Ranchi- एक तरफ पूरे देश की निगाह राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, मिजोरम और तेलांगना में होने वाली विधान सभा चुनावों पर टिकी हुई है. इन पांच राज्यों में मिजोरम को छोड़कर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होना है. और बहुत हद तक इन पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से देश का मिजाज सामने आ जायेगा.
लेकिन दूसरी ओर से लोकसभा चुनाव को लेकर भी सियासी दलों की रणनीतियां तेज हो रही है. पुराने प्यादों को ही जंगे मैदान में उतारा जायेगा या बदले हालत में नये चेहरे को सामने लाकर विजय पताका फहरायी जायेगी, अंदर खाने इसकी गोटियां सजायी जा रही है.
कुछ यही स्थिति पलामू संसदीय सीट को लेकर भी है. डाल्टेनगंज, विश्रामपुर, छतरपुर, हुसैनाबाद, गढ़वा और भवनाथपुर सहित छह विधान सभाओं को अपने आप में समेटे पलामू संसदीय सीट पर आंकड़ों के हिसाब से भाजपा की पकड़ मजबूत नजर आती है. आज के दिन इन छह विधान सभाओं में महज गढ़वा ही काग्रेंस या इंडिया गठबंधन के पास है. चंद दिन पहले तक हेमंत सरकार को समर्थन दे रहे हुसैनाबाद विधायक कमलेश सिंह ने भी एनडीए को समर्थन का एलान कर दिया है. इस प्रकार आंकडों की नजर में भाजपा की स्थिति मजबूत मानी जा सकती है. लेकिन चुनाव तो चुनाव होता है, और हार जीत का फैसला बहुत कुछ अंतिम पैंतरों के आधार पर होता है.
थोड़ी सी भी चूक भाजपा को महंगी पड़ सकती है
भाजपा को इस बात का पूरा एहसास है कि उसकी थोड़ी सी भी चूक पलामू में मंहगी पड़ सकती है. हालांकि अभी किसी भी दल के द्वारा अपने पत्ते नहीं खोले जा रहे हैं, लेकिन दावा किया जा रहा है कि 2014 और 2019 में लगातार दो बार विजय पताका फहरा चुके वीडी राम की राह में सबसे बड़ी बाधा उनकी उम्र है. साथ ही दो दो बार का विजय पताका फहराने के बाद अब उनके खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी भी बढ़ चुकी है, और इसे पाट पाना एक बड़ी चुनौती होगी.
दो-दो बार के सांसद रहे बीडी राम के पास अपनी उपलब्धियों को गिनाने के लिए कुछ खास नहीं
पलामू की सियासत पर गहरी नजर रखने वाले पत्रकारों और स्थानीय समीकरणों को खंगालते रहे सियासी जानकारों का मानना है कि इस बार बीडी राम की वापसी मुश्किल नजर आ रही है. तर्क दिया जा रहा है कि दो बार पलामू का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी बीडी राम ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिसे वह अपनी उपलब्धि के बतौर प्रचारित कर सकें.
पलामू संसदीय सीट से तीन-तीन बार सांसद रहे बृजमोहन राम की हो सकती है वापसी
इस हालत में यह सवाल खड़ा होता है कि बीडी राम को किनारे करने के बाद भाजपा के पास विकल्प क्या है. कुछ लोग दावा करते है कि उस हालत में भाजपा अपने पुराने प्यादे बृजमोहन राम को वापस मैदान में ला सकती है, बृजमोहन राम के पक्ष में दावा किया जाता है कि 1996,1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में विजय पताका फहराने के बावजूद जब पार्टी ने उनका टिकट काटा तो बृजमोहन राम ने पूरी शालिनता के साथ पार्टी के उस फैसले को स्वीकार किया. लेकिन सवाल यह है कि जिस उम्र का हवाला देकर बीडी का पैदल किया जायेगा, ठीक वही उम्र की बाधा तो बृजमोहन राम के सामने खड़ी होगी. लेकिन उनके समर्थकों का तर्क है कि उम्र की बात को दरकिनार कर दें को बृजमोहन राम के सामने एंटी इनकम्बेंसी का खतरा नहीं होगा, हालांकि कई जानकार मानते हैं कि पिछले पांच वर्षो में बृजमोहन राम पलामू में सक्रियता नहीं देखी गयी, कुल मिलाकर वह रांची शिफ्ट हो गयें.
प्रभात कुमार भुइंया और प्रकाश राम का नाम भी चर्चा में
बीडी राम और बृजमोहन राम के साथ ही कई दूसरे नाम भी सियासी गलियारों में उछाले जा रहे हैं, इसमें एक नाम भाजपा अनूसूचित मोर्चा से जुड़कर लम्बे अर्से से पलामू की सियासत में हाथ पैर मारते रहे प्रभात कुमार भुइंया और प्रकाश राम का है. हालांकि इन तमाम नामों के साथ ही एक और नाम पूर्व सांसद मनोज भुईयां का भी हैं, लेकिन 2004 में इस संसदीय सीट पर विजय पताका फहरा चुके कानूनी प्रक्रियायों में उलझे हैं, उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग चुकी है, अब देखना होगा कि पार्टी अंतिम मुहर किस पर लगाती है,
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