सुगौली(SUGAULI): सुगौली थाना क्षेत्र के उत्तरी मनसिंघा पंचायत के खोड़ा गांव के रामजानकी मंदिर से रविवार की देर रात माता सीता और भगवान लक्ष्मण के प्रतिमा की चोरी का मामला प्रकाश में आया है. सोमवार की सुबह मंदिर के पुजारी द्वारा पूजा के लिए मंदिर में जाने के दौरान प्रतिमा की चोरी होने की जानकारी हुई. सूचना पर बड़ी संख्या में पहुंचे ग्रामीणों ने इसकी सूचना पुलिस को दी. सूचना पर पहुंची पुलिस ने आसपास के मुआयना करने के बाद मंदिर से पूरब खेत से भगवान की माला व प्रतिमा के कुछ कपड़े बरामद किए. जिसके बाद चोरी की घटना के उद्भेदन में पुलिस जुटी है.
ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार मंदिर निर्माण पूर्ण होने के बाद वर्ष 1958 में इस रामजानकी मंदिर में भगवान राम और सीता के साथ भगवान लक्ष्मण की बेशकीमती धातु से बनी प्रतिमा की स्थापना कराई गई थी. जिसके बाद भवन के जीर्ण शीर्ण होने से ग्रामीणों ने इस परिसर में नया तिनमंजिला मंदिर के भवन का निर्माण कराया है. मंदिर के निचले गर्भगृह के अंदर का कार्य बहुत हद तक पूरा किया जा चुका है. इस बीच मंदिर से भगवान की दो दो प्रतिमाओं की चोरी हो जाने से पूरे गांव में उदासी छा गई है. इसको लेकर ग्रामीण सुनील यादव,योगेंद्र पड़ित,रामअयोध्या ठाकुर आदि ने बताया कि इतनी पुरानी प्रतिमा की चोरी से पूरे गांव वासियों को गहरा आघात लगा है. पुराने मंदिर के टूटने के बाद भगवान की प्रतिमा इधर उधर ही रखी जाती रही. अभी हाल में मंदिर के गर्भगृह के साज सजावट के समय ये सभी भगवान की मूर्तियां बरामदे में ही रखी गयी थी. पर भगवान के स्थान पर मूर्ति रखे जाने के बाद चोरी होने से पूरे गांव में उदासी छाई है. अभी मंदिर परिसर में इसी 13 जनवरी से अष्टयाम का आयोजन किया गया था.
किसने कराया मंदिर का निर्माण
चोरी की सूचना पर आरक्षी निरीक्षक अभय कुमार, थानाध्यक्ष अखिलेश कुमार मिश्रा सदल बल पहुंचकर घटना का जायजा लिया. इस बाबत थानाध्यक्ष श्री मिश्र ने बताया कि चोरी की इस घटना के उद्भेदन के दिशा में प्रयास किया जा रहा है. मंदिर निर्माण के बाबत ग्रामीण विनोद श्रीवास्तव, रामसवारी देवी,शांति देवी,सोना देवी आदि ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण यहीं की रामसवारी देवी ने कराया था. पहले लोग बताते थे कि बड़े परिवार में उनका जन्म हुआ था. उनकी शादी ढ़ाका के नीम बड़हरवा गांव में हुआ था. उनको संतान नही होने पर वे वापस अपने घर लौट आयी. यहां भी वे अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी. कहा जाता है कि अपने ससुराल से वापस आने के दौरान रास्ते के दर्जनों गांवों में रहकर अपने खर्चे से उन्होंने कुंओं का निर्माण कराया था. यहां आने के बाद उन्होंने अपने जमीन पर ही मंदिर का निर्माण कराने के साथ काफी जमीन भी मंदिर के लिए दान कर दी. जो आज भी मौजूद है.
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