Tnp desk-पूर्व सीएम हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन के द्वारा सियासी अखाड़े में उतरने के एलान के साथ ही झारखंड का सियासी पारा चढ़ता दिखने लगा है. एक तरफ भाजपा सियासत के मैदान में कल्पना सोरेन का स्वागत करने के बजाय हेमंत के हस्श्र से सीख लेने की नसीहत दे रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और झामुमो की ओर से इसे लोकसभा चुनाव के पहले झामुमो के साथ ही पूरे महागठबंधन के लिए एक बड़ा सौगात बताया जा रहा है. झामुमो का दावा है कि अब कल्पना झारखंड के आम अवाम तक हेमंत के साथ हुई ज्यादतियों को ले जायेगी, आदिवासी- मूलवासी मतदाताओं के साथ ही राज्य की आधी आबादी और युवाओं को भाजपा की दमनकारी नीतियों का खुलासा करेगी, इस बात को सामने लायेगी कि कैसे भाजपा की जल जंगल और जमीन की लूट का प्रतिकार करने के कारण हेमंत को कालकोठरी में कैद कर सियासी बदले की कार्रवाई की जा रही है, वहीं भाजपा इस बात का ताल ठोक रही है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम पर कल्पना की इस इंट्री का कोई असर नहीं होने वाला, झारखंड की जनता को सोरेन परिवार की तुलना में पीएम मोदी के वादे पर भरोसा हैं, मोदी की गारंटी ही भाजपा को सभी 14 सीटों पर विजय का वरमाला पहनायेगी.
गिरिडीह के झंडा मैदान से कल्पना सोरेन थामेगी सियासत का झंडा
यहां याद रहे कि सियासी गलियारे में चल रही अटकलबाजियों पर विराम लगाते हुए कल्पना सोरेन ने सक्रिय राजनीति में उतरने का विधिवत एलान कर दिया है. अपने सोशल मीडिया एकाउंट इसकी घोषणा करते हुए कल्पना ने लिखा है कि “आज (3 मार्च को) अपने जन्मदिन और कल यानि सोमवार को गिरिडीह में झामुमो के स्थापना दिवस कार्यक्रम में शामिल होने से पहले रविवार को झारखंड राज्य के निर्माता और झामुमो के अध्यक्ष बाबा दिशोम गुरुजी और मां से आशीर्वाद लिया। आज ही सुबह हेमंत जी से भी मुलाकात की. मेरे पिता भारतीय सेना में थे। वह सेना से रिटायर हो चुके हैं। पिताजी ने सेना में रहकर देश के दुश्मनों का डटकर सामना किया। बचपन से ही उन्होंने मुझ में बिना डरे सच के लिए संघर्ष करना और लड़ना भी सिखाया। झारखंडवासियों और झामुमो परिवार के असंख्य कर्मठ कार्यकर्ताओं की मांग पर कल से मैं सार्वजनिक जीवन की शुरुआत कर रही हूं। जब तक हेमंत जी हम सभी के बीच नहीं आ जाते, तब तक मैं उनकी आवाज बनकर आप सभी के बीच उनके विचारों को आपसे साझा करती रहूंगी, आपकी सेवा करती रहूंगी।“ इसके साथ ही #झारखंड झुकेगा नहीं का टैग लगाते हुए लिखा है कि “विश्वास है, जैसा स्नेह और आशीर्वाद आपने अपने बेटे और भाई हेमंत जी को दिया है, वैसा ही स्नेह और आशीर्वाद, मुझे यानी हेमंत जी की जीवन संगिनी को भी देंगे”
लम्बे समय से कल्पना की सियासी इंट्री की हो रही चर्चा
ध्यान रहे कि जब गांडेय विधान सभा सीट से कांग्रेस विधायक सरफराज अहमद ने इस्तीफा दिया था, तब भी इस सीट से कल्पना सोरेन का चुनाव लड़ने के दावे किये गये थें. इसके बाद जब भुईंहरी जमीन मामले में हेमंत की गिरफ्तारी हुई, तब भी इस बात की चर्चा तेज थी कि राज्य की कमान कल्पना सोरेन के हाथ में जाने वाली है. लेकिन अन्ततोगत्वा सत्ता की बागडोर दिशोम गुरु के पुराने और वफादार सहयोगी चंपाई सोरेन के हाथ आयी. तब दावा किया गया था कि कल्पना को लेकर सोरेन परिवार में मतभेद की स्थिति थी. बसंत सोरेन और सीता सोरेन कल्पना के हाथ में सीएम की कुर्सी देने को राजी नहीं है. खुद दिशोम गुरु भी कल्पना के बजाय राज्य की बागडोर बसंत सोरेन के हाथ में सौंपने के पक्षधर है. लेकिन ये सारे दावों महज अफवाह साबित हुए. चंपाई सोरेन की ताजपोशी ने साफ कर दिया कि सोरेन परिवार के अंदर सीएम की कुर्सी को लेकर किसी प्रकार का कोई रस्साकसी की स्थिति नहीं थी. यह सारे दावे महज भाजपा के ख्याली पुलाव थें. ना तो बसंत सोरेन की ताजपोशी हुई और ना ही उपमुख्यत्री की कुर्सी सौंपी गयी. जिस सीता सोरेन को लेकर बगावत के दावे किये जा रहे थें, वह सीता सोरेन भी इस सियासी संकट में अपने परिवार के साथ खड़ी नजर आयी.
