क्या झारखंड में जदयू के संगठन विस्तार की कोशिशों पर विराम लगा सकता है उपेन्द्र कुशवाहा की पलटी?
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रांची(RANCHI): पिछले कुछ दिनों से जदयू और राजद दोनों की कोशिश झारखंड में संगठन विस्तार करने की रही है, कहा जाता है कि इसी रणनीति के तहत सीएम नीतीश ने खीरु महतो को राज्य सभा भेजा था. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और मंत्री श्रवण कुमार की विशेष नजर जदयू के संगठन विस्तार लगी हुई है, जबकि नीतीश कुमार के खासमखास डॉ अशोक चौधरी को झारखंड का प्रभारी बनाया गया है.
झारखंड में कुशवाहा की आबादी 15 फीसदी होने का दावा
लेकिन इस बीच बिहार में कुशवाहा समाज की राजनीति करने का दावा करने वाले उपेन्द्र कुशवाहा ने जदयू को अलविदा कह दिया है, कुशवाहा समाज और कुर्मी जदयू का सबसे बड़ा आधार वोट माना जाता है, दावा किया जाता रहा है कि झारखंड में कुशवाहा समाज की आबादी करीबन 15 फीसदी है और करीबन इतनी ही आबादी कुर्मी जाति की भी है. अब सवाल यह पैदा हो रहा है कि क्या उपेन्द्र कुशवाहा का फैक्टर यहां काम करेगा, क्या संगठन विस्तार की जदयू की कोशिशों को धक्का लगेगा. क्या खीरु महतो जदयू को संजीवनी देने में सफल हो पायेंगे?
झारखंड में उपेन्द्र कुशवाहा का कोई सांगठनिक ढांचा नहीं
यहां यह भी जानकारी रहे कि उपेन्द्र कुशवाहा ने झारखंड में भी अपने संगठन रालोसपा का विस्तार तो किया था, लेकिन उसका कोई मजबूत सांगठनिक ढांचा नहीं था और ना ही कोई खास प्रभाव. यही कारण है कि फिलवक्त जदयू की ओर से यह दावा किया जा रहा कि उपेन्द्र कुशवाहा की विदाई का झारखंड में कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है.
राजनीतिक रैलियों में किया जा सकता है इस्तेमाल
वैसे भी उपेन्द्र कुशवाहा की पूरी कोशिश किसी प्रकार बिहार में अपने अपने अस्तित्व को बनाये रखने की होगी, ना ही झारखंड में संगठन विस्तार की. भाजपा से उनकी नजदीकियां भी उन्हे झारखंड में संगठन में मदद नहीं करने वाली है.
जानकारों का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा उनका इस्तेमाल राजनीतिक रैलियों में किया जा सकता है, लेकिन बगैर कोई सांगठनिक ढांचा के इसका लाभ नहीं मिलने वाला है.
झारखंड-बिहार में जदयू के पास कुशवाहा नेताओं की कमी नहीं
वैसे भी जदयू में कुशवाहा नेताओं की कोई कमी तो नहीं है, खुद बिहार में ही कुशवाहा जाति के विधायकों के द्वारा उनका विरोध किया जाता रहा है. उनकी छवि भी बार-बार पाला बदलने वाले नेता की रही है. वह कभी भी किसी पार्टी में लम्बे अर्से तक नहीं रह पायें. उनकी यह राजनीतिक महात्वाकांशा जदयू के दूसरे कुशवाहा नेताओं को भी पसंद नहीं है.
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