पटना(PATNA):बिहार में जाति आधारित गणना को लेकर बवाल मचा है. एक तरफ इसको लेकर सीएम नीतीश को विपक्षी पार्टी बीजेपी घेरने में लगी है. तो वहीं दुसरी तरफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले हाईकोर्ट के वकील दीनू कुमार इनकी परेशानी को बढ़ाने में लगे हुए है. आज 3 मई को पटना हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई. इसकी जानकारी देते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि बिहार सरकार ने 6 जून 2022 को यह फैसला लिया कि बिहार में जाति आधारित गणना कराई जाएगी. और इकोनामिक सर्वे का भी प्रयास किया जाएगा. इसके लिए 500 करोड़ रूपया बिहार सरकार खर्च करेगी. और जाति आधारित गणना के जो अपडेट होंगे. वह सारे दल के लोगों को दिए जाएंगे.
जाति आधारित गणना संविंधान के खिलाफ
अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि हमारा मुद्दा है जब हर 10 साल पर भारत की केंद्र सरकार ये सर्वे कराती ही है. तो बिहार सरकार कैसे इसको करा सकती है. इसका अधिकार तो केंद्र सरकार को है. संविधान में कहीं भी नहीं लिखा है कि बिहार सरकार को जाति आधारित गणना कराने का अधिकार है. बिहार सरकार ने रूल रेगुलेशन नहीं बनाया. और 500 करोड़ रुपया खर्च कर जाति करा रही है. गणना किस पर्पस के लिए किया जा रहा है. इसका भी खुलासा नहीं किया जा रहा है. जाति आधारित गणना कराने का फैसला गलत है. और यह बातें हमने कोर्ट में रखी है.
ये राइट टू प्राइवेसी का उल्लंघन है
एक तरफ सरकार कहती है कि जातिवाद से ऊपर उठने की बात करती है. तब समाज का विकास होगा. वहीं दुसरी तरफ कास्ट की बात कर रहे हैं. इस गणना में धर्म और जाति से इनकम पूछकर डाटा को सार्वजनिक किया जाएगा. ये राइट टू प्राइवेसी का उल्लंघन है. बिहार सरकार का जो फैसला है वो कानून के खिलाफ है.
सरकार की ओर से संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर बहस कल भी चलेगी
वहीं हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से अधिवक्ता पीके शाही ने सरकार के पक्ष में कहा है कि विधानसभा में सभी दलों के लोगों ने इस को मान्यता दी. राज्यपाल ने इसको लेकर अभिभाषण किया. इस वजह से यह निर्णय लिया गया है. क्योंकि यह जाति आधारित गणना लोगों के हित में है. वहीं पटना हाईकोर्ट ने सवाल पूछा कि सरकार ने कोई कानून क्यों नहीं बनाया. इसमें सरकार की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर बहस कल भी चलेगी.
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