कल्पना की चाहत या सोरेन परिवार की सियासी रणनीति
लेकिन अब जब खुद कल्पना सोरेन ने सियासी दंगल में उतरने का एलान कर दिया है. इसके बाद सवाल खड़ा होता है कि यह कल्पना की चाहत है या फिर सोरेन परिवार की सियासी रणनीति का हिस्सा? क्या कल्पना की इस सियासी इंट्री के पीछे दिशोम गुरु और हेमंत की सोची समझी रणनीति है? क्या सोरेन परिवार यह मान कर चल रहा है कि हेमंत की गिरफ्तारी के बाद आदिवासी मूलवासी समाज में जो सहानुभूति की लहर उमड़ती दिख रही है, उस सहानुभूति की लहर को वोट में रुपांतन्तित करने का हथियार कल्पना सोरेन की सियासी इंट्री हो सकती है. दावा किया जाता है कि यह सोरेन परिवार की एक सोची समझी रणनीति है, एक तरफ चंपाई सोरेन राज्य में सरकार का चेहरा होंगे, तो दूसरी तरफ कल्पना झामुमो की चेहरा होंगी.
आधी आबादी के साथ ही आदिवासी मूलवासियों के बीच कहर ढा सकता है कल्पना का चेहरा
सियासी जानकारों का यह दावा है कि यदि कल्पना झामुमो की चेहरा बनती है, और पूरे राज्य में घूम घूम कर आदिवासी-मूलवासी मतदाताओं के साथ ही राज्य की आधी आबादी के सामने इस बात को रखती है कि हेमंत की गिरफ्तारी की मूल वजह किसी जमीन का घोटला नहीं, बल्कि भाजपा की आदिवासी मूलवासी विरोधी नीतियों के सामने खडा होने का सियासी बदला है. जल जंगल और जमीन की लड़ाई का बिगुल फूंकने का सियासी बदला है, झारखंडी अस्मिता और आदिवासी मूलवासियों की हकमारी के विरोध में आवाज उठाने का राजनीतिक बदला है, कल्पना की इंट्री से आदिवासी मूलवासी मतदाताओं राज्य की आधी आबादी पर निशाना साधा जा सकता है, इतना साफ है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में कल्पना झामुमो की स्टार प्रचारक बनने जा रही है, और इसके साथ ही भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ने नजर आती है. क्योंकि जिस हेमंत की गिरफ्तारी को झामुमो और महागबंधन के लिए लोकसभा चुनाव के पहले सदमा माना जा रहा था, इस बात का दावा किया जा रहा था कि हेमंत की गिरफ्तारी के साथ ही महागठबंधन ने अपना एक स्टार प्रचारक खो दिया है, कल्पना की इंट्री से अब महागठबंधन की वह कमी दूर होती नजर आ रही है. और खास कर तब जब हेमंत की गिरफ्तारी के बाद जिस तरफ आदिवासी मूलवासी समूहों के बीच सामाजिक विक्षोभ की स्थिति बन रही है. कल्पना का रौद्र रुप भाजपा की हसरतों की राह में कंटीले तार बिछा सकता है.
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