Tnp desk- कल जैसे ही पटना के गांधी मैदान से लालू यादव ने पीएम मोदी के परिवारवाद के आरोपों पर पलटवार करते हुए इस बात का दावा किया कि परिवार का दर्द वही समझता है, जिसके पास परिवार होता है, वह परिवार के दर्द को क्या समझेगा, जिसके आगे पीछे कोई हो ही नहीं. परिवार और परिवार के सामने खड़ी दुश्वारियों की जानकारी उसे क्या होगी और इसके साथ ही भाजपा नेताओं का सोशल मीडिया पर बायो बदलने लगा. छोटे बड़े सभी नेताओं की बीच बायो बदलने की होड़ लग गयी, बायो में “मोदी का परिवार” जोड़ा जाने लगा.
लोकसभा चुनाव के पहले ही दिखा लालू का डर?
सियासी जानकारों का दावा है कि इस बदलाव के पीछे भाजपा के अंतर्मन बैठा लालू का भय है, क्योंकि 2015 के विधान सभा में जैसे ही पीएम मोदी ने डीएनए को लेकर सवाल खड़ा किया था. लालू यादव इसे बिहार के डीएनए से जोड़कर सियासी खेल खेल गयें और विधान सभा चुनाव में भाजपा को महज 55 सीटों पर लटक जाना पड़ा, इसके साथ ही जब एन चुनाव के पहले संघ प्रमुख ने आरक्षण में बदलाव लाने की बात कही, उसका जाति के बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का सुझाव दिया. लालू यादव ने इसे दलित पिछड़ों के बीच चुनावी मुद्दा बना दिया, पूरा बिहार इसी मुद्दे के इर्द गिर्द घूमने लगी और आखिरकार इसका भी खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा. इस बार जैसे ही प्रधानमंत्री ने परिवारवाद पर हमला बोला. सियासत के इस जादूगर ने इसे भी परिवार के दर्द से जोड़ कर एक बड़ा खेल कर दिया. इस बात का दावा ठोक दिया कि परिवार को दर्द वही समझेगा, जिसका परिवार होगा, जिसका कोई परिवार ही नहीं होगा, भला उसे एक परिवार के चलाने में आने वाली दुश्वारियों का दर्द की जानकारी क्या खाक होगी? निश्चित रुप से लालू का यह तीर निशाने पर लगा, और भाजपा नेताओं को पीएम मोदी के बचाव में अपने बायो में मोदी का परिवार लिखना पड़ा, ताकि यह मैसेज जाय कि पीएम मोदी का भी एक परिवार है. वह अकेला नहीं है. हालांकि इस बार लालू का यह तीर कितना कामयाब होता है, इसके लिए लोकसभा चुनाव परिणाम क्या इंतजार करना होगा, लेकिन जिस तरीके से लालू के तंज के बाद भाजपा नेताओं को अपने बायो में बदलाव लाना पड़ा. वह इस बात का संकेत जरुर है कि भाजपा को लालू के सियासी जादूगरी का पूरा एहसास है, और वह इसके हल्के में एक बार फिर से बिहार में अपनी मिट्टी पलीद नहीं करवाना चाहती.
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