से महसूस की जा रही है. कभी जिन अल्पसंख्यक मतदातों को गैर भाजपा पार्टियों की जागिर मानी जाती थी, और उनकी विकल्पहीनता का लाभ उठाते हुए सीट वितरण के समय दूरी बना ली जाती थी. या चंद सीटें देकर उनकी वोट की फसल काट ली जाती थी, जातीय जनगणना के आंकड़ों के प्रकाशन के बाद अब वह तस्वीर भी बदलती नजर आने लगी है.
महतो मतदाताओं की नाराजगी भाजपा को पड़ सकता है मंहगा
दूसरी तरफ जिस हिन्दू राज्य का सपना दिखलाकर दलित-पिछड़ों के वोट की फसल भाजपा के द्वारा काटी जाती थी, अब चुनौती वहां भी खड़ी होने वाली है, या खड़ी हो चुकी है, ध्यान रहे कि झारखंड में भाजपा की पूरी राजनीति ही महतो मतदाताओं और दूसरी पिछड़ी जातियों की कृपा दृष्टि पर टिकी है. लेकिन उस अनुपात में उनकी भागीदारी नहीं मिली है.
14 में पांच सीटों पर सामान्य जाति का कब्जा
यदि लोकसभा सीटों की ही बात करें तो आज की तिथि में लोकसभा की कुल चौदह सीटों में पांच सीटों पर सामान्य जाति का कब्जा है, तीन सीट पिछड़ी जातियों के हिस्से है. जबकि छह सीटों पर अनुसूचित जनजाति और जाति का कब्जा है. इस प्रकार एक भी सीट अल्पसंख्यकों के खाते में नहीं है, और इसके साथ ही पिछड़ी जातियों को भी उनकी संख्या के अनुपात में भागीदारी मिलता हुआ दिखलाई नहीं पड़ रहा है. लेकिन आगामी लोकसभा में भी यही तस्वीर रहेगी, इस पर अभी से संशय खड़ा हो गया है.
इंडिया गठबंधन के अन्दर 14 में से 3 सीट पर अल्पसंख्यकों की दावेदारी
क्योंकि अंदर खाने इसकी चर्चा हर जगह तेज हो चुकी है, जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी ने बेहद साफ लफ्जों में लोकसभा की कुल 14 सीटों में तीन पर अल्पसंख्यकों की दावेदारी तेज कर दिया है. उन्होंने कहा कि बदली हुई राजनीति में कांग्रेस को जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी के रास्ते पर चलना होगा, और राहुल गांधी ने इसका एलान कर दिया है, हमें राहुल गांधी के उस वादे को झारखंड की सियासत में उतारना होगा.
कांग्रेस के अन्दर पिछड़ों की हिस्सेदारी को सवाल बना सकते हैं बन्ना गुप्ता
चंद दिन पहले जिस प्रकार धनबाद में कांग्रेसी कार्यकर्तोओं के द्वारा मंत्री बन्ना गुप्ता की उपस्थिति में बवाल काटा गया. दावा किया जाता है कि उसकी वजह भी जातीय जनगणना के ही आंकडें हैं, मंत्री बन्ना गुप्ता धनबाद लोकसभा सीट से चुनावी जंग में उतरने का मन बना रहे हैं, लेकिन धनबाद सीट पर पहले ही कई नेताओं की नजर लगी हुई है और उन्ही नेताओं के द्वारा बन्ना गुप्ता के विरोध के लिए बाहरी-भीतरी को हवा दिया जा रहा है. जबकि बन्ना खेमे का तर्क है कि इस सीट से कई बार सामान्य जाति के उम्मीदवारों को उतार कर आजमा लिया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली. इस हालत में बेहतर होगा कि कांग्रेस यहां से किसी पिछड़ी जाति से आने वाले चेहरा को उम्मीवार बनाये. और यहीं से उनका विरोध शुरु हो गया. लेकिन आग तो लग चुकी है, अब देखना होगा कि अल्पसंख्यक और पिछड़ी जाति के नेताओं के द्वारा हिस्सेदारी की इस बढ़ती मांग का कांग्रेस किस हद तक समाधान करती है.
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