Ranchi-अपने सातवें समन को आखिरी समन बताने के बाद जैसे ही ईडी की ओर से सीएम हेमंत को आठवां समन जारी किया गया, सियासी गलियारों में एक बार फिर से कयासबाजियों का बाजार गर्म हो गया. विपक्षी दलों से जुड़े सियासतदान तो सियासतदान कथित राजनीतिक विश्लेषकों के द्वारा एक बढ़ कर एक दावे किये जाने लगे, सातवें समन के समान ही इस बार भी दावा किया जाने लगा कि अब तो पानी सिर से उपर बह रहा है, यदि इस बार भी ईडी के आदेश को नजरअंदाज किया गया तो यह सरकार की आखिरी भूल होगी, क्योंकि इसके बाद खुद ईडी सीएम हाउस की ओर बढ़ता नजर आयेगा, दावा यह भी किया गया कि खुद ईडी ने सीएम हाउस को इस बात की चेतवानी जारी की है कि यदि उनके अधिकारी वहां पहुंचे और कानून व्यवस्था की कोई समस्या खड़ी हुई तो उसका समाधान निकालने की जिम्मेवारी सरकार पर होगी. क्योंकि ईडी धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention Of Money Laundering Act-PMLA) के तहत कार्रवाई को स्वतंत्र है.
20 अगस्त समय 11 बजे दिन
लेकिन इस बार भी ईडी के समन के जवाब में एक बंद लिफाफा ईडी कार्यालय पहुंचा. चुनाव आयोग के बंद लिफाफे को पढ़ने के एक्सपर्ट राजनीतिक विश्लेषकों के द्वारा एक बार फिर से इस बंद लिफाफे के मजमून को पढ़ने की होड़ लग गयी, अपने-अपने आंखों के पावर के अनुसार इस बंद लिफाफे के मजमून को पढ़ने की कोशिश की जाने लगी, अभी वे इस बंद लिफाफे से मजमून को पढ़ पातें कि उसके पहले ही यह खबर आग की तरह फैल गयी कि पूरे सम्मान के साथ सीएम हाउस की ओर से ईडी अधिकारियों को 20 अगस्त को 11 बजे दिन में सीएम हाउस आने का आमंत्रण दिया गया है.
हर सवाल का जवाब तैयार
इसके बाद साफ हो गया कि सीएम हेमंत इस बार ईडी के सवालों का जवाब देने को तैयार हैं, लेकिन यह समय खुद सीएम हेमंत का है और स्थान झारखंड का लेकिन सवाल ईडी का होगा. हालांकि इसके पहले कुछ सियासी विश्लेषकों ने यह दावा जरुर कर दिया था कि ईडी अपने सवालों का बंद लिफाफा सीएम हाउस भेजती रहेगी और सीएम हेमंत की ओर से उसका माकूल जवाब दिया जाता रहेगा. लेकिन इन सारे सियासी विश्लेषकों के विश्लेषण पर ठंडा पानी डालते हुए सीएम हेमंत ने अधिकारियों को आने का आमंत्रण दे डाला, और इसके साथ ही झारखंड की सियासत में हमेशा की तरह एक बार फिर से कयासवीरों की भविष्यवाणी तैरने लगी, अब दावा किया जा रहा कि स्थान और समय भले ही सीएम हेमंत का हो, लेकिन ईडी के दिमाग में कुछ और खिचड़ी पक रही है, कुछ भी अनहोनी हो सकती है.
बंधु के बिगड़े बोल
इस बीच पूर्व मंत्री और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ने यह दावा कर बवाल खड़ा डाला कि हर 12 वर्ष में आदिवासी महिलाएं जनी शिकार करती है, वह समय अब नजदीक आने वाला है, यदि यहां के आदिवासियों ने धनमुगरा उठा लिया तो ईडी बीडी कहीं टिकने वाली नहीं है. अब बंधु तिर्की का यह बयान उनके मन की उपज है, या झामुमो की ओर से एक रणनीति के तहत बंधु को आगे कर भाजपा को इसका सियासी परिणाम को भुगतने की चेतावनी दी जा रही है, यह तो बंधु ही जानते होंगे, लेकिन इतना साफ है कि जब 2024 का संग्राम मुहाने पर खड़ा हो, किसी भी वक्त रणभेरी बजने की तैयारी हो, उस हालत में भाजपा तो क्या कोई भी सियासी दल आदिवासी मूलवासियों के साथ बैर लेने का सियासी भूल नहीं करेगा. इस हालत में यह सवाल खड़ा होता है कि फिर इन पैंतरों का मतलब क्या है?
क्या है इन पैंतरेबाजियों का सियासी मकसद!
तो इन पैंतरेबाजियों का मकसद बिल्कुल साफ है, हर सियासी दल अपने-अपने चुनावी समीकरणों के हिसाब से अपना पिच सजा रहा है. यदि भाजपा ईडी को आगे कर गैर आदिवासी मतों और खास कर प्रवासी झारखंडियों में यह पैगाम देने की कोशिश कर रही है कि झारखंड सरकार बेहद भ्रष्ट है, और इसका रहना झारखंड के हित में श्रेयस्कर नहीं है, तो दूसरी ओर झामुमो उसकी इस चाल का अपने चुनावी समीकरण के लिए बेहद खुबसूरत इस्तेमाल कर रहा है, वह यह पैगाम समर्थक समूहों के बीच तेजी से फैला रहा है कि जितने भी अधिकारियों और कथित भ्रष्टचारियों को अब तक ईडी का संदेशा गया है और जिसको सूत्र बनाकर सीएम हेमंत को घेरने की कवायद की जा रही है, वह सारे चेहरे तो रघुवर शासन काल में सत्ता के गलियारों में सक्रिय थें, उनके द्वारा ही तो सारे फैसले लिये जा रहे थें, मनरेगा घोटला हो या पूजा सिंघल, प्रेम प्रकाश हो या दूसरे चेहरे इसमें से कौन सा चेहरा रघुवर शासन काल में सत्ता की मलाई नहीं खा रहा था, और तो और जिस साहिबगंज में अवैध खनन के दावे किये जा रहे हैं, उसी साहिबगंज से रघुवर शासन काल में ट्रेनों की बोगियां भर भर कर खनन भेजा गया था, और यही कारण है कि सीएम हेमंत के द्वारा रेलवे मंत्री से उन बोगियों की पूरी सूची मांगी गयी है, लेकिन भ्रष्टाचार का शोर मचाने वाली भाजपा अब तक उस सूची पर कुंडली मार कर बैठी हुई क्यों है, और इसका कारण बेहद साफ है कि भाजपा को झारखंड के भ्रष्टाचार से कोई संकोच नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार का यह खेल को अर्जून मुंडा की सरकार हो या रघुवर दास की सरकार पूरे दम खम के साथ खेला गया, यहां सवाल तो एक आदिवासी मुख्यमंत्री को किनारे लगाने का है, हमारी सरकार के द्वारा जिस तरीके से 1932 का खतियान पर दम खम दिखाया गया, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार का फैसला लिया गया, सरना धर्म कोड को विधान सभा से पारित कर राजभवन भेजा गया, यही तो भाजपा का दर्द है, और उसकी कीमत हमें बार बार के समन के साथ चुकाना पड़ रहा है.
दो सियासी धुर्वों के बीच खुद ईडी भी एक शिकार बनती दिख रही है
साफ है कि इन दो सियासी धुर्वों के बीच आज ईडी खुद ही एक शिकार बनी दिख रही है, इस हालत में बहुत संभव है कि 20 जनवरी को झारखंड की सियासत में एक पत्ता भी नहीं हिले, बल्कि इस सीएम हेमंत के आमने सामने खड़ा होकर, चंद सवाल पूछ कर ईडी भी अपनी साख को बचाने की औपचारिकता पूरी करती नजर आये. क्योंकि पहले ही जिस तरीके से एक बाद एक आरोपियों के द्वारा समन को दरकिनार किया गया है, उसके बाद अब सवाल तो ईडी की साख पर उठने खड़े हो गये हैं.
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आठवें समन के बाद बंद लिफाफा पहुंचा ईडी दफ्तर, झारखंड में एक बार फिर से सियासी हलचल तेज
